विवेकानंद कुशवाहा
बिहार में पहले चरण की चार सीटों पर कल मतदान संपन्न हो गया है। हर क्षेत्र के अलग-अलग जातियों के कई लोगों से मैंने बात की।
जितने लोग उतनी तरह की बातें सामने आयी, लेकिन सबकी बात सुनने के बाद लगा कि फाइट इतनी जबरदस्त है कि हार-जीत का फाइनल रिजल्ट 4 जून को ही पता चलेगा।
यानी यह कहें कि फिलहाल एनडीए की पांच दलों की घेरेबंदी पर तेजस्वी यादव अकेले भारी पड़े। क्योंकि, वैसे भी बिहार में कांग्रेस बहुत मदद कर पाने की स्थिति में नहीं है।
हां, बीच में मुकेश सहनी की इंट्री से अति पिछड़े वर्ग के एक बड़े हिस्से में संदेश गया तथा महागठबंधन समीकरण के लिहाज से और मजबूत हुआ है।
बिहार के चुनाव में 2005 से अब तक हमारे आदरणीय चाचा नीतीश कुमार बहुत बड़े फैक्टर रहे हैं, लेकिन इस दफा उनका शरीर और दल भाजपा के साथ जरूर है।
वहीं, उनका दिल और उनकी आत्मा द्वंद्व में भटक रही है। नीतीश जी 2020 के चुनाव से पहले जब भी चुनावी भाषण देते थे, तो वे एक सभा में सैकड़ों लोगों का मन तो बदल ही देते थे।
इस बार उनके भाषणों में वह रस नहीं दिखा, जिसका असर जदयू के कार्यकर्ताओं के मोराल पर तो पड़ा ही है, साथ में वोटिंग परसेंटेज पर भी पड़ा है।
मैंने पिछले चुनावों में जदयू के चुनावी प्रबंधन को भी देखा हुआ है। कैसे उनके कार्यकर्ता चुनाव से पहले की रात अपने समर्थक वोटरों के घर-घर वोटर लिस्ट वाली पर्ची पहुंचा जाते थे और कुछ लोग सुबह से ही वोट देने के लिए कहने को घर-घर घूम जाते थे।
इस बार नवादा में श्रवण कुशवाहा का सिंबल भले लालटेन रहा, लेकिन वे लगे जदयू के उम्मीदवार की तरह।
क्योंकि, राजद के नवादा नरेश राजबल्लभ परिवार और नवादा के तीन में से राजद के दो विधायकों ने श्रवण जी को अपनाया ही नहीं।
वहीं, जदयू के कई कार्यकर्ता जरूर चुपचाप लालटेन छाप जपते नजर आये। अशोक महतो फैक्टर ने भी यहां काम किया।
अगर नवादा में विनोद यादव बागी न होते तो यहां से भाजपा की हार सुनिश्चित थी। इसी तरह जमुई में राजद के लिए सबकुछ ठीक चल रहा था कि एक गाली कांड ने हवा बदल दी।
इससे सिर्फ पासवान ही नहीं भड़के, बल्कि अन्य दलित व कमजोर जातियों को बुरा लगा। इस कांड का गया पर भी असर होने की बात की जा रही है।
औरंगाबाद में कुछ भी हो सकता है। औरंगाबाद में हवा सांसद सुशील सिंह के खिलाफ थी, लेकिन टेकारी में और इमामगंज में वही हवा अभय कुशवाहा के खिलाफ भी महसूस की गयी।
राजपूत समाज व अन्य सवर्ण वोटरों के साथ खासकर, चंद्रवंशी और पासवान समाज के वोटर मुस्तैदी से भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में खड़े दिखे।
औरंगाबाद के कुछ मित्रों ने बताया कि टेकारी में कई यादव बाहुल्य बूथों पर वोटिंग में उस तरह की आक्रमकता नहीं दिखी, जैसी कि राजपूत व भूमिहार बाहुल्य सीटों पर शाम में आखिरी के दो घंटे दिखी। फिर भी राजद के जीतने के आसार यहां हो सकते हैं।
हालांकि, राजद यदि इन सीटों पर चुनाव हारती है, तो इसके लिए जिम्मेवार चुनाव के दिन इनके दल का खराब चुनावी प्रबंधन व इनके बड़बोले कार्यकर्ता प्रमुख वजह बनेंगे।
हां, ‘मोदी’ का सहारा एनडीए उम्मीदवारों के लिए बड़ा सहारा है। लाभार्थी गरीब/मीडियाभ्रमित लोगों ने मोदी के ही नाम पर वोट किया है।
हालांकि, युवाओं में तेजस्वी की लोकप्रियता बढ़ी है। कुल मिलाकर बिहार में पहले चरण के रुझान से साफ है कि महिला व ये लाभार्थी गरीब ही एनडीए का सहारा हैं।
उम्मीदवारों के मामले में महागठबंधन फिलहाल आगे है, क्योंकि उनको अपने कार्यकाल का कोई हिसाब नहीं देना पड़ रहा।
लेखक : वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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