रांची। आये दिन नियमों को ताक पर रखकर जमानों की खरीद-बिक्री की बात सामने आती रहती है। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर झारखंड में जमीन कितने प्रकार की हैं और उनकी खरीद-बिक्री के नियम क्या हैं?
कितने प्रकार की होती है जमीन
राजहंस भूमि
यह जमीन राजाओं की जमीन थी। इसके अंतर्गत वह जमीन आती है, जो राजाओं द्वारा दान में दी गयी या बांटी गयी थी।
खुटकट्टी भूमि
मुंडा आदिवासियों की जमीन को खुंटकट्टी भूमि कहा जाता है। मुंडा वंशज इस जमीन पर खेती करते रहे हैं। ऐसी जमीन पर वे खूंटा गाड़कर चिह्नित करते थे। इसलिए इसे खूंटकट्टी जमीन कहा गया। यह जमीन सीएनटी एक्ट के तहत आती है।
भुईहरी भूमि
उरांव जनजातियों की जमीन को भुईहरी जमीन कहा जाता है। यह जमीन झारखंड के दक्षिणी छोटानागपुर प्रमंडल के 2482 मौजा में स्थित है। माना जाता है कि भुऊहरी जमीन के मालिकों के पूर्वजों ने ही जंगल साफ कर खेती के लायक बनाया और गांव बसाये। इसलिए ये जमीन उनकी है। यह जमीन भी सीएनटी एक्ट के तहत आती है।
कोडकर भूमि
सदान या गैर आदिवासियों की भूमि को झारखंड में कोड़कर भूमि कहा जाता है। कोड़कर भूमि मालिक की जाति के अनुसार सीएनटी एक्ट के अंतर्गत होती है या बाहर।
मांझियस भूमि
जमींदारों की जमीन को मंझियस कहा जाता है। इसे वकास्त, जिरात, मन, वेटखेता के नाम से भी जाना जाता है। आम तौर पर इस प्रकार की जमीन की खरीद-बिक्री निर्धारित कानून के तहत ही होती है।
गैरमजरुआ जमीन
गैरमजरुआ जमीन दो प्रकार की होती है- गैर मजरुआ खास और गैर मजरुआ आम (गैर मजरुआ मालिक)
गैरमजरुआ आम
यह सरकारी जमीन होती है। इस जमीन का उपयोग वहां रहनेवाले समुदाय सामूहिक रुप से करते हैं, जैसे-सड़क, कुंआ, तालाब, मसना, सरना, शमसान एवं घाट आदि। इस जमीन की बंदोबस्ती किसी के नाम से नहीं की जा सकती। इसे ना खरीदा और ना ही बेचा जा सकता है।
गैर मजरुआ खास
इसे गैर मजरुआ मालिक जमीन भी कहा जाता है। यह भी सरकारी जमान होती है, लेकिन इसकी बंदोबस्ती की जा सकती है। ऐसी जमीन जो जमींदारी प्रथा के समय जमींदार के अधीन खलिहान, मवेशी के चारागाह, गौशाला आदि के रूप में इस्तेमाल होती थी। इस जमीन को जमींदारी प्रथा खत्म होने के बाद सरकार ने ले तो ली, क्योंकि भू सर्वे में इस जमीन को किसी आम व्यक्ति के नाम से सेटलमेंट नहीं किया गया। इसीलिए इस जमीन पर कसी का स्वामित्व नहीं हो पाया। इस जमीन को गैरमजरुआ खास या मालिक जमीन कहा जाता है। सरकार भूमिहीन लोगों के लिए इसी जमीन को बंदोबस्ती करती रही है।
कैसरे ए हिंद भूमि
केंद्र सरकार की जमीन को केसर ए हिंद जमीन कहा जाता है। इस जमीन की भी बंदोबस्ती नहीं की जा सकती। इस जमीन की देखभाल का दायित्व राज्य सरकार का होता है।
खासमहल भूमि
आजादी से पहले, जो अंग्रेज प्रशासक अपने सैनिको को रखने, घोडों को रखने, सरकारी आवास और कार्यालय आदि के लिए जिस जमीन का उपयोग करते थे, उसे खासमहल कोटि में रखा गया है। यह जमीन सरकारी होती है। यह जमीन कुछ निर्धारित समय के लिए लीज पर दी जाती है, लेकिन इसकी बंदोबस्ती नहीं की जा सकती।