रांची। ताजा-ताजा झारखंड मुक्ति मोर्चा और सोरेन परिवार को छोड़कर बीजेपी में शामिल हुई सीता सोरेन एक बार फिर चिंतित हैं। अब उन्हें सोरेन परिवार के मुखिया और झामुमो सुप्रीमो दिशोम गुरु शिबू सोरेन की चिंता सता रही है।
उन्हें लग रहा है कि बुजुर्ग शिबू सोरेन पर अनावश्यक बोझ डाला जा रहा है। उनकी सेहत का ख्याल नहीं रखा जा रहा।
दरअसल सीता सोरेन सोरेन परिवार की बड़ी बहू हैं। वह शिबू सोरेन के बड़े पुत्र स्वर्गीय दुर्गा सोरेन की पत्नी हैं। अब पार्टी और परिवार छोड़ने के बाद उन्हें गुरुजी की चिंता खाये जा रही है।
हालांकि निकालनेवाले इसका राजनीतिक मतलब निकाल कर दो और दो चार जोड़ने की कोशिश में जरूर जुट गये हैं। बता दें कि बीजेपी में शामिल होने के बाद सीता सोरेन को दुमका से प्रत्याशी बनाया गया है। अब यह सीट ऐसी है जहां दिशोम गुरु शिबू सोरेन का ही सिक्का चलता है।
गुरुजी के कारण इस पूरे इलाके में सोरेन परिवार का एकछत्र राज है। अब जब सीता सोरेन खुद को गुरुजी का शुभचिंतक बताते हुए परिवार के अन्य सदस्यों और झामुमो नेताओं प हमलावर तो राजनीतिक चिंतक तो मतलब निकालेंगे ही।
आइए अब आपको बताते हैं कि सीता सोरेन ने आखिर कहा क्या है। दरअसल, सीता सोरेन पिछले कुछ दिनों से झामुमो पर हमलावर है।
अपने सोशल मीडिया एक्स पर एक बार फिर पोस्ट कर सीता सोरेन ने लिखा कि जिन्होंने अपने खून पसीने से जेएमएम पार्टी रूपी वृक्ष को सींचा, खड़ा किया आज उसी पार्टी के द्वारा बाबा जी के संघर्षों को भुला दिया गया है।
उनकी बनाई गई बगिया को उजाड़ कर पहले फेंका गया फिर बंजर बनाकर छोड़ दिया गया। ऐसे संस्कारहीन, नैतिकता की सारी हदें पार करने वाले जेएमएम के नेता आज खुद को बगिया का मालिक समझने की भूल कर बैठे हैं।
सीता ने लिखा कि झारखंड आंदोलन के एक मजबूत सिपाही, राजनीति के भीष्म पितामह, हमारे दुखहर्ता और पालनकर्ता बाबा जी का जेएमएम द्वारा जो अपमान किया जा रहा है, उससे झारखंड का कोई भी गांव अछूता नहीं है।
जेएमएम के मुखौटे में बैठे सत्ता की लालसा लिए शीर्ष नेताओं द्वारा हम सबके प्रेरणास्रोत बाबा जी की तबियत खराब होने के बावजूद भी अपने स्वार्थवश उन्हें उलगुलान के नाम पर कभी चिलचिलाती धूप में बैठाया गया तो कभी संसद ले जाया गया।
यही नहीं परमपूज्य दिशोम गुरु जी को निर्णय लेने वाली समिति से भी दरकिनार कर दिया गया।
दुर्गा सोरेन जी के देहावसान के बाद जब मुझे और मेरी बेटियों को मेरे ही परिवार द्वारा दरकिनार कर दिया गया तब मुझ जैसे अबोध का बाबा जी ही एकमात्र सहारा बने रहे, उनके संरक्षण में मैंने राजनीति का क, ख, ग…सीखा है, मेरी बेटियों ने अपने बाबा की उंगली पकड़कर चलना सीखा, अपने पैरों पर खड़ा होना सीखा।
पूज्यनीय ससुर होने के साथ साथ बाबा जी मेरे लिए राजनीति के द्रोणाचार्य हैं, जिनका अपमान करना मेरे लिए खुद के अस्तित्व पर सवाल खड़ा करना है, लेकिन जेएमएम के पास जब कोई भी मुद्दा नहीं बचा है तो वह आज ऐसी गन्दी और तुच्छ राजनीति को जनता के सामने परोसने की कोशिश कर रहे हैं।
अब सीता सोरेन एक ओर झामुमो और परिवार के अन्य सदस्यों पर बयानों के तीर चला रही हं, वहीं झामुमो सुप्रीमो और परिवार के मुखिया शिबू सोरेन के प्रति स्नेह और प्रेम छलका रही हैं। इसी रहस्य को सुलझाने में झारखंड के राजनीतिक विश्लेषक जुटे हैं।
मेरे गुरुजी, मेरे पितातुल्य बाबा के नाम पर राजनीति करने वालों, उनका अनादर करने वालों उनके बिगड़ते स्वास्थ्य का भी तनिक ख्याल कर लो, सिर्फ सत्ता की राजनीति करने से आपको सत्ता तो जरूर मिल सकती है पर दिशोम गुरुजी जैसी कोमलता, मृदुलता, उपलब्धि और महारत ऐसी तुच्छ राजनीति से कदापि नहीं मिल सकती है।
झारखंड के लोगों के दिलों में जितना प्रेम बाबा जी के लिए है, उतना ही या उससे कहीं ज्यादा मेरे दिल में भी है, मेरी बेटियां इस बात की गवाह हैं कि बाबा जी सिर्फ मेरे ससुर भर नहीं, बल्कि मेरे गुरु, मेरे पिता तथा मेरी छोटी राजनीतिक पारी के मार्गदर्शक और सूत्रधार भी हैं।
उनके कदमों की धूल को अपने माथे में लगाकर ही मैंने दुमका की सेवा करने का संकल्प लिया है और इन रास्तों में विरोधियों के बिछाये कांटे तो जरूर आयेंगे पर आपको बताना चाहती हूं कि कांटों पर चलना बाबा जी का इतिहास रहा है और इस परंपरा को आगे बढ़ाकर अपने पैर के छालों को भुलाकर उन्हीं के रास्तों में चलकर दुमका की सेवा करना मेरा प्रथम कर्तव्य है।
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