रांची। झारखंड में लोकसभा चुनाव के शोर के बीच गांडेय के हाई प्रोफाइल विधानसभा उपचुनाव भी सुर्खियां बटोर रहा है।
गांडेय में 20 मई को उपचुनाव होना है। पूर्व सीएम हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन चुनाव इसी सीट से चुनावी राजनीति का आगाज कर रही हैं।
सोमवार को इस सीट से उन्होंने नामांकन दाखिल कर दिया है। पूरे विधानसभा क्षेत्र में झामुमो कार्यकर्ता प्रचारित कर रहे हैं यह महज विधायिकी का चुनाव नहीं है, बल्कि गांडेय की जनता एक मुख्यमंत्री का चुनाव करने जा रही है।
कहा जा रहा है कि कल्पना सोरेन के लिए गांडेय झामुमो के लिहाज से सबसे सुरक्षित सीट है। इसलिए कल्पना सोरेन के लिए ही यह सीट खाली कराई गई थी।
पर क्या सच में कल्पना सोरेन की राह आसान है। कल्पना सोरेन की जीत आसान होगी या मुश्किल?
गांडेय की जीत के लिए सियासी रणनीति क्या होगी ? चुनावी राजनीति तक कैसे पहुंचीं कल्पना, अब तक क्या हुआ है ?
कल्पना के लिए गांडेय सीट ही क्यों चुनी गई ? कल्पना सोरेन के चुनाव लड़ने के पीछे की रणनीति क्या है, जैसे कई सवाल लोगों की जेहन में हैं।
हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद कल्पना सोरेन को एक मजबूत नेता के रूप में खड़ा करने की कोशिश जारी है।
सोरेन परिवार से इस वक्त कल्पना और बसंत सोरेन पार्टी की विरासत संभाल रहे हैं। सीता सोरेन ने भाजपा का दामन थाम लिया है।
कल्पना सोरेन को रातों रात यह जिम्मेदारी नहीं सौंपी गई है। कल्पना सोरेन ने राजनीतिक समझ से रणनीति के तहत एक-एक कदम राजनीति की तरफ रखा है और अब चुनाव लड़ने को तैयार हैं।
पर यह सब कुछ एकाएक नहीं हुआ। 30 जनवरी 2024 को विधायक दल की बैठक में पहली बार कल्पना सोरेन को भी देखा गया।
इसके साथ ही, चर्चा तेज हो गई कि कल्पना सोरेन ही हेमंत के बाद मुख्यमंत्री बनेंगी। परिस्थिति बदली हेमंत गिरफ्तार हुए, तो मुख्यमंत्री के तौर पर नाम आया चंपाई सोरेन का।
कल्पना सोरेन बैकफुट पर रहीं, पर उन्हें सामने लाने की पार्टी के अंदर चलती रही। 6 फरवरी को हेमंत सोरेन के एक्स पर एक पोस्ट आया।
लिखा था- जब तक झारखंडी योद्धा हेमंत सोरेन जी केंद्र सरकार और बीजेपी के षड्यंत्र को परास्त कर हम सब के बीच नहीं आ जाते, तब तक उनका यह एकाउंट मेरे यानी उनकी जीवन साथी कल्पना मुर्मू सोरेन द्वारा चलाया जाएगा।
हेमंत सोरेन के सोशल मीडिया के माध्यम से मुखर होती कल्पना सोरेन की आवाज ने यह साफ कर दिया कि वह बैकफुट पर रहने वालों में से नहीं हैं।
अपनी बात और विरोधियों पर निशाना साधने के लिए कल्पना ने हेमंत सोरेन के सोशल मीडिया का इस्तेमाल शुरू कर दिया।
3 मार्च 2024 को अपने जन्मदिन के मौके पर कल्पना सोरेन ने एक तस्वीर पोस्ट करते हुए लिखा कि झारखंडवासियों और झामुमो परिवार के असंख्य कर्मठ कार्यकर्ताओं की मांग पर कल से मैं सार्वजनिक जीवन की शुरुआत कर रही हूं।
जब तक हेमंत जी हम सभी के बीच नहीं आ जाते तब तक मैं उनकी आवाज बनकर आप सभी के बीच उनके विचारों को आपसे साझा करती रहूंगी, आपकी सेवा करती रहूंगी।
फिर चार मार्च को सक्रिय राजनीति में आने का उन्होंने ऐलान कर दिया। इतना हीं नहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा के स्थापना दिवस के मौके पर भी गिरिडीह में आयोजित सभा में वह शामिल हुई।
यहां जनता को संबोधित करते हुए हेमंत सोरेन को याद कर उनके आंसू भी छलक गये। उनकी छलकती आंखों वाली तस्वीर ने पूरे राज्य का ध्यान खींचा और वह लोगों की चर्चा के केंद्र में आ गईं।
इसके बाद वह यहीं नहीं रूकी, रांची से लेकर मुंबई और दिल्ली तक इंडी गठबंधन की सभाओं में वह हुंकार भरी।
केंद्र सरकार और बीजेपी पर उन्होंने जमकर निशाना साधा। इससे वह झारखंड के साथ पूरे देश की नजरों में आ गईं। अब वह गांडेय विधानसभा का उप चुनाव लड़ने जा रही हैं।
इस चुनाव के दौरान कल्पना सोरेन के सामने एक नहीं, कई बड़ी चुनौती होंगी। पिछली बार इस सीट पर जेवीएम, आजसू और भाजपा अलग-अलग लड़ी थी।
ये सभी इस बार एक साथ चुनाव लड़ रही है। इस सीट से विधायक रहे डॉ सरफराज अहमद के लिए यह जीत इसलिए भी आसान थी कि उनके विरोधी बंटे हुए थे। कल्पना सोरेन जब चुनाव लड़ रही हैं तो सारे विपक्षी दल एक जुट है।
इस चुनाव परिणाम के बाद भी कल्पना की चुनौती खत्म नहीं होगी। चुनाव में अगर जीत मिलती है, तो पार्टी को एकजुट रखना बड़ी चुनौती होगी।
कल्पना को बड़ी जिम्मेदारी मिलने पर झामुमो के कई वरिष्ठ नेताओं को खटक सकती है। इस वक्त कल्पना सोरेन ने हेमंत सोरेन की गैरमौजूदगी में पार्टी को एकजुट रखा है।
लोकसभा चुनाव के बाद राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में सभी नेताओं को समेट कर रखना और पार्टी को मजबूत बनाए रखना कल्पना के लिए बड़ी चुनौती होगी।
इससे बड़ी चुनौती उन्हें परिवार को संभाले रखने की भी है। कहीं कल्पना सोरेन का बढ़ता कद से बसंत सोरेन को परेशान न कर दे, जैसा कि सीता सोरेन के मामले में हुआ।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि गांडेय में कांग्रेस और जेएमएम का कैडर है। इस एकजुटता का लाभ कल्पना सोरेन को मिल सकता है।
कल्पना सोरेन बहुत मेहनत कर रही हैं। हर कार्यक्रम में जा रही हैं। राजनीतिक चर्चा तेज है कि अगर कल्पना सोरेन जीत गई तो वह मुख्यमंत्री पद की दावेदार होंगी।
हालांकि सवाल उठ सकते हैं कि क्या चंपाई सोरेन सीएम की कुर्सी छोड़ देंगे ? यह समय के साथ साफ हो पाएगा।
कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि कल्पना सोरेन के पक्ष में दो बातें हैं। पहली की हेमंत सोरेन को लेकर सहानुभूति है वह दिख रही है। जो क्षेत्र हैं वहां जेएमएम की पकड़ रही है।
कल्पना सोरेन के साथ भीड़ दिख रही है, अगर यह भीड़ वोट बैंक में बदल गई तो जेएमएम के लिए सब कुछ ठीक है।
इस क्षेत्र के आदिवासी और मुस्लिम पूरी तरह झामुमो के समर्थन में हैं। अब जो बचा हुआ समय है, अगर भाजपा यह प्रचार करने मे सफल रही कि हेमंत सोरेन ने जो किया है वह गलत है।
इसके बाद अगर कल्पना सोरेन के पक्ष में बन रही सहानुभूति छिटक गई तो संभव है कि जेएमएम को परेशानी हो सकती है।
गांडेय विधानसभा को समझने के लिए कल्पना सोरेन एक बार क्षेत्र का दौरा कर चुकी हैं। गांडेय विधानसभा के पूर्व विधायक डॉ सरफराज अहमद, विधायक सुदिव्य कुमार सोनू सहित कई नेताओं के साथ इस क्षेत्र का दौरा किया है।
जेएमएम ने कल्पना सोरेन के नाम के ऐलान के पहले यह जरूर देखा की जनता के बीच इन्हें लेकर सकारात्मक प्रतिक्रिया है।
इसके बाद कल्पना सोरेन चुनावी सभाओं में, पार्टियों की अहम बैठक में और बड़ी रैली और सभाओं में शामिल हुईं।
झारखंड मुक्ति मोर्चा इस सीट को कितना सुरक्षित मानती है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस विधानसभा से डॉ सरफराज अहमद ने 31 दिसंबर 2023 यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि वह अपनी सरकार को बचाना चाहते हैं।
सवाल उठा कि सरकार को बचाने के लिए इस्तीफा क्यों ? फिर धीरे-घीरे लोगों को मामला समझ में आया।
वो ये कि इस सीट पर आज कल्पना सोरेन चुनाव लड़ रही हैं। डॉ सरफराज अहमद को राज्यसभा के लिए चुन लिया गया है। मतलब कि यह सीट कल्पना सोरेन के लिए ही खाली की गई थी।
झामुमो के केंद्रीय महासचिव विनोद पांडेय के अनुसार हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद जेएमएम के कार्यकर्ताओं में आक्रोश था।
लोगों को लगता था जेएमएम बिखर गया, ऐसे में कल्पना सोरेन का सामने आना। उनका हर दायित्व निभाना, छोटे – छोटे कार्यकर्ताओं से मिलना। गठबंधन दलों से मिलना।
उनकी कार्यशैली लोगों को पसंद आई। गांडेय उपचुनाव के लिए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने कल्पना सोरेन को उम्मीदवार बनाया। वह पढ़ी लिखी हैं।
वह जिस तरह काम कर रही है। राजनीतिक बागडोर संभाल ली है। उससे साफ है कि वह राजनीति को अच्छी तरह समझ रही हैं।
वह तेजी से लोगों के बीच लोकप्रिय हुई हैं। गांडेय में सभी लोग उनके साथ हैं। आनेवाले दिनों में वह पूरे झारखंड की लीडर बनकर उभरेंगी।
गांडेय सीट जेएमएम के लिए कितनी सुरक्षित है, यह इसका इतिहास बताता है। 1977 से लेकर अब तक यहां पांच बार झामुमो, दो बार कांग्रेस, दो बार भाजपा और एक बार जनता पार्टी ने जीत दर्ज की है।
2019 के चुनाव में यहां झामुमो के प्रत्याशी डॉ. सरफराज अहमद ने 65 हजार 23 वोट प्राप्त कर जीत हासिल की थी।
दूसरे स्थान पर रहे भाजपा के जयप्रकाश वर्मा को 56 हजार 168 वोट मिले थे।
झामुमो के रणनीतिकारों को इस सीट पर मुस्लिम और आदिवासी की बड़ी आबादी के आधार पर बनने वाले मजबूत समीकरण पर भरोसा है।
झामुमो प्रत्याशी कल्पना सोरेन को मुस्लिमों का भरपूर समर्थन मिलेगा। आदिवासियों को झामुमो पहले से अपना परंपरागत वोटर मानता है।
गांडेय में झामुमो का एक बड़ा वोट बैंक आदिवासी समुदाय है, जिनकी संख्या 40 हजार के करीब है। इन वोटों की बदौलत ही सालखन सोरेन (अब स्वर्गीय) तीन बार विधायक बने थे। 2014 में भी दूसरे नंबर थे।
पिछले चुनाव में उनकी पुत्रवधू कर्मिला टुडू झामुमो के टिकट की प्रबल दावेदार थीं, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला।
उनकी जगह डॉ सरफराज अहमद पर पार्टी ने भरोसा जताया और इस भरोसे का जवाब उन्होंने सीट छोड़कर दिया।
JMM के प्रत्याशी डॉ. सरफराज अहमद के हिस्से 65 हजार 23 वोट आए थे। दूसरे स्थान पर रहे बीजेपी के जयप्रकाश वर्मा को 56 हजार 168 वोट मिले थे। सरफराज के हिस्से में जीत 8,855 वोटों की वजह से मिली।
तीसरे स्थान पर रहे AJSU ( ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन) पार्टी के प्रत्याशी अर्जुन बैठा को 15,361 वोट मिले थे।
इस वोट के गणित को अलग-अलग करके देखने के बजाय जोड़कर देंखें तो परिस्थिति बदली दिखेगी।
पिछली बार आजसू और भाजपा अलग- अलग लड़े थे। इसके साथ ही जेवीएम भी चुनावी मैदान में थी। जेवीएम का भाजपा में विलय हो गया।
आजसू भी गठबंधन का हिस्सा है। आंकड़े इशारा कर रहे हैं कि कल्पना सोरेन के लिए राह इतनी भी आसान नहीं होगी।
भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट से दिलीप कुमार वर्मा को टिकट दिया है। पिछली बार बाबूलाल मरांडी की पार्टी जेवीएम के प्रत्याशी थे और उन्हें 8,952 वोट मिले थे।
आजसू ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि इस सीट पर उम्मीदवार उतारने से पहले उनके साथ चर्चा नहीं हुई।
कार्यकर्ताओं की राय अलग है। आजसू ने केंद्रीय नेतृत्व को इसकी जानकारी भी दी है।
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