Jamtara Cyber crime: कहानी जामताड़ा साइबर क्राइम की
आज देश और दुनिया में साइबर क्राइम की चर्चा हर ओर हो रही है। आये दिन खबरों में साइबर क्राइम की घटनाएं देखने को मिलती रहती हैं।
साइबर क्राइम से बचने की सलाह से जुड़े विज्ञापन चल रहे हैं। लोगों को सावधान और सतर्क रहने की अपील की जा रही है।
ऐसे में यह सवाल स्वभाविक है कि आखिर ये साइबर क्राइम है क्या और कैसे होता है? कैसे लोग ठगे जा रहे हैं? ये पैसे कहां जाते हैं?
साइबर क्राइम
दरअसल, साइबर हमला या साइबर क्राइम साइबर अपराधियों द्वारा एक या एकाधिक कंप्यूटरों या नेटवर्क के विरुद्ध एक या अधिक कंप्यूटरों का उपयोग करके किया गया हमला है।
एक साइबर हमला दुर्भावनापूर्ण रूप से कंप्यूटरों को अक्षम कर सकता है, डेटा चुरा सकता है, या अन्य हमलों के लिए लॉन्च बिंदु के रूप में उल्लंघन किए गए कंप्यूटर का उपयोग कर सकता है।
साइबर अपराध भी कई प्रकार के है जैसे कि स्पैम ईमेल, हैकिंग, फिशिंग, वायरस को डालना, किसी की जानकारी को ऑनलाइन प्राप्त करना या किसी पर हर वक़्त नजर रखना।
जामताड़ा साइबर क्राइम
अहम बात तो ये हैं कि जब भी साइबर अपराध की बात होती है, तो झारखंड का जामताड़ा का नाम सबसे ऊपर आता है।
साइबर क्राइम हब के रूप में कुख्यात जामताड़ा को लेकर ओटीटी पर वेब सीरीज तक बन चुकी है।
इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि जामताड़ा के ये अपराधी क्या गुल खिला रहे हैं। पूरा देश आज इस जामताड़ा जैसे छोटे से जिले को साइबर क्राइम हब के रूप में जान गया है।
कहा जाता है कि जामताड़ा में जब बाप जेल जाता है, तो बेटा उसकी विरासत संभाल लेता है। और फिर साइबर अपराध का ये अंतहीन सिलसिला शुरू हो जाता है।
कहानी ‘जामताड़ा गैंग’ की में आपको बतायेंगे कि कैसे इन साइबर अपराधियों के आगे आइटी इंजीनियर भी पानी भरते नजर आते हैं।
लोगों को साइबर क्राइम से बचाने के लिए सरकार हर दिन नयी तकनीक का इजाद कर रही है।
जैसे ही देश के जाने-माने इंजीनियर नयी टेक्नोलाजी लेकर आते हैं, तब तक पता चलता है कि अब दूसरे तरीके से ठगी की जा रही है। यानी कि ये साइबर अपराधी इन आइटी इंजीनियरों से दो कदम आगे चलते हैं।
जामताड़ा में ऐसे कई केस आए सामने
जामताड़ा में ऐसे कई केस सामने आए हैं, जहां बाप के जेल जाने के बाद बेटा ठगी के काम में लग गया है।
इसके अलावा जेल से बाहर आने के बाद अधिकांश अपराधी भी फिर से यह काम करने लगते हैं।
उन्हें जेल जाने का कोई डर नहीं है। पुलिस के मुताबिक कई ऐसे मामले सामने आए, जिसमें पिता के जेल जाने के बाद फ्रॉड की कमान बेटे ने संभाल ली।
यानी यहां साइबर अपराध की परंपरा भी शुरू हो गई है। इन्हें जेल और पुलिस का भी डर नहीं है। इसीलिए, तो देशभर में साइबर फ्रॉड की चर्चा जामताड़ा के बिना अधूरी है।
झारखंड और बंगाल बॉर्डर पर बसा यह जिला पिछले 5 सालों से साइबर फ्रॉड का हॉटस्पॉट बना हुआ है।
जामताड़ा में हो रहे फ्रॉड की वजह से दूरसंचार विभाग से लेकर 7 राज्यों की पुलिस भी परेशान है।
हाल ही में दूरसंचार विभाग ने बिहार-झारखंड लोकेशन के 2.5 लाख सिम कार्ड को बंद करने का फैसला लिया है।
इनमें अधिकांश सिम जामताड़ा और उसके आसपास में उपयोग किये जा रहे थे। दिल्ली पुलिस ने भी मई 2023 में 21 हजार सिम के साथ जामताड़ा से 5 लोगों को पकड़ा था।
झारखंड पुलिस के मुताबिक जामताड़ा में साल 2020 से लेकर अब तक साइबर अपराध के आरोप में 170 लोगों की गिरफ्तारी की गई है।
यह गिरफ्तारी सिर्फ जामताड़ा पुलिस ने की है। अन्य राज्यों की पुलिस के साथ संयुक्त छापेमारी में यह संख्या 500 से अधिक है।
पुलिस छापेमारी में करीब 100 से अधिक मोबाइल और 300 से अधिक सिम कार्ड भी बरामद किए जा चुके हैं।
इन सालों में जामताड़ा में कई एसपी भी बदले और सबने साइबर अपराध खत्म करने को अपनी प्राथमिकता बताई, लेकिन इसके बावजूद जामताड़ा नेक्सस का नेस्तनाबूत करने में पुलिस अब तक विफल रही है।
आइए अब जामताड़ा गैंग की ठगी के तरीके, पुलिसिया कार्रवाई की विफलता और साइबर फ्रॉड कानून के बारे में विस्तार से जानते हैं।
जामताड़ा कैसे बना साइबर क्राइम का हबः
झारखंड-बंगाल बॉर्डर पर स्थित जामताड़ा 1990 के दशक में रेलवे में वैगन ब्रेकिंग, पिल्फरेज यानी चोरी और नशा खिलाकर यात्रियों को लूटने के लिए बदनाम था, लेकिन मोबाइल के आने के बाद यह साइबर अपराधियों का गढ़ बन गया।
साइबर अपराधियों ने पहले ओटीपी मॉड्यूल और बाद में अनेकानेक तरीके अपनाकर लोगों के साथ फ्रॉड करना शुरू कर दिया।
जानकारी के अनुसार झारखंड के 308 गांव साइबर क्राइम का हब बने हुए हैं। यहां महिलाएं भी अपराधियों को पुलिस से बचाने में काफी मदद करती हैं।
2021 में अपराधियों को पकड़ने गई भोपाल पुलिस पर महिलाओं ने जामताड़ा में हमला कर दिया था।
जामताड़ा साइबर क्राइम से पूरे देश की पुलिस परेशानः
जामताड़ा गैंग की वजह से बिहार, यूपी, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और नई दिल्ली की पुलिस परेशान है।
इन राज्यों में साइबर फ्रॉड के अधिकांश केसों का तार जामताड़ा से ही जुड़े होते हैं। दिलचस्प बात है कि जामताड़ा गैंग के सदस्य ज्यादा पढ़े-लिखे भी नहीं होते हैं।
इसके बावजूद साइबर ठगी का यह खेल बड़ी आसानी से करते हैं। यह रहस्य भी आज तक पुलिस नहीं सुलझा सकी है।
जामताड़ा गैंग के ठगी के तरीकेः
बैंक का फिशिंग मैसेज भेजकरः
पिछले दिनों रांची में आईसीआईसीआई बैंक ने एक शिकायत दर्ज कराई थी। बैंक का कहना था कि साइबर अपराधी उसके ग्राहकों के मोबाइल में फिशिंग मैसेज भेज रहे हैं।
इस मैसेज के साथ एक लिंक होता है, जिस पर क्लिक करने के बाद ऑटोमेटिक पैसा कट जाता है।
साइबर सेल की तहकीकात में पता चला कि ये ठगी भी जामताड़ा गैंग ही कर रहा है। पुलिस के मुताबिक जामताड़ा गैंग बैंक के हूबहू आईडी से ग्राहकों को एक फिशिंग मैसेज भेजता है।
मैसेज के साथ एक लिंक रहता है, जिस पर क्लिक करने के लिए कहता है। लिंक पर क्लिक होने के बाद सारा डेटा अपराधी के पास चला जाता है।
इसके बाद उसका उपयोग कर अकाउंट से पैसा निकाल लेता है।
रिमोट ऐप के जरिए ओटीपी निगरानीः
जामताड़ा गैंग इस मॉड्यूल के जरिए जरूरतमंद लोगों के साथ ठगी करता है।
इस मॉड्यूल में सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वाले लोगों से पहले फोन के जरिए संपर्क करता है और फिर उसे एनी डेस्क जैसे ऐप डाउनलोड करने के लिए कहता है।
साइबर अपराधी लोगों से क्रेडिट/डेबिट कार्ड की मांग करता है। वे लोगों से डिटेल निकालकर भेजने के लिए कहते है।
जैसे ही कार्ड मिलता है, वैसे ही अपराधी क्रिप्टोकरेंसी में पैसा लगाने के लिए अकाउंट से क्रेडिट की कोशिश करते हैं।
ओटीपी मांगने की बजाय खुद एनी डेस्क के जरिए ओटीपी देख लेते हैं। पैसा निकालने के बाद तुरंत फोन काट देते हैं।
पैसा ट्रांजिक्शन करवाना
यह तरीका जामताड़ा गैंग का थोड़ा पुराना है। इस मॉड्यूल के जरिए उन लोगों को निशाना बनाया जाता है, जो किसी ई-कॉमर्स वेबसाइट से सामान खरीदते हैं।
सामान खरीदने के बाद जब कस्टमर कंप्लेन करते हैं, तो तुरंत गैंग के सदस्य एक्टिव हो जाते हैं।
कस्टमर केयर रिप्रजेंटिव बनकर पहले सामान बदल देने की बात करता है और फिर उसके एवज में पैसा मांगता है। पैसा देने के तुंरत बाद कस्टमर से कनेक्शन काट लेता है।
पुलिस-ईडी भी नहीं रोक सके क्राइमः
पुलिस के साथ-साथ ईडी भी जामताड़ा गैंग को कंट्रोल या खत्म करने में विफल रही है। साल 2021 में ईडी ने जामताड़ा गैंग से जुड़े सदस्यों की 66 लाख की संपत्ति जब्त की थी, लेकिन इसके बावजूद अपराध में कमी नहीं आई है।
साल 2020 में जामताड़ा में 70 केस दर्ज किए गए, जबकि यह संख्या 2021 में बढ़कर 72 हो गयी। 2022 में यह संख्या बढ़कर 73 हो गई।
अब जानते हैं कि आखिर जामताड़ा में पुलिस क्यों फेल है।
आसानी से मिल जाती है बेलः
सांगठनिक अपराध में शामिल जामताड़ा गैंग के अपराधी जब पुलिस गिरफ्त में आते हैं, तो उन पर सिर्फ साइबर अपराध से जुड़े आरोपो में मुकदमा दर्ज किया जाता है।
साइबर अपराध की धाराओं में उन्हें तुरंत जमानत मिल जाती है। अप्रैल 2023 में एक बड़ी कार्रवाई में दिल्ली पुलिस ने जामताड़ा गैंग के 5 लोगों को गिरफ्तार किया था।
इनमें एक आरोपी निजामुद्दीन अंसारी दिसंबर 2022 में साइबर ठगी के एक आरोप में ही जमानत पर छूटा था।
जेल से आने के बाद फिर उसने यह काम शुरू कर दिया। अंसारी ने बताया कि जामताड़ा में अधिकांश आरोपी यही काम करते हैं।
दरअसल, पुलिस शिकायत मिलने के बाद अमूमन जामताड़ा गैंग के सदस्यों पर IT (संशोधन) एक्ट 2008 की धारा 43, 66 (सी) और IPC धारा 419 के तहत केस दर्ज करती है, जो जमानती धारा है।
इससे अपराधी तुरंत जेल से बाहर आ जाते है और फिर यही धंधा शुरू कर देते हैं। साइबर एक्सपर्ट के मुताबिक भारत में साइबर फ्रॉड केस में अधिकतम 3 साल की सजा हो सकती है।
लोगों में जागरुकता की कमीः
विशेषज्ञों के मुताबिक जामताड़ा के लोग साइबर ठगी को अपराध नहीं मानते। यही मानसिकता उसे बार-बार अपराध करने के लिए प्रेरित करती है।
जामताड़ा अब रडार पर है, इसलिए अपराधियों ने ठिकाना भी बदलना शुरू कर दिया है। अब देवघर, रांची और गया को ये अपराधी अपना सेंटर बना रहे हैं।
पुलिस के मुताबिक लोगों में जागरुकता की कमी की वजह से यह अपराध लगातार बढ़ रहा है।
सबकुछ ऑनलाइन हो गया है, ऐसे में ये गैंग परेशान और भोले-भाले लोगों को आसानी से निशाना बना लेते हैं।
पुलिस का कहना है कि किसी भी स्थिति में लोगों को अपनी निजी जानकारी नहीं शेयर करनी चाहिए।
लोग जागरूक होंगे, तब ही इस तरह के अपराध पर काबू पाया जा सकता है।
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