एक पढ़ा-लिखा इंसान, एक डॉक्टर… वो भी MBBS और PG वाला… जिसने वर्षों तक एनाटॉमी, बायोकैमिस्ट्री, फार्माकोलॉजी, मानसिक स्वास्थ्य, ह्यूमन एथिक्स पढ़ी हो… वो अचानक कैसे मान लेता है कि मासूमों को उड़ा देना जन्नत का टिकट है?
ये सवाल जितनी बार समझने की कोशिश की जाती है, उतनी बार मन और भी उलझ जाता है।
कौन सी आग है?
कौन सी आवाज है?
कौन सी स्क्रिप्ट है?
जो एक दिमाग को इतना गुलाम बना दे कि मौत—जो वह रोज़ दूसरों से दूर रखने की कोशिश करता था—वही अब उसका हथियार बन जाए?
और सबसे बड़ा सवाल—
क्या वह डॉक्टर आतंकी बना, या पहले से आतंकी था जो डॉक्टर बन गया था?
वीडियो जिसने देश को झकझोर दिया
उमर के वीडियो में आपको कोई अनपढ़, दाढ़ी वाला, गरीबी में पला युवा नहीं दिखेगा।
नहीं।
आपको एक English-speaking, polished personality वाला, कैमरावाइज, शांत चेहरे वाला व्यक्ति दिखेगा—जो आपको पूरी गंभीरता से समझा रहा है कि:
“Suicide bombing is misunderstood… It is martyrdom… It is a service to Allah.”
सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
लेकिन उससे भी ज्यादा डरावना तब लगता है जब आप वीडियो को क्लोज़-अप में धीमे देखकर समझते हैं:
- उसकी आंखें बार-बार नीचे जा रही थीं
- हाथ हल्के-हल्के कांप रहे थे
- हर दो वाक्य के बाद रुकरा
- और सबसे बड़ा संकेत—
वीडियो में कई कट्स
यानी वह अपनी तैयार बात नहीं बोल रहा था
वह किसी और की स्क्रिप्ट बोल रहा था
एक मनोवैज्ञानिक इसे कहते हैं—
Cognitive Dissonance
यानी वह जो बोल रहा है, उसे अंदर से खुद भी पता है कि यह गलत है—but he cannot stop.
यह brainwashing का सबसे क्लासिक रूप है।
यह क्रोध नहीं… यह महीनों का प्रोजेक्ट था
हमारे सिस्टम के लिए यह सिर्फ “एक आत्मघाती हमला” नहीं है।
यह एक संपूर्ण अभियान था।
स्क्रिप्टेड।
रिहर्स्ड।
मनोकामना से भरा।
ठंडी रणनीति से बना।
जिसका उद्देश्य सिर्फ एक ब्लास्ट नहीं था—
बल्कि “भर्ती” था।
उमर को पता था:
मरना भी है… और मरकर भी कई और उमर तैयार कराने हैं।
यही वह लाइन है जिस पर पुलिस, NIA, IB हर एजेंसी चिंतित है।
**लोग पूछते हैं—उमर कौन था?
सवाल गलत है।
सवाल होना चाहिए—उमर जैसे कितने और हैं?**
उमर की पहचान वीडियो, DNA, परिवार सब दे चुका है।
अब यह बहस खत्म है कि वो कौन था।
अब असल सवाल यह है:
हमारे आसपास कितने और उमर घूम रहे हैं—
Hostel Room में,
Library के कोनों में,
Telegram Channels में,
Discord Chats में,
Signal Groups में…
जहाँ रोज़-रोज़ यह जहर पिलाया जा रहा है कि—
“काफ़िर तुम्हारा असली दुश्मन है।”
कितने लड़के quietly radicalized हो रहे हैं?
कितनों के अंदर यह बीज बोया जा रहा है कि:
“जन्नत की राह बंदूक से होकर गुजरती है।”
दुनिया का शोध बताता है—यह नई बीमारी नहीं है
यहाँ कुछ documented research हैं, जो इस पूरे केस को mirror करती हैं:
1. RAND Corporation की रिपोर्ट (2015)
बताती है कि आधुनिक आतंकी —
ज्यादातर well-educated, middle-class पृष्ठभूमि से आते हैं।
(LINK SOURCE: rand.org)
2. Europol TE-SAT Reports (2014–2019)
यूरोप में “home-grown jihadists” की बढ़ती संख्या दिखाती है कि
Internet-based radicalization सबसे बड़ा कारक है।
(LINK SOURCE: europol.europa.eu)
3. Oxford Research Encyclopedia
एक शोध कहता है कि
एलीट-एजुकेशन वाले radical recruits
कट्टरता का सबसे आसान शिकार होते हैं
क्योंकि उनमें “purpose-search” अधिक होता है।
(LINK SOURCE: oxfordre.com)
4. Indian Case Studies: NIA Files (Kerala + Karnataka + Bengal cases)
भारत में जो युवक पकड़े गए—
उनमें से 60% read English, had stable families, and professional qualifications।
(LINK SOURCE: nia.gov.in)
इन सबका मतलब साफ है—
पढ़ाई से कट्टरता नहीं रुकती।
माहौल, संदेश, और नरेटिव तय करते हैं कि व्यक्ति किस तरफ जाएगा।
उमर इसका सबसे ताजा, सबसे भयानक उदाहरण है।
उमर का घर, उसकी लाइफ—सब सामान्य था… तो फिर क्या हुआ?
यही खतरे की जड़ है।
यह कहानी किसी गरीब मोहल्ले, झुग्गी, बेरोज़गार स्थिति से नहीं आई।
यह कहानी एक “elite background” से निकली।
उमर:
- अच्छी सैलरी वाला
- मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर
- English fluent
- अमीर परिवार
- Comfortable lifestyle
अब सवाल आता है:
फिर उसे क्या कमी थी?
जवाब है—
“Meaning… Purpose… Identity… Narrative.”
यही चार चीजें extremist groups सबसे पहले छीनते हैं, और फिर अपनी ideology के अनुसार भरते हैं।
इंटरनेट—कट्टरता की फैक्ट्री
जो लोग आज भी मानते हैं कि
“यार, इंटरनेट से कोई इतना तो नहीं बदल जाता”
उन्हें यह जानना चाहिए:
2013–2016
यूरोप से
6000 युवक-युवतियाँ
सीरिया गए ISIS ज्वाइन करने।
(LINK SOURCE: europeanparliament.eu)
इनमें:
- डॉक्टर
- इंजीनियर
- MBA
- चार्टर्ड अकाउंटेंट
- मेकअप आर्टिस्ट
- IT experts
सब थे।
और इन सबका रास्ता शुरू हुआ था—
Telegram/WhatsApp के एक DM से।
जिसमें पहला मैसेज आमतौर पर यह होता है:
“Assalamu Alaikum brother… your post inspired me.”
उसके बाद—links, PDFs, videos, audio lectures, jihadist interpretations, और फिर एक पूरी वैकल्पिक दुनिया।
भारत में भी:
- केरल IS Module
- UP ISIS Inspired Group
- Karnataka Graphic Designer Case
- West Bengal Chat Groups
इन सब में pattern एक ही है:
Online handlers → Private chats → Identity crisis → Narrative feeding → Radical action
जो लोग कहते हैं: “इसका धर्म से कोई लेना देना नहीं”—
उनसे एक जरूरी बात
धार्मिक समुदाय के 99% लोग शांतिप्रिय हैं, मेहनती हैं, परिवार वाले हैं।
यह सत्य है।
अटल सत्य।
लेकिन यह भी सत्य है कि:
कट्टर व्याख्या
धर्म की आड़ लेकर
युवाओं को गलत दिशा में ले जाती है।
अगर आप यह कहेंगे कि
“नहीं इसका धर्म से कोई संबंध नहीं”
तो यह बीमारी को नाम न देने जैसा है।
बिना नाम लिए कैंसर का इलाज नहीं हो सकता।
मुस्लिम समुदाय के लिए कड़वा लेकिन जरूरी सच
जो लोग सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं—
“हम पर उंगली मत उठाओ, इसका इस्लाम से क्या लेना देना”—
उन्हें भी ये स्वीकारना होगा:
हाँ, धर्म की गलत व्याख्या का संगठित नेटवर्क आपके ही नाम पर चल रहा है।
यह आपके समुदाय को बदनाम कर रहा है।
आपके बच्चों को गुमराह कर रहा है।
आपके खिलाफ ही नफरत बढ़ा रहा है।
अगर आप आवाज नहीं उठाएंगे,
तो इसका बोझ आपके समाज पर ही पड़ेगा।
क्योंकि
उमर जैसे लोग धर्म के नहीं—धर्म के असली मानवीय अर्थों के दुश्मन हैं।
हिंदुओं के लिए भी—कड़वा लेकिन सच
जो ट्विटर पर
- नरसंहार का मज़ाक उड़ाते हैं
- मुसलमानों के लिए नफरती मीम बनाते हैं
- “गोभी की खेती” वाले बयान शेयर करते हैं
उन्हें भी समझना होगा:
आपका कंटेंट भी FOREIGN HANDLERS recruits को दिखाते हैं
कि “देखो—ये काफिर तुम्हें नफरत करता है।”
एक नफरती ट्वीट भी
किसी कट्टर वीडियो में
प्रमाण की तरह इस्तेमाल हो सकता है।
इसलिए दोनों तरफ—
नफरत फैलाने वाले
उमर के जैसे recruits को पैदा करने में मदद करते हैं।
सवाल अब यह नहीं कि अगला धमाका कहाँ होगा—
सवाल यह है कि अगला उमर कौन होगा?
- आपका बेटा?
- आपका छोटा भाई?
- आपका क्लासमेट?
- आपका पड़ोसी?
- या कोई ऐसा लड़का, जिसे आप शांत और मासूम समझते हैं?
क्योंकि radicalization रातों-रात नहीं होता—
यह हर रात 20–30 मिनट के ऑडियो लेक्चर से होता है।
यह “एक वीडियो” नहीं,
सैकड़ों वीडियो का असर होता है।
घर वालों को किन संकेतों पर तुरंत चौकन्ना होना चाहिए?
ये बदलाव अचानक दिखाई दें तो सावधान हो जाइए:
- अचानक silence
- अचानक दाढ़ी/ड्रेस में बदलाव
- रात में फोन पर लंबी बातें
- परिवार से दूरी
- कट्टर लेक्चर सुनना
- धार्मिक बातों में अचानक अत्याधिक रूचि—लेकिन केवल “जुड़ाव” नहीं “संघर्ष” वाले हिस्से
- समाज को “काफिर”, “दुश्मन”, “जुल्म” जैसे शब्दों में देखने लगना
यह religion नहीं—
radical script की शुरुआत है।
उमर का वीडियो—शहादत का आखिरी संदेश नहीं,
डिजिटल भर्ती का विज्ञापन था।
जो लोग इसे “सुसाइड नोट” मान रहे हैं—
वे गलत हैं।
उसमें पछतावा नहीं था।
उसमें दर्द नहीं था।
उसमें डर नहीं था।
उसमें गर्व था।
एक ठंडा, खतरनाक, शांत गर्व।
जैसे कहना चाहता हो:
“मैंने शुरुआत की है।
अब तुम्हारी बारी है।”
यही recruitment language है।
अब बोलना ही पड़ेगा — नहीं तो देर हो जाएगी
ये समय है—
धर्म को नहीं,
धर्म की गलत व्याख्या को चुनौती देने का।
ये समय है—
कट्टरता के नेटवर्क को बेनकाब करने का।
ये समय है—
उमर बनने से पहले ही उमर को रोकने का।
क्योंकि अगर नहीं जागे—
तो अगला धमाका किसी मॉल में भी हो सकता है,
किसी स्कूल में भी,
किसी ट्रेन में भी,
किसी मस्जिद/मंदिर के बाहर भी।
निष्कर्ष — कोई भी बच्चा हमारा दुश्मन नहीं
लेकिन गलत विचारधारा जरूर है
यह लेख किसी धर्म के खिलाफ नहीं है।
यह लेख कट्टरता के खिलाफ है।
यह लेख मानवता के पक्ष में है।
और अंत में सिर्फ एक बात—
“आग जब लगती है, तो सिर्फ एक घर नहीं जलता—
पूरा मोहल्ला जलता है।”
डॉक्टर उमर ने जो किया—
वह शहादत नहीं,
वह कत्ल था।
और उसका वीडियो—
उसका आखिरी संदेश नहीं—
अगले उमर की तैयारी था।
अब फैसला हमारे हाथ में है—
हम अगली पीढ़ी को कट्टरता देंगे या समझदारी?



