Nithari case:
नोएडा, एजेंसियां। नोएडा के निठारी गांव में आज भी 2006 की वो भयावह यादें ज़िंदा हैं, जब डी-5 कोठी से एक के बाद एक बच्चों के कंकाल बरामद हुए थे। अब, लगभग दो दशक बाद भी न्याय की उम्मीद में बैठे परिवार टूट चुके हैं। अदालत से दोनों आरोपी कारोबारी मोनिंदर सिंह पंढेर और उसके नौकर सुरेंद्र कोली सभी मामलों में पूरी तरह बरी हो चुके हैं, जिससे पीड़ित परिवारों का विश्वास फिर से हिल गया है। डी-5 कोठी के बाहर बैठी लक्ष्मी, जिसकी आठ साल की बेटी 2006 में लापता हुई थी, आज भी उसी दर्द के साथ जी रही हैं। वह कहती हैं, “हमको पुलिस से उम्मीद थी, लेकिन हमें न्याय नहीं मिला। इतने साल बीत गए, अब तो हम खुद को हारा हुआ महसूस करते हैं।” लक्ष्मी का कहना है कि जांच के दौरान गरीब परिवारों की आवाज़ नहीं सुनी गई और सबूतों के साथ लापरवाही बरती गई।
क्या था निठारी कांड?
आज से 19 साल पहले दिसंबर 2006 में नोएडा के सेक्टर-31 स्थित डी-5 कोठी के पास मानव अवशेष मिलने से पूरा देश दहल गया था। जांच में खुलासा हुआ कि बच्चों और युवतियों के अपहरण, यौन उत्पीड़न और हत्या के बाद शवों को नष्ट किया गया था। पंढेर और कोली दोनों को गिरफ्तार किया गया, और 2011 में कोली को एक मामले में मौत की सज़ा भी सुनाई गई थी। हालांकि, 2023 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 अन्य मामलों में सबूतों की कमी बताते हुए दोनों को बरी कर दिया, और जुलाई 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने भी राज्य सरकार की अपीलें खारिज कर दीं। नवंबर 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने कोली की क्यूरेटिव याचिका स्वीकार करते हुए उसकी सज़ा भी रद्द कर दी इसके साथ ही निठारी कांड के दोनों आरोपी सभी मामलों में बरी हो गए।
“अगर मेरी बेटी ज़िंदा होती, तो आज मेरे नाती होते…”
गांव के झब्बू और सुनीता अपनी दस साल की बेटी ज्योति की तस्वीर आज भी संभाले हुए हैं। झब्बू बताते हैं, “हम पंढेर के घर के कपड़े प्रेस करते थे। ज्योति दुपट्टे का पीको कराने गई थी, फिर कभी वापस नहीं आई। उसके कपड़े और चप्पल उसी के घर से मिले।” सुनीता की आंखों में आज भी वही दर्द है वह बोलती है “अगर मेरी बेटी ज़िंदा होती, तो आज मेरे नाती होते। अब तो बस ऊपरवाला ही न्याय देगा।”
“डर लगता है… ये लोग फिर वही करेंगे”
गांव की महिलाएं आज भी डरी हुई हैं। एक महिला कहती हैं, “2006 में डर लगता था, आज भी लगता है। जो छूट गए हैं, वो फिर वही करेंगे। इन्हें फांसी लगनी चाहिए थी।” गांव में अब भी यह सवाल गूंज रहा है “क्या गरीबों के बच्चों की जान की कोई कीमत नहीं?”
सन्नाटे में डूबी निठारी की गलियां:
निठारी में मीडिया की गाड़ियां फिर पहुंची हैं, लेकिन इस बार कैमरों के सामने उम्मीद नहीं, बस थकान और आंसू हैं। कई परिवार अब बोलने से भी कतराते हैं। वे कहते हैं “कहने से क्या होगा? सब भूल जाते हैं।” करीब 19 साल बाद भी निठारी की गलियां न्याय की पुकार कर रही हैं, और वहां के परिवार आज भी उसी उम्मीद के सहारे जी रहे हैं “अब बस ऊपरवाला ही न्याय देगा।”



