नयी दिल्ली : प्रख्यात लेखक रस्किन बाण्ड ने कहा है कि शरीर के विपरीत मनुष्य का मस्तिष्क जीवन के उत्तरार्द्ध में चीजों को याद रखता है और सृजन के मामले में ‘‘बहुत उर्वर’’ होता है। उन्होंने जीवन के छठे और सातवें दशक में चल रहे लेखकों को सलाह दी कि वे विख्यात रचनाकारों अगाथा क्रिस्टी और पी जी वुडहाउस की कृतियों से प्रेरणा लें और लेखन जारी रखें, भले ही यह लेखन स्वांत: सुखाय ही क्यों न हो। उन्होंने अपनी नई किताब ‘‘द गोल्डन इयर्स: द मैनी जॉय ऑफ लिविंग ए गुड लॉन्ग लाइफ’’ जारी की है।
उनका मानना है कि लेखकों की उम्र बढ़ने के बारे में एक अच्छी बात यह है कि यह उन्हें प्यार, दोस्ती, रोमांच, उपलब्धियों, एक बदलता देश, एक बदलती दुनिया, जीवन के बदलते तरीकों पर और अधिक लिखने के लिए प्रेरित करता है। बाण्ड ने किताब में लिखा है, ‘‘लेखन में, शब्दों को कागज पर उतारने में और कहानी या उपन्यास लिखने में एक अलग ही आनंद होता है और आपके लेखन का यदि कोई और आनंद नहीं लेता है तो इसकी चिंता मत कीजिए क्योंकि ऐसा आपने अपनी खुशी के लिए किया है।’’ उन्होंने लिखा,
‘‘ मनुष्य का मस्तिष्क जीवन के उत्तरार्द्ध में चीजों को याद रखता है और सृजन के मामले में ‘‘बहुत उर्वर’’ होता है।’’ उन्होंने आश्चर्य जताया कि लोग आखिर क्यों सेवानिवृत्त होते हैं। उन्होंने उपन्यासकार अगाथा क्रिस्टी और अंग्रेजी लेखक पी जी वुडहाउस का उदाहरण दिया जिन्होंने क्रमश: अपने आठवें और नौंवे दशक में कई महान काम किये।
बाण्ड ने 1956 में अपना पहला उपन्यास ‘‘द रूम ऑन द रूफ’’ लिखा था और इसके बाद से वह बच्चों के लिए 50 से अधिक पुस्तकों के साथ-साथ 500 से ज्यादा लघु कथाएं, निबंध और उपन्यास लिख चुके हैं। उन्होंने कहा कि किसी लेखक के लिए एक निश्चित उम्र में लिखना बंद करने के लिए न तो सफलता और न ही असफलता निर्णायक कारक होनी चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘यदि आप अपने लेखन करियर के शिखर पर पहुंच चुके हैं, तो रुकना क्यों है? और यदि आपने वह हासिल नहीं किया है जो आपने निर्धारित किया है, तो हार क्यों मानें?’’उन्होंने आरके नारायण, मुल्क राज आनंद, खुशवंत सिंह और नयनतारा सहगल सहित कई भारतीय लेखकों का भी जिक्र किया जिन्होंने अपने जीवन के अंतिम समय तक लेखन जारी रखा।



