JharkhandSomesh Soren: सोमेश सोरेन को मंत्री बनने से किसने रोका, क्या उम्मीदवारी पर भी है संकट -आनंद कुमार

Somesh Soren: सोमेश सोरेन को मंत्री बनने से किसने रोका, क्या उम्मीदवारी पर भी है संकट -आनंद कुमार

Somesh Soren:

जमशेदपुर। चुनाव आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है — 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में वोटिंग होगी और 14 नवंबर को मतगणना के साथ नतीजे भी आएंगे। इसी ऐलान के साथ झारखंड के घाटशिला विधानसभा उपचुनाव की तारीख भी तय हो गई — 11 नवंबर को मतदान और 14 नवंबर को परिणाम। यह सीट पूर्व शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन के निधन के कारण खाली हुई थी और अब पूरे राज्य की नज़र इस एसटी रिजर्व सीट पर टिक गई है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपने पुराने सहयोगी के बेटे सोमेश सोरेन को मौका देंगे?

या फिर उनके टिकट पर संकट मंडरा रहा है? सवाल इसलिए कि सोमेश को तो मंत्री बनाने की बात हुई थी, लेकिन बाद में हेमंत सोरेन चुप्पी साध गये। दूसरी ओर, भाजपा में भी टिकट को लेकर खींचतान है — चंपाई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन खुद को सबसे मजबूत दावेदार मान रहे हैं। लेकिन, क्या भाजपा में भी कोई नया पेंच फंस गया है? आइए, इस पूरे उपचुनाव को गहराई से समझते हैं — इसकी पृष्ठभूमि से लेकर राजनीतिक समीकरणों तक।

घाटशिला, पूर्वी सिंहभूम जिले की एक महत्वपूर्ण विधानसभा सीट है। यह आदिवासी रिजर्व सीट है। तो जाहिर है आदिवासी बहुल है और लंबे समय से झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का गढ़ माना जाता है। दिवंगत रामदास सोरेन, जो राज्य के शिक्षा मंत्री भी रहे, 2009, 2019 और 2024 के चुनावों में यहां से विधायक चुने गये। 2024 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा उम्मीदवार बाबूलाल सोरेन को करीब 22 हजार वोटों के अंतर से हराया था। चंपाई सोरेन के जेएमएम छोड़ने के बाद 2024 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले उन्हें मंत्री बनाया गया और 2024 के चुनाव में हेमंत सोरेन की सत्ता में वापसी के बाद भी वे मंत्री बनाये गये। 15 अगस्त 2025 को उनके निधन के बाद घाटशिला सीट रिक्त हो गई।

अब चुनाव आयोग ने इस उपचुनाव के लिए 11 नवंबर की तारीख तय की है। मतगणना 14 नवंबर को होगी। यह उपचुनाव JMM के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है, क्योंकि हेमंत सोरेन जिस बहुमत के साथ सत्ता में लौटे थे, घाटशिला का उपचुनाव उनके करीब एक साल के कामकाज की कसौटी बनेगा। रामदास सोरेन के निधन के बाद हेमंत सोरेन उनके घर आये थे। रामदास की पत्नी से पूछा था कि अब परिवार से कौन राजनीति में आयेगा, तो उन्होंने सोमेश का नाम आगे किया था। यह मानकर चला जा रहा था कि सोमेश को मंत्री बनाकर चुनाव लड़ाया जायेगा।

लेकिन, अब जब हेमंत सरकार ने सोमेश सोरेन को मंत्री नहीं बनाया, तो चर्चा तेज है कि क्या पार्टी के भीतर सोमेश को लेकर असहमति है या ये देरी रणनीतिक है। यह हेमंत सोरेन की पुरानी रणनीति रही है सहानुभूति के साथ मंत्री पद की ताकत से वोटरों को जोड़ना। इसका उदाहरण हैं हफीजुल हसन और बेबी देबी। इसलिए सोमेश सोरेन का नाम भी मंत्री पद के लिए प्रमुखता से उभरा।

लेकिन, हफ्ते बीतते गए — पितृपक्ष, फिर नवरात्रि, और फिर अक्टूबर का पहला सप्ताह — फिर भी नियुक्ति की घोषणा नहीं हुई। इसी देरी ने राजनीतिक गलियारों में सवाल खड़े कर दिए — क्या हेमंत सोरेन नाराज़ हैं? क्या सोमेश के टिकट पर भी संकट है? राजनीतिक सूत्रों के मुताबिक, JMM फिलहाल “रणनीतिक देरी” कर रहा है। हफीजुल अल्पसंख्यक और बेबी देवी कुड़मी समुदाय से आते थे। इनके वोटरों को जोड़े रखने के लिए इन दोनों को मंत्री बनाया गया था। लेकिन, सोमेश तो संथाल हैं और संथाल वोट को जेएमएम के कोर वोट हैं।

हेमंत सोरेन ही इनके सबसे बड़े नेता हैं। रामदास सोरेन तो अपनी योग्यता के बल पर मंत्री बने। लेकिन, हेमंत सोरेन यह नहीं चाहते होंगे कि सोमेश को मंत्री बनाकर कहीं उन्हें बाद में बाकी विधायकों की नाराजगी न उठानी पड़े। कोल्हान में बहरागोड़ा के विधायक समीर मोहंती जनरल कोटे के हैं, दो बार के विधायक हैं, जुगसलाई के मंगल कालिंदी एससी हैं वे भी दो बार के विधायक हैं, संजीव सरदार भूमिज हैं वे भी दो बार से विधायक हैं। ऐसे में सोमेश को मंत्री बनाना उन्हें नाराज भी कर सकता है, तो हो सकता है कि इस कारण से हेमंत सोरेन ने अपना इरादा बदल दिया हो। या कुछ और कारण हो सकते हैं। बहुत सी बातें हो रही हैं। उधर, खबर है कि रामदास के भतीजे विक्टर सोरेन भी क्षेत्र में सक्रिय हो गए हैं।

बात भाजपा की करें तो पार्टी इस सीट को आदिवासी इलाकों में अपनी “पुनर्वापसी की चाबी” मान रही है। पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन, जिन्होंने में JMM छोड़कर भाजपा जॉइन की थी, अब अपने बेटे बाबूलाल सोरेन को टिकट दिलाने की कोशिश में हैं। बाबूलाल 2024 में भी इसी सीट से लड़े थे और रामदास से हार गए थे। अब वे फिर से दावेदारी कर रहे हैं। लेकिन, इस बीच भाजपा के अंदर भी खींचतान बढ़ गई है। बाबूलाल मरांडी की पसंद कोई और है, आदित्य साहू की कोई और और चंपाई के तो बेटे ही दावेदार हैं।
यानि भाजपा के लिए भी घाटशिला का यह चुनाव “डबल एज्ड स्वॉर्ड” है। जीत मनोबल बढ़ाएगी, लेकिन हार और तोड़ देगी।

अब संभावित उम्मीदवारों की ताकत और कमजोरी की चर्चा कर लेते हैं,
जेएमएम से सोमेश सोरेन प्रत्याशी हुए तो उनकी ताकत होगी रामदास की विरासत और सहानुभूति। लेकिन, मंत्रीपद न मिलना, व्यक्तिगत छवि और परिवारवाद कमजोरी साबित हो सकता है।
भाजपा के संभावित उम्मीदवार बाबूलाल सोरेन की ताकत है, चंपाई का निजी प्रभाव, भाजपा का टिकट और कमजोरी है 2024 की हार और पार्टी का अंदरूनी मतभेद।
कांग्रेस के प्रदीप बलमुचू असंतुष्ट हैं, वे क्या करेंगे ये तो समय बतायेगा। जेएलकेएम और निर्दलीय भी वोटों में हिस्सेदारी करेंगे।

वोट समीकरण देखें, तो घाटशिला में लगभग 60% आदिवासी वोटर हैं और करीब 25% ओबीसी। यानी मुकाबला मुख्य रूप से “आदिवासी बनाम आदिवासी” ही है। इस लिहाज से JMM की स्थिति फिलहाल थोड़ी मजबूत है, लेकिन टिकट को लेकर असमंजस उसकी पकड़ कमजोर कर सकता है। हेमंत सोरेन फिलहाल “संतुलन की राजनीति” खेल रहे हैं। वे चाहते हैं कि परिवारवाद का ठप्पा गहराए नहीं और संगठन के अन्य नेताओं को भी मौका मिले।

इसलिए उन्होंने मंत्री पद पर फिलहाल ब्रेक लगाया है। लेकिन, यह देरी राजनीतिक रूप से जोखिम भरी है। अगर सोमेश टिकट नहीं पाते या हार जाते हैं, तो यह JMM के लिए झटका होगा और विपक्ष के लिए बड़ा हथियार। दूसरी ओर भाजपा आदिवासी वोट बैंक को मजबूत करने की कोशिश कर रही है, लेकिन भाजपा की अंदरूनी खींचतान पार्टी की एकजुटता पर सवाल उठाती है। घाटशिला सिर्फ एक विधानसभा सीट नहीं है, यह झारखंड की सियासत का आईना है। यहां का नतीजा तय करेगा कि क्या झारखंड की राजनीति पर हेमंत सोरेन की पकड़ बरकरार है या भाजपा वापसी करेगी।

14 नवंबर को नतीजे आयेंगे, लेकिन राजनीतिक बहस अभी से शुरू हो चुकी है। क्या सोमेश को टिकट मिलेगा? क्या भाजपा उलटफेर करेगी? या फिर घाटशिला में फिर से “सोरेन बनाम सोरेन” की लड़ाई देखने को मिलेगी? समय बताएगा…।

नोटः लेखक वरिष्ठ पत्रकार और हिन्दुस्तान जमशेदपुर के पूर्व संपादक हैं।

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