वाराणसी। काशी के मणिकर्णिका घाट पर विश्व प्रसिद्ध मसाने की होली पर अद्भुत नजारा दिखा।
जलती चिताओं के बीच यहां भस्म से होली खेली जा रही गई। हजारों लोगों के बीच मणिकर्णिका घाट महाश्मशान पर जन सैलाब उमड़ा हुआ था।
इनमें बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक भी थे। पूरे देश में रंगों और गुलालों से होली खेली जाती है, लेकिन शिव की नगरी काशी में चिता की राख के साथ भी होली खेली जाती है।
ऐसी होली पूरे विश्व में सिर्फ काशी में ही होती है। मान्यता है कि भगवान शंकर भस्म की होली अपने प्रिय गण भूत, प्रेत, पिशाच शक्तियों के साथ खेलते हैं।
भस्म होली शुरू करने से पहले बाबा मसान नाथ की विधि-विधान के साथ पूजा की गई। इसके बाद बाबा की आरती की गई।
ढोल-नगाड़े और डमरू के साथ पूरा श्मशान घाट हर-हर महादेव के उद्घोष से गूंज उठा। काशीवासियों के साथ-साथ विदेशी पर्यटकों ने भी इस भस्म होली का जमकर मजा लिया।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने मसान की होली की शुरुआत की थी। रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शंकर माता पार्वती का गौना लेकर काशी आए थे. तब उन्होंने अपने गणों के साथ होली खेली थी।
लेकिन, श्मशान में बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष गंधर्व, किन्नर, जीव जंतु आदि के साथ होली नहीं खेल पाए थे।
इसलिए रंगभरी एकादशी के एक दिन बाद भगवान शिव ने श्मशान में रहने वाले भूत-प्रेतों के साथ होली खेली थी।
तभी से काशी में मसान की होली खेलने की परंपरा चली आ रही है। चिता की राख से होली खेलने की वजह से ये आयोजन देश-विदेश में प्रसिद्ध है।
मसान की होली देखने के लिए हजारों लोग वाराणसी में इकठ्ठे होते हैं।
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