रांची, एजेंसियां। एचईसी के दिग्गज श्रमिक नेता और इंटक के वरीय राष्ट्रीय सचिव, राणा संग्राम सिंह का शनिवार सुबह निधन हो गया।
वे लंबे समय से बीमार थे और रांची के एक अस्पताल में इलाजरत थे। उनका अंतिम संस्कार रविवार को धुर्वा के सीठियो घाट पर किया जाएगा।
राणा संग्राम सिंह, हटिया प्रोजेक्ट वर्कर्स यूनियन के महामंत्री के रूप में एचईसी और कई प्रतिष्ठानों के कामगारों के लिए दशकों तक संघर्षरत रहे।
श्रमिक नेताओं, राजनीतिक दलों और अधिकारियों ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए इसे श्रमिकों के लिए अपूरणीय क्षति बताया है।
बिहार के कैमूर में जन्मे, रांची बनी कर्मभूमि
राणा संग्राम सिंह ने 62 वर्षों तक श्रमिकों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। 1956 में बिहार के कैमूर जिले के वसंतपुर में जन्मे राणा संग्राम सिंह ने 1960 में एचईसी से अपने करियर की शुरुआत की और 1962 में इंटक से संबद्ध हटिया प्रोजेक्ट वर्कर्स यूनियन में उपाध्यक्ष चुने गए।
1969 में यूनियन के महामंत्री बनने के बाद, उनके नेतृत्व में 1971 में हुए त्रिपक्षीय समझौते ने एचईसी के श्रमिकों को बड़े लाभ दिलाए।
उन्होंने छोटे-बड़े 80 से अधिक श्रमिक समझौते कराए, जिससे हजारों मजदूरों की जिंदगी में बदलाव आया।
जब इंदिरा गांधी ने संदेश भेजकर की थी सराहना
1967 के रांची दंगे के बाद एचईसी के अल्पसंख्यक कर्मियों के हित में उन्होंने प्रबंधन पर दबाव बनाकर उन्हें एक जगह क्वार्टर आवंटित कराने की व्यवस्था कराई, जो आज भी कायम है।
उनके इस काम की सराहना खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संदेश भेजकर की थी। राणा संग्राम सिंह को इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिम्हा राव, सोनिया गांधी जैसे बड़े नेताओं का व्यक्तिगत समर्थन प्राप्त था।
राणा संग्राम सिंह ने एचईसी के लिए दो बार पुनरुद्धार पैकेज को मंजूरी दिलाने में अहम भूमिका निभाई।
एचईसी ही नहीं, बासल पतरातू, एसबीएल रांची, एसएनएल रांची, इंडियन एक्सप्लोसिव कर्मचारी यूनियन गोमिया समेत कई प्रतिष्ठानों में उनकी ट्रेड यूनियन नेतृत्व क्षमता की मिसाल दी जाती है।
एचईसी की मौजूदा आर्थिक संकट की घड़ी में भी राणा संग्राम सिंह ने श्रमिकों के हक के लिए लड़ाई जारी रखी थी।
वे ठेका श्रमिकों को स्थायी करने, वेतनमान बढ़ाने और अप्रेंटिसों की नियुक्ति के लिए अंतिम समय तक संघर्षरत रहे।
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