Vedic Almanac:
दिनांक – 11 जुलाई 2025
दिन – शुक्रवार
विक्रम संवत 2082
शक संवत -1947
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – वर्षा ॠतु
मास – श्रावण
पक्ष – कृष्ण
तिथि – प्रतिपदा 12 जुलाई रात्रि 02:08 तक तत्पश्चात द्वितीया
नक्षत्र -उत्तराषाढ़ा पूर्ण रात्रि तक
योग – वैधृति रात्रि 08:45 तक तत्पश्चात विष्कंभ
राहुकाल – सुबह 11:04 से दोपहर 12:44 तक
सूर्योदय – 05:35
सूर्यास्त – 06:23
दिशाशूल – पश्चिम दिशा मे
व्रत पर्व विवरण – पूर्णिमांत श्रावण मास आरंभ,विद्यालाभ योग (प्रातः05:56 से रात्रि 11:45 तक)केवल गुजरात-महाराष्ट्र,कर्नाटक,तमिलनाडु,आन्ध्रप्रदेश,आदि अमावस्यांत मास प्रचलन वाले राज्यो मे
विशेष – प्रतिपदा को कूष्माण्ड (कुम्हड़ा पेठा) न खाएं क्योकि यह धन का नाश करने वाला है (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)
चतुर्मास के दिनों में ताँबे व काँसे के पात्रों का उपयोग न करके अन्य धातुओं के पात्रों का उपयोग करना चाहिए।(स्कन्द पुराण)
चतुर्मास में पलाश के पत्तों की पत्तल पर भोजन करना पापनाशक है।
श्रावणमास
भगवान शिव का पवित्र श्रावण (सावन) मास 11 जुलाई 2025 शुक्रवार से शुरू हो रहा है, (उत्तर भारत हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार) मास आरंभ होगा)
श्रावण हिन्दू धर्म का पञ्चम महीना है। श्रावण मास शिवजी को विशेष प्रिय है । भोलेनाथ ने स्वयं कहा है—
द्वादशस्वपि मासेषु श्रावणो मेऽतिवल्लभ: । श्रवणार्हं यन्माहात्म्यं तेनासौ श्रवणो मत: ।।
श्रवणर्क्षं पौर्णमास्यां ततोऽपि श्रावण: स्मृत:। यस्य श्रवणमात्रेण सिद्धिद: श्रावणोऽप्यत: ।।
➡ अर्थात मासों में श्रावण मुझे अत्यंत प्रिय है। इसका माहात्म्य सुनने योग्य है अतः इसे श्रावण कहा जाता है। इस मास में श्रवण नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होती है इस कारण भी इसे श्रावण कहा जाता है। इसके माहात्म्य के श्रवण मात्र से यह सिद्धि प्रदान करने वाला है, इसलिए भी यह श्रावण संज्ञा वाला है।
श्रावण मास में शिवजी की पूजाकी जाती है | “अकाल मृत्यु हरणं सर्व व्याधि विनाशनम्” श्रावण मास में अकालमृत्यु दूर कर दीर्घायु की प्राप्ति के लिए तथा सभी व्याधियों को दूर करने के लिए विशेष पूजा की जाती है। मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए श्रावण माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे।
श्रावण मास में मनुष्य को नियमपूर्वक नक्त भोजन करना चाहिए ।
➡ श्रावण मास में सोमवार व्रत का अत्यधिक महत्व है
“स्वस्य यद्रोचतेऽत्यन्तं भोज्यं वा भोग्यमेव वा। सङ्कल्पय द्विजवर्याय दत्वा मासे स्वयं त्यजेत् ।।”
श्रावण में सङ्कल्प लेकर अपनी सबसे प्रिय वस्तु (खाने का पदार्थ अथवा सुखोपभोग) का त्याग कर देना चाहिए और उसको ब्राह्मणों को दान देना चाहिए।
“केवलं भूमिशायी तु कैलासे वा समाप्नुयात”
श्रावण मास में भूमि पर शयन का विशेष महत्व है। ऐसा करने से मनुष्य कैलाश में निवास प्राप्त करता है।
➡ शिवपुराण के अनुसार श्रावण में घी का दान पुष्टिदायक है।
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