रांची। झारखंड की छठी विधानसभा के चार दिवसीय विशेष सत्र का आज 12 दिसंबर को आखिरी दिन रहा। अंतिम दिन राज्यपाल के अभिभाषण व अनुपूरक बजट पर चर्चा के बाद सत्र समाप्त हो गया।
इसके साथ ही बिना नेता प्रतिपक्ष के विधानसभा सत्र चलने का झारखंड में एक अनूठा रिकार्ड भी बन गया है। बीजेपी अब तक नेता प्रतिपक्ष के नाम का ऐलान ही नहीं कर सकी है।
हालांकि, बिना नेता प्रतिपक्ष वाली विधानसभा में सिर्फ झारखंड ही नहीं, बल्कि हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा ङी शामिल हैं। वहां भी कुछ ऐसी ही स्थिति है।आईए जानते हैं बिना नेता प्रतिपक्ष वाले झारखंड, हरियाणा और महाराष्ट्र में कहां फंसा हुआ है पेंच।
विधायक दल के नेता की तरह काम कर रहे बाबूलालः
झारखंड में भारतीय जनता पार्टी मुख्य विपक्षी पार्टी के तौर पर उभरी है, लेकिन भाजपा तय नहीं कर पा रही है कि वह किसको विधायक दल का नेता चुने। झारखंड की अनोखी स्थिति यह है कि पिछली विधानसभा में चार साल से ज्यादा समय तक कोई नेता प्रतिपक्ष रहा ही नहीं।
हालांकि, चुनाव के बाद विधानसभा के पहले सत्र में बाबूलाल मरांडी विधायक दल के नेता की तरह बरताव कर रहे हैं और वे स्पीकर के चुनाव में प्रस्तावक बने तो निर्विरोध चुनाव के बाद मुख्यमंत्री के साथ स्पीकर को उनके आसन तक छोड़ने भी गए
लेकिन आधिकारिक रूप से उनके नाम की घोषणा नहीं हुई है। पिछले विधानसभा में भाजपा ने अपनी पार्टी का विलय करने वाले बाबूलाल मरांडी को विधायक दल का नेता चुना था
लेकिन दलबदल के आरोपों के कारण स्पीकर ने उनको नेता प्रतिपक्ष का दर्जा ही नहीं दिया। आखिर चार साल बाद उनकी जगह अमर बाउरी को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया।
हरियाणा में दो माह बाद भी नेता प्रतिपक्ष नहीः
हरियाणा में तो आठ अक्टूबर को ही नतीजे आए थे। वहां सरकार बने दो महीने से ज्यादा गुजर चुके हैं और कांग्रेस पार्टी ने अभी तक तय नहीं किया है कि नेता प्रतिपक्ष कौन होगा। इसे लेकर विधानसभा के पहले सत्र में खूब नोकझोंक भी हुई
नेता प्रतिपक्ष के लिए तय कुर्सी पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही बैठ रहे हैं, लेकिन अभी तक आधिकारिक रूप से उनको चुना नहीं गया है। इस बीच सरकार नेता प्रतिपक्ष के तौर पर चंडीगढ़ में उनको आवंटित बंगला खाली कराने की तैयारी में भी जुट गई है। कांग्रेस की आपसी खींचतान में विधायक दल का नेता नहीं तय हो पा रहा है।
महाराष्ट्र में किसी विपक्षी पार्टी को 10 फीसदी सीट नहीः
महाराष्ट्र में स्थिति थोड़ी अलग है। वहां किसी पार्टी को 10 फीसदी सीट यानी कम से कम 29 सीट नहीं मिली है। इसलिए सरकार किसी को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा देने को तैयार नहीं है। महा विकास अघाड़ी की तीनों पार्टियों ने मिल कर नेता प्रतिपक्ष पद पर दावा किया है।
यह अलग बात है कि दिल्ली विधानसभा में जब भाजपा को सिर्फ तीन सीटें मिली थीं तब भी आम आदमी पार्टी ने उसको नेता प्रतिपक्ष का पद दे दिया था और उसने ले भी लिया था।
लेकिन खुद भाजपा ऐसा सद्भाव किसी के प्रति नहीं दिखाती है। बता दें कि महाराष्ट्र के विपक्षी दलों में सबसे ज्यादा 20 सीटें शिवसेना (उद्धव गुट), 16 सीटें कांग्रेस और 10 सीटें एनसीपी (शरद पवार गुट) ने जीती हैं
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