झारखंड में रामनवमी
सपने में आये भगवान राम और शुरू हो हई रामनवमी शोभा यात्रा
जानिये झारखंड कैसे शुरू हुई रामनवमी और क्या है इसका इतिहास
झारखंड में रामनवमी का इतिहास 105 साल पुराना है। यहां रामनवमी शोभायात्रा निकालने का गौरवशाली इतिहास है।
भगवान श्रीराम का जन्म तो अयोध्या में हुआ था। पर वह झारखंड के लोगों के दिल में बसते हैं। यहां की रामनवमी देश-विदेश में मशहूर है।
इस मौके पर ऐसी भव्य और नयनाभिराम शोभायात्रा निकाली जाती है कि लाखों लोग इसे देखने उमड़ पड़ते हैं।
रामनवमी पर शोभायात्रा निकालने की परंपरा हजारीबाग से
हजारीबाग की रामनवमी देखने तो विदेशों से भी लोग आते हैं। विदेशी मीडिया भी इसके कवरेज के लिए पहुंचता रहा है। इसीलिए अब इसकी अंतर्राष्ट्रीय पहचान बन गयी है।
दरअसल रामनवमी पर शोभायात्रा निकालने की परंपरा भी हजारीबाग से ही शुरू हुई। 1918 में गुरु सहाय ठाकुर ने हजारीबाग के कुम्हरटोली से रामनवमी जुलूस की शुरुआत की थी।
इसके पीछे किवदंती यह है कि गुरु सहाय को एक रात सपना आया कि वह महावीरी झंडा लेकर पूरे क्षेत्र में भ्रमण कर रहे हैं।
इसके बाद उन्होंने पांच दोस्तों के साथ महावीरी झंडा लेकर पूरे क्षेत्र का भ्रमण किया। गाजे-बाजे के साथ विभिन्न मंदिरों का भ्रमण किया।
इसके बाद से ही रामनवमी पर जुलूस निकालने की परंपरा की नींव पड़ी। जब गुरु सहाय का निधन हो गया, तो उनके परिजनों और समाज के लोगों ने परंपरा को आगे बढ़ाया।
इसमें तय किया गया कि हर साल जिले में भगवान राम का जन्मोत्सव मनाया जायेगा। शहर के समाजसेवी हीरालाल महाजन, टोबरा गोप, कर्मवीर, कन्हैया, घनश्याम और पांचू जैसे रामभक्तों ने परंपरा को आगे बढ़ाया।
साल 1960 में शहर के समाजसेवियों ने मिलकर एक महासमिति का गठन किया।
रांची में रामनवमी शोभायात्रा की शुरुआत
इसके बाद 1929 में राजधानी रांची में रामनवमी शोभायात्रा की शुरुआत हुई। रांची में भी लाखों श्रद्धालु इसमें भाग लेते हैं।
प्रसिद्ध रचनाकार श्रवणकुमार गोस्वामी की पुस्तक ‘रांची : तब और अब’ में वर्णन है कि 17 अप्रैल 1929 को पहली बार रामनवमी पर छोटा सा जुलूस निकला था।
इसकी शुरुआत हजारीबाग के रामनवमी जुलूस को देखकर की गई थी। रांची के श्रीकृष्ण लाल साहू की शादी हजारीबाग में हुई थी।
1927 में रामनवमी के समय वे अपने ससुराल में थे। उन्होंने वहा का रामनवमी जुलूस देखा। फिर रांची आकर उन्होंने अपने मित्र जगन्नाथ साहू और अन्य लोगों को इसके बारे में बताया।
इसके बाद मित्रों में उत्सुकता जगी। फिर अगले साल 1928 में सभी लोग हजारीबाग की रामनवमी देखने गये। फिर सभी मित्रों ने 1929 में रांची में इसकी शुरुआत कर दी।
पहले जुलूस में केवल दो महावीरी झंडे थे। इसमें कृष्णलाल साहू, रामपदारथ वर्मा, राम बड़ाइक राम, नन्हकू राम, जगदीश नारायण शर्मा, लक्ष्मण राम मोची, जगन्नाथ साहू, गुलाब नारायण तिवारी आदि शामिल थे।
अगले साल 1930 में निकाले गये जुलूस में महावीरी झंडों की संख्या बढ़ गई। उस साल शोभायात्रा रातू रोड स्थित ग्वाला टोली से नन्हू भगत के नेतृत्व में निकाली गई थी।
शोभायात्रा में शामिल होती है झंडे
हर वर्ष शोभायात्रा में झंडों की संख्या में वृद्धि होती चली गई। फिर बड़ी संख्या में लोग इसमें शामिल होने लगे।
इस आयोजन को व्यवस्थित करने के लिए पांच अप्रैल 1935 को संतुलाल पुस्तकालय अपर बाजार में एक बैठक हुई।
इसमें महावीर मंडल का गठन किया गया। इसके प्रथम अध्यक्ष महंत ज्ञान प्रकाश उर्फ नागा बाबा तथा महामंत्री डॉ रामकृष्ण लाल बनाए गए।
तब से रामनवमी के अवसर पर यह शोभायात्रा नियमित रूप से निकल रही है। शुरुआती सालों में मुख्य शोभायात्रा रातू रोड से निकाली जाती थी, जो धीरे-धीरे बढ़ते हुए मेन रोड पहुंचती थी।
रांची में है 1500 से ज्यादा अखाड़ें
आज सिर्फ रांची 1500 से ज्यादा अखाड़ें हैं। सभी अखाड़े तपोवन मंदिर पहुंचते हैं। यहां 1929 में नकाले गये पहले झंडे की पूजा की जाती है।
इसमें अपर बाजार, भुतहा तालाब, मोरहाबादी, कांके रोड, बरियातू रोड, चडरी, लालपुर, चर्च रोड, मल्लाह टोली, चुटिया, ¨हदपीढ़ी आदि अखाड़ों के झंडे भी सम्मिलित होने लग गए।
रतन टाकीज तक पहुंचते-पहुंचते शोभायात्रा अत्यंत विशाल रूप ग्रहण कर लेती थी। सभी अखाड़ों के झंडे निवारणपुर स्थित तपोवन मंदिर के सामने वाले मैदान में पहुंचते थे।
आज भी यहीं पहुंचते हैं और यहीं इसका समापन या विसर्जन होता है। यहां आज भी 1929 में निकाला गया पहला झंडा मौजूद है, जिसकी पूजा की जाती है।
आज करीब पंद्रह सौ से ऊपर अखाड़े हैं। अब पंडरा शोभायात्रा का प्रस्थान बिंदु बन गया है। यहां से सबसे पहले शोभायात्रा निकलती है।
अपर बाजार के श्री महावीर चौक स्थित महावीर मंदिर पहुंचती है। यहां पूजन होता है। 1929 के पहले झंडे का भी यहां पूजन होता है। इसके बाद यहां से शोभायात्रा आगे बढ़ती है।
पूरे शहर से निकली शोभायात्रा तपोवन मंदिर पहुंचती है। अलबर्ट एक्का चौक पर भी अखाड़ों द्वारा विशाल झंडों का प्रदर्शन किया जाता है।
इसके बाद तपोवन मंदिर मैदान में विशाल झंडों को खड़ा किया जाता है। पहले मैदान बड़ा था। अब छोटा हो गया।
इस छोटे से मैदान में झंडों की कतार लग जाती है। एक छोटा सा मेला भी लग जाता है। मंदिर में भगवान का दर्शन-पूजन झंडाधारी करते हैं। इसके बाद यहां से वापसी।
ऐसी शोभायात्रा दूसरे प्रदेशों में नहीं निकलतीं। हर हाथ में महावीरी झंडा, तलवार, शस्त्र..प्रदर्शन और उद्घोष करते रामभक्त..हनुमान सेवक..।
रामनवमी पर पूरा झारखंड महावीरी झंडों से पट जाता है। हजारीबाग और रांची की सभी सड़कों के किनारे शान से महावीरी झंडे लहराते दिखते हैं।
रात दस बजे तक बड़ी बड़ी महावीरी पताकाएं सड़कों पर निकलती रहती हैं। हर हाथ में पताका, तलवार और कटार होते हैं। शक्ति का प्रदर्शन होता है। प्रभु राम का जयकारा लगता है।
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