रांची। झारखंड के कुड़मी समाज को राज्य सरकार से भारी निराशा हुई है। सीएम हेमंत सोरेन ने कुड़मी जाति को अनुसूचित जनजाति यानी एसटी में शामिल करने से साफ मना कर दिया है।
कुड़मी जाति के लोग लंबे समय से अपने को एसटी में शामिल करने की मांग करते रहे हैं। झारखंड में कुड़मी आबादी सरकारी तौर पर 16 प्रतिशत मानी जाती है। हालांकि उनका दावा है कि आबादी 25 प्रतिशत है।
झारखंड की सियासत में कुड़मी जाति के वोट निर्णायक माने जाते हैं। कुड़मी नेता अपनी आबादी झारखंड की कुल आबादी में एक चौथाई बताते हैं।
अपनी आबादी की वजह से विधानसभा की 30 सीटों पर कुड़मी वोटर निर्णायक माने जाते हैं। लंबे समय से कुड़मी समाज एसटी में शामिल किये जाने की मांग उठा रहा है।
इनका दावा है कि ब्रिटिश शासन में ये आदिवासी ही थे, लेकिन बाद में उन्हें एसटी से अलग कर ओबीसी में डाल दिया गया। तब से रह-रह कर वे खुद को एसटी में शामिल करने की मांग करते रहे हैं।
वे कई बार आंदोलन भी कर चुके हैं। पिछले ही साल पश्चिम बंगाल और झारखंड के कुड़मी बहुल इलाकों में कई दिनों तक कुड़मी लोगों ने रेल-रोड रोको आंदोलन भी किया था।
कुड़मी एसटी मान्यता मुद्दा
विधानसभा के मॉनसून सत्र में आजसू विधायक लंबोदर महतो ने कुड़मी को एसटी में शामिल करने का मुद्दा उठाया। उन्होंने इस बारे में राज्य सरकार का रुख जानना चाहा।
सरकार ने जो जवाब दिया, उससे कुड़मी समाज को भारी निराशा हुई है। सरकार की ओर से पहले मंत्री बैजनाथ राम ने कहा कि कुड़मी को एसटी में शामिल करने का कोई प्रस्ताव सरकार के पास विचाराधीन नहीं है।
फिर हेमंत सोरेन ने जवाब दिया कि आदिवासी समाज को ही वे हक नहीं दिला पा रहे हैं तो फिर और किसी जाति को कुड़मी में शामिल करने का सवाल ही नहीं उठता।
झारखंड की राजनीति में दिखता के कुड़मियों का प्रभाव
आजसू पार्टी का नेतृत्व करने वाले सुदेश महतो कुड़मी समाज से ही आते हैं। वे झारखंड के उप मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। उनकी पार्टी के विधायक कुड़मी वोटों के सहारे जीतते रहे हैं। इसके बावजूद कुड़मी समाज की एसटी में शामिल करने की मांग अब तक पूरी नहीं हो पाई।
इसी समाज से एक और नेता जयराम महतो का लोकसभा चुनाव में उदय हुआ है। जयराम महतो ने झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति (JBKSS) का गठन किया है और इस बार विधानसभा चुनाव में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने की घोषणा कर चुके हैं।
जेबीकेएसएस ने लोकसभा चुनाव में भी अपने उम्मीदवार उतारे थे। हालांकि तब उनकी पार्टी अस्तित्व में नहीं आई थी। वे खुद भी गिरिडीह से लोकसभा के उम्मीदवार थे और वोट हासिल करने के मामले में दूसरे नंबर पर रहे।
जेबीकेएसएस के उम्मीदवारों ने कहीं से जीत तो हासिल नहीं की, लेकिन पहली बार में ही उन्हें कितने वोट मिले, उससे उन्होंने लोगों का ध्यान खींचा है।
झारखंड की राजनीति में स्थापित पार्टियों के लिए जयराम महतो चिंता का कारण तो बन ही गए हैं, सबसे अधिक चिंता आजसू प्रमुख सुदेश महतो को है। इसलिए कि अभी तक वे अपने को कुड़मी नेता के रूप में प्रोजेक्ट कर रहे थे।
आदिम जनजाति का का मिला हुआ था दर्जा
कुड़मी विकास मोर्चा की दलील है कि 1931 से पहले कुड़मी को प्रिमिटिव ट्राइब का दर्जा मिला हुआ था। प्रिमिटिव ट्राइब में 13 जनजातियों को शामिल किया गया था।
1950 के गजट में कुड़मी को प्रिमिटिव ट्राइब की सूची से बाहर कर दिया गया। अन्य 12 जनजातियों यथावत रहीं। कुड़मी समाज ने सिर्फ सड़क पर ही एसटी दर्जा के लिए आवेदन नहीं किया, बल्कि यह मामला झारखंड हाईकोर्ट में भी पहुंचा था।
तब हाईकोर्ट ने कहा कि इस मामले पर विस्तार से स्टडी करने की जरूरत है। जवाहर लाल नेहरू के पीएम रहते भी यह मामला संसद में उठा था। तत्कालीन सांसद हृदय नाथ कुजूर ने यह मुद्दा उठाया था।
पिछले ही साल इस बाबत आदिवासी मामलों के मंत्री रहते अर्जुन मुंडा ने कहा था कि उनके मंत्रालय में कुड़मी को आदिवासी का दर्जा देने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है।
नाराजगी पड़ सकती है महंगी
हेमंत सोरेन सरकार के पल्ला झाड़ लेने के बाद इतना तो तय है कि कुड़मी वोटर जेएमएम से नाराज ही होंगे। भाजपा के प्रति कुड़मी समाज की नाराजगी इस बार लोकसभा चुनाव में दिख चुकी है।
कुड़मी समाज के नाम पर राजनीति करने वाली पार्टी आजसू के प्रमुख सुदेश महतो से कुड़मी वोटरों की नाराजगी कम नहीं होगी, क्योंकि सत्ता में रह कर भी वे अपने समाज की इस मांग को पूरा कराने में असफल रहे हैं।
अब इस समाज के वोटरों को जयराम महतो से ही उम्मीद दिखती है। जयराम को लोकसभा चुनाव में जैसा समर्थन मिला है, उसमें कुड़मी वोटरों की बड़ी भूमिका है।
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