Screen Time:
नई दिल्ली, एजेंसियां। आजकल घर-घर में एक आम दृश्य बन चुका है – बच्चे कहते हैं, “पहले मोबाइल दो, फिर खाना खाऊंगा!” खाने का समय अब सिर्फ भूख मिटाने का नहीं, बल्कि मोबाइल की स्क्रीन से जुड़ा मनोरंजन बन गया है। लेकिन यह आदत बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो रही है।
Screen Time: विशेषज्ञों के अनुसार
विशेषज्ञों के अनुसार, लगातार मोबाइल या टैबलेट स्क्रीन पर ध्यान केंद्रित करने से बच्चों में कई समस्याएं उभर रही हैं। सबसे पहले तो ध्यान की कमी दिखाई देती है। स्क्रीन के ज़रूरत से ज्यादा इस्तेमाल से बच्चों का फोकस कमजोर होता जा रहा है। इसके अलावा, वे चिड़चिड़े और गुस्सैल हो रहे हैं क्योंकि लगातार डिजिटल उत्तेजना उनके भावनात्मक संतुलन को बिगाड़ रही है।
Screen Time: सामाजिक दूरी भी एक गंभीर समस्या है
बात सिर्फ मानसिक स्थिति तक सीमित नहीं है। सामाजिक दूरी भी एक गंभीर समस्या बन गई है। मोबाइल की आदत बच्चों को परिवार से बातचीत और जुड़ाव से दूर कर रही है, जिससे वे अकेलापन महसूस करने लगते हैं। खाने का समय, जो कभी परिवार के साथ बातचीत और जुड़ाव का जरिया हुआ करता था, अब एक मूक क्रिया बनता जा रहा है।
Screen Time: सुधारने के लिए माता-पिता की भूमिका है जरूरी
इस स्थिति को सुधारने के लिए माता-पिता की भूमिका बेहद अहम है। जरूरी है कि घर में “नो-स्क्रीन डाइनिंग रूल” अपनाया जाए — खाने के समय मोबाइल, टीवी सभी बंद रहें। खुद भी स्क्रीन पर समय कम बिताएं, क्योंकि बच्चे वही सीखते हैं जो वे देखते हैं। भोजन को संवाद का समय बनाएं — कहानियां सुनाएं, हँसी-मज़ाक करें। धीरे-धीरे स्क्रीन टाइम को कम करें, न कि एक झटके में बंद करें।
छोटी उम्र की ये आदतें बच्चों के व्यक्तित्व को गहराई से प्रभावित करती हैं। इसलिए जरूरी है कि समय रहते सतर्कता बरती जाए, ताकि बच्चे एक संतुलित, सामाजिक और भावनात्मक रूप से मजबूत व्यक्तित्व के साथ बड़े हो सकें।
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