Maternity Leave:
नई दिल्ली, एजेंसियां। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला सुनाया है जो देशभर की महिलाओं के लिए उम्मीद और अधिकारों की नई रोशनी लेकर आया है। अब तीसरे बच्चे पर भी मातृत्व अवकाश को संवैधानिक अधिकार मान लिया गया है। यह निर्णय तमिलनाडु की एक सरकारी शिक्षिका को न्याय दिलाने के साथ-साथ पूरे देश में महिलाओं की गरिमा और समानता की दिशा में एक बड़ा कदम है।
Maternity Leave: केस की पृष्ठभूमि: तमिलनाडु की शिक्षिका की लड़ाई
तमिलनाडु की एक सरकारी स्कूल की शिक्षिका, जो अपने पहले विवाह से दो बच्चों की मां थीं, ने जब अपने दूसरे विवाह से बच्चे को जन्म दिया, तो उन्होंने मातृत्व अवकाश की मांग की। लेकिन राज्य सरकार ने “फंडामेंटल रूल 101(ए)” का हवाला देते हुए उनकी अर्जी यह कहकर खारिज कर दी कि अवकाश केवल दो जीवित बच्चों तक ही सीमित है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: “मातृत्व अवकाश केवल नियम नहीं, एक अधिकार है”
जस्टिस अभय एस ओका और उज्जल भुयान की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि मातृत्व अवकाश केवल वैधानिक लाभ नहीं, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत महिलाओं का मौलिक अधिकार है, जिसमें जीवन, गरिमा, निजता, स्वास्थ्य और गैर-भेदभाव की गारंटी दी गई है।
“जनसंख्या नियंत्रण नीतियों और प्रजनन अधिकारों के बीच संवेदनशील संतुलन जरूरी है।” – सुप्रीम कोर्ट
Maternity Leave: मातृत्व लाभ अधिनियम 2017 की व्याख्या
अदालत ने स्पष्ट किया कि मातृत्व लाभ एक्ट, 2017 यह कहता है कि दो बच्चों तक 26 सप्ताह और उसके बाद 12 सप्ताह का मातृत्व अवकाश दिया जाए। लेकिन यह कहीं नहीं लिखा कि दो से अधिक बच्चों वाली महिला को अवकाश नहीं मिलेगा। इससे स्पष्ट होता है कि तीसरे बच्चे पर भी मातृत्व अवकाश संभव है, हां, उसकी अवधि सीमित हो सकती है लेकिन पूर्णतः इनकार असंवैधानिक है।
Maternity Leave: अंतरराष्ट्रीय कानूनों का संदर्भ
सुप्रीम कोर्ट ने कई अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार ढांचों का भी उल्लेख किया जो महिलाओं के प्रजनन स्वतंत्रता, स्वास्थ्य के अधिकार और कामकाजी महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल की वकालत करते हैं। यह फैसला भारत को एक जिम्मेदार और संवेदनशील लोकतंत्र के रूप में वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करता है।
कानूनी लड़ाई का सफर
- पहले मद्रास हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने शिक्षिका के पक्ष में फैसला दिया था
- लेकिन डिवीजन बेंच ने नियमों का हवाला देकर उसे पलट दिया
- आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप कर इस विवाद को संविधानिक मूल्यों के आधार पर सुलझाया और शिक्षिका को सभी लंबित लाभ दो महीने के अंदर देने का आदेश दिया
महिलाओं के लिए क्या है इसका मतलब?
यह निर्णय स्पष्ट करता है कि किसी भी महिला के मातृत्व को ब्यूरोक्रेटिक नियमों या संख्या के आधार पर सीमित नहीं किया जा सकता। - यह महिलाओं के लिए समानता, सम्मान, और स्वास्थ्य के संरक्षण की दिशा में एक साहसी कदम है
- यह फैसले सरकारी नीतियों को कानूनी और मानवीय संवेदनाओं के अनुरूप ढालने का मार्गदर्शन देता है
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