युवाओं से किए वादों का क्या हुआ
रांची। वादे हैं वादों का क्या। इस सीरीज के पहले भाग में हमने राजनीतिक दलों द्वारा महिलाओं से किये गये वादों की याद दिलाई थी।
हमने आपके समक्ष 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान महिलाओं से किए गए वादों का विश्लेषण पेश किया था।
आज इस सीरीज के दूसरे भाग में हम पिछले चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा युवाओं से किये वादों की फेहरिस्त लेकर आये हैं।
इसमें मौजूदा झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल गठबंधन ने 2019 के विधानसभा चुनाव में राज्य के युवाओं से क्या वादे किए थे और उन्हें पूरा करने के लिए क्या प्रयास किये गये, उन पर नजर डालेंगे।
कौन से वादे पूरे हुए और कौन से महज वादे ही रह गये उनके बारे में भी बतायेंगे।
झारखंड में होती रही है युवाओं की अनदेखी
युवाओं को किसी भी देश या राज्य का भविष्य माना जाता है। पर झारखंड में लगभग हर सरकार ने युवाओं की अनदेखी की है।
बातें तो सभी बड़ी-बड़ी करते हैं, पर आज तक यहां युवाओं का कुछ भला नहीं हुआ। परीक्षा सही समय पर नहीं होती और अगर होती भी है तो पेपर लीक हो जाता है या फिर मामला कोर्ट केस में उलझ जाता है।
झारखंड में ऐसी कोई भी नियुक्ति परीक्षा नहीं हुई, जो विवादित न रही हो। सरकारी विभागों में हजारों पद रिक्त पड़े हैं, लेकिन बहालियां निकलने का नाम नहीं लेतीं।
झामुमो ने किये थे ये वादे
2019 के विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने युवाओं से वादा किया था कि सरकार बनने पर वे सरकारी विभागों में खाली पड़े सभी पदों को 6 महीने के भीतर भर देंगे।
2019 में जेएमएम की सरकार बनी और अब साढ़े चार साल बीत चुके हैं, लेकिन पिछले आठ साल से पेन्डिंग पड़ी CGL जैसी महत्वपूर्ण परीक्षा भी नहीं हो पाई।
इसके अलावा, प्राइवेट नौकरियों में स्थानीय लोगों को 75% आरक्षण लागू करना, सरकार बनने के दो साल के भीतर 5 लाख युवाओं को नौकरी देना, बेरोजगार युवाओं को प्रति माह 5000 रुपये बेरोजगारी भत्ता देना और ओबीसी को सरकारी नौकरियों में 27% आरक्षण देने के वादे किए गए थे।
ओबीसी के 27 प्रतिशत आरक्षण के लिए सरकार ने प्रस्ताव तैयार कर आगे बढ़ाया भी पर मामला तकनीकी पेंच में उलझकर रह गया। बाकी सभी तो महज वादे ही रह गये।
कांग्रेस ने युवाओं से किये ये वादे
कांग्रेस ने भी 2019 के चुनाव में झारखंडी युवाओं से कई वादे किए थे, मसलन हर जिले में एक पुस्तकालय बनेगा, सरकारी खाली पदों को 6 महीने के भीतर भरा जायेगा, बेरोजगार युवाओं को बेरोजगारी भत्ता दिया जायेगा और ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को पुलिस में नौकरी दी जायेगी। लेकिन, अब पार्टी का कोई नेता इन वादों को याद करने तक को तैयार नहीं।
नहीं पूरे हो सके ये वादे
झारखंड के 70 हजार पुलिसकर्मियों में महिलाएं मात्र चार हजार है। यानी कुल संख्या का पांच से छह प्रतिशत।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कई बार मंच से पुलिस में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की बात करते नजर आते हैं। लेकिन सच्चाई क्या है, ये तो आंकड़े ही बयां कर रहे हैं।
यही हाल अन्य वादों का भी है। कहते हैं पुस्तकों में सारे संसार का ज्ञान भरा होता है। लेकिन झारखंडी छात्रों के लिए सरकार जिला स्तर पर भी एक पुस्तकालय नहीं खोल पाई।
बेरोजगार युवा अपना सर्टिफिकेट लेकर दर-दर भटक रहे हैं। उनकी अलमारियों में मेडल और डिग्रियां भरी पड़ी हैं। किताबों का अंबार घर में लगा है।
बस नहीं है तो एक नौकरी, जिसकी आस में वे हर उस नेता की बात पर सहज ही भरोसा कर लेते हैं, जो उन्हें नौकरी दिलाने की बात करता है। उनके अंदर यह उम्मीद जगती है कि शायद ये अपना वादा पूरा कर दे।
कोरोना काल और राजनीतिक अस्थिरता को कारण बता रही सरकार
आज जब युवा सरकार को इन वादों की याद दिलाते हैं, तो सरकार कोरोना काल और राजनीतिक अस्थिरता का बहाना बनाकर खुद को बचाने का प्रयास करती दिखती है।
परेशान हैं राज्य के युवा
राज्य के युवा परेशान हैं और खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। सरकार से बार-बार किए गए वादे अब उनके लिए महज एक छलावा बन गए हैं।
बेरोजगारी, परीक्षा की अनियमितता, और रिक्त पदों पर बहाली न होना इन समस्याओं ने झारखंड के युवाओं का मनोबल तोड़ा है।
अब इन छात्रों और युवाओं का धैर्य जवाब देने लगा है। इसीलिए ये गाहे-बगाहे सड़क पर उतर कर अपना आक्रोश भी जता रहे है। पर इन सड़क पर उतरनेवालों को पुलिस की लाठियां खानी पड़ रही हैं।
ये युवा सरकार को उसका वादा याद दिलाने के लिए सड़क पर उतर रहे हैं, पर यहां भी उनकी आवाज बल पूर्वक दबा दी जा रही है।
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