कोझिकोड (केरल): उत्तरी केरल के कोझिकोड जिले की रहने वाली महिला सारिका ए. के. ने गंभीर बीमारी सेरेब्रल पाल्सी से ग्रस्त होने के बावजूद सिविल सेवा की परीक्षा उत्तीर्ण की।
सेरेब्रल पाल्सी (सीपी) एक जन्मजात बीमारी है, जो किसी व्यक्ति की चलने-फिरने, संतुलन बनाए रखने की क्षमता को प्रभावित करती है।
संघ लोक सेवा आयोग द्वारा मंगलवार को जारी किये गये परिणामों के अनुसार, सारिका ने अपने दूसरे प्रयास में सिविल सेवा की परीक्षा उत्तीर्ण करते हुए 922 रैंक हासिल की।
वह अपने दाहिने हाथ का उपयोग नहीं कर पाती हैं और मोटर चालित व्हील-चेयर को नियंत्रित करने के लिए अपने बाएं हाथ का इस्तेमाल करती हैं। उन्होंने कहा कि शुरुआत में वह नतीजे से हैरान थीं।
सारिका ने कहा, ”मुझे यह उम्मीद थी कि मैं परीक्षा उत्तीर्ण कर लूंगी। मुझे खुशी है कि मैंने यह कर दिखाया। मेरे पास अपनी खुशी जाहिर करने के लिए शब्द नहीं हैं।”
सारिका ने बताया कि उन्होंने स्नातक होने के बाद सिविल सेवा की परीक्षा देने का फैसला किया था। अपने परिवार, दोस्तों और शिक्षकों के समर्थन की बदौलत वह इसमें सफल भी हो गईं।
उन्होंने एक टीवी चैनल को बताया, ”मेरे माता-पिता मेरे सबसे बड़े समर्थक हैं।”
यह पूछे जाने पर कि दिव्यांग व्यक्तियों को आप क्या संदेश देना चाहेंगी, इसके जवाब में सारिका ने पाउलो कोएल्हो की पुस्तक “अलकेमिस्ट” की एक प्रसिद्ध पंक्ति का उल्लेख करते हुए कहा, ”जब आप किसी चीज को दिल से चाहते हैं तो पूरी कायनात उसे हासिल करने में आपकी मदद करने में जुट जाती है।”
उन्होंने अमेरिका की एक महिला जेसिका कॉक्स का भी जिक्र किया जो हाथ नहीं होने के बावजूद एक लाइसेंस प्राप्त पायलट बन गई थीं।
सारिका ने यह भी बताया कि सिविल सेवा के विभिन्न चरणों को उन्होंने कैसे पास किया और हर बार उन्हें किन परेशानियों का सामना करना पड़ा।
उन्होंने कहा, ”सिविल सेवा परीक्षा के सभी चरण कठिन हैं।” सारिका ने बताया कि प्रारंभिक परीक्षा केंद्र कोझिकोड में था और ये दिव्यांग व्यक्तियों के लिए अनुकूल था।
उन्होंने बताया कि सिविल सेवा के आखिरी चरण की परीक्षा तिरुवनंतपुरम में आयोजित की गई थी और चूंकि यह एक सप्ताह तक चलनी थी इसलिए वह और उनके माता-पिता वहां किराये पर रहे। सारिका ऑटो-रिक्शा से परीक्षा केंद्र तक जाती थीं।
सारिका ने बताया कि उनके पिता कतर में काम करते हैं, लेकिन वह इसके लिए वापस आ गये थे।
सिविल सेवा की अंतिम परीक्षा लिखित थी, इसलिए सारिका को एक लेखक की मदद लेनी पड़ी।
मुख्य परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद साक्षात्कार दिल्ली में होना था और इस दौरान वह वहां केरल हाउस में रहीं।
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