बकाया 1.36 लाख करोड़ की मांग खारिज करने पर झारखंड की राजनीति गरमाई
रांची। केंद्र सरकार ने कोयला रॉयल्टी और राजस्व मद में झारखंड के बकाए 1.36 लाख करोड़ की मांग खारिज कर दी है। इसको लेकर झारखंड में राजनीति गरमा गई है। केंद्र और राज्य के बीच तनाव बढ़ गया है।
झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने जो जवाब दिया है, उसमें कोल इंडस्ट्री का उल्लेख ही नहीं है। चौधरी ने चालाकी से 2021-22, 2022-23 और 2023-24 के जीएसटी, सेंट्रल असिस्टेंस, स्पेशल असिस्टेंस का डेटा बताकर बकाए से इंकार कर दिया है।
उन्होंने कहा कि भू-राजस्व विभाग ने कोल इंडिया को 15 दिनों के भीतर जवाब देने का अल्टीमेटम दिया है। अगर कोल इंडिया ने बकाया नहीं दिया, तो हम राजमहल से राजहरा तक कोयला खदान नहीं चलने देंगे। कोयले का एक ढेला भी बाहर नहीं जाएगा। हम बकाया छोड़नेवाले नहीं है। उन्होंने कहा कि भाजपा के मंत्री- सांसद आज कहां हैं। हमने बता दिया है कि किस मद में कितना बकाया है।
सीएम ने पीएम को लिखा है पत्रः
सुप्रियो के अनुसार मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को लिखे पत्र में इसका पूरा डिटेल है। भूमि अधिग्रहण, कोल वाश और सूद में कितना बकाया है। हमारे पक्ष में सुप्रीम कोर्ट की नौ सदस्यीय बेंच का आदेश आ चुका है। उसमें कहा गया है कि रॉयल्टी टैक्स नहीं है।
अब हम झारखंड के भूखंड से रेलवे की होनेवाली माल ढुलाई के फ्रेट पर भी रॉयल्टी लेंगे। यह झुकनेवाली नहीं, हक लेनेवाली सरकार है। जिन निजी कंपनियों को झारखंड में कोयला खदान मिला है, वे पहले राज्य सरकार का पैसा जमा करे, फिर फावड़ा चलाया। नहीं तो सब बंद होगा।
झारखंड सरकार ने शुरू की कानूनी प्रक्रियाः
कोल कंपनियों के यहां 1.36 लाख करोड़ रुपए बकाए की वसूली के लिए राज्य सरकार ने कानूनी प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया है। राजस्व निबंधन एवं भूमि सुधार विभाग द्वारा आदेश जारी किया गया है।
भू-राजस्व विभाग के विशेष सचिव को नोडल पदाधिकारी बनाया गया है। विशेष सचिव 15 दिनों के अंतराल पर भू-राजस्व सचिव को विधिक कार्रवाई की प्रगति से अवगत कराएंगे।
हेमंत बोले- हमारी मांग जायज, भाजपा सांसद भी आवाज उठाएः
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा है कि हमारी मांग जायज है। राज्य के भाजपा सांसद भी बकाए की मांग के लिए केंद्र और संसद में आवाज बुलंद करें। मंगलवार को सोशल मीडिया पोस्ट में उन्होंने लिखा है कि भाजपा सांसदों से उम्मीद है कि वे आवाज बुलंद करेंगे। झारखंड के विकास के लिए यह बेहद जरूरी है।
प्री बजट मीटिंग में भी रखेंगे मांगः
इधर, राज्य सरकार 20 दिसंबर को राजस्थान के जैसलमेर में राज्यों के साथ केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की होने वाली केंद्रीय प्री बजट मीटिंग में भी इस मांग को उठाएगी। वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर राज्य की ओर से मेमोरेंडम रखेंगे। वित्त सचिव प्रशांत कुमार भी रहेंगे।
राज्य सरकार केंद्रीय प्री बजट मीटिंग में याद दिलाएगी कि वर्ष 2022 में केंद्रीय वित्त मंत्री को सीएम हेमंत सोरेन ने उन बकाए के लिए उन्हें पत्र लिखा था। बैठक में वह पत्र भी पेश करेगी। वाश्ड कोल के रॉयल्टी मद में 2900 करोड़ और कॉमन कॉज जजमेंट के आधार पर 32,000 करोड़ बकाया है।
इसके अलावा सरकारी जमीन का अधिग्रहण मद का 1.01 लाख करोड़ का बकाया है। राज्य सरकार का स्टैंड है कि झारखंड में कोयले का उत्खनन एक महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि है। जिससे केंद्र सरकार को भारी राजस्व की प्राप्ति होती है।
कोल कंपनियों द्वारा राज्य सरकार को भूमि के उपयोग के लिए मुआवजा दिए जाने का प्रावधान है। लेकिन, झारखंड में कार्यरत कोल कंपनियां राज्य सरकार को अधिग्रहित भूमि का मुआवजा का भुगतान नहीं कर रही है।
क्या है मामलाः
बिहार के निर्दलीय सांसद पप्पू यादव के लोकसभा में पूछे गए प्रश्न के जवाब में सोमवार को केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने संसद में कहा था कि कोयले से प्राप्त 1.40 लाख करोड़ रुपए के राजस्व के रूप में अर्जित कर में झारखंड सरकार का कोई हिस्सा से केंद्र सरकार के पास न बकाया है न ही लंबित है।
चुनाव हारने के बाद निर्लज्जता की हद पार हुईः कांग्रेस
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष केशव महतो कमलेश ने कहा है कि चुनाव हारने के बाद भाजपा निर्लज्जता की हद पार कर रही है। 1.36 लाख करोड़ रुपए बकाए की मांग ठुकराना केंद्र सरकार के मन में आए खोट को उजागर करता है।
केंद्र झारखंड का पैसा हड़पने की कोशिश कर रहा है। बकाया के लिए सरकार कानूनी लड़ाई लड़ेगी। राज्य के अधिकारियों द्वारा हर मौके पर बकाए की मांग की गई है, लेकिन केंद्र ने सौतेलेपन का व्यवहार अपनाए रखा है।
बकाए का ब्रेकअप दे सरकार, केंद्र से बात करेंगेः बीजेपी
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि राज्य सरकार को बताना होगा कि बकाया पैसा किस-किस वर्षों का है। सरकार पूरा ब्रेकअप दे। उस ब्रेकअप में वर्षवार और परियोजनावार बकाए का आंकड़ा होना चाहिए।
अगर आंकड़ा सही हुआ तो हम भी केंद्र पर दबाव डालेंगे कि वह भुगतान करे। सरकार चाहे तो अखबारों में ब्रेकअप को छपवा सकती है। ऐसा हुआ तो सभी जान जाएंगे कि सही में बकाया कितना है।
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