धनबाद। बृजेश सिंह… यह नाम है उत्तर प्रदेश के बनारस जिले की हद में बसे धरहरा गांव के बीते कल के एक पढ़ाकू होनहार बालक और आज के माफिया डॉन का।
माफिया भी वो जिसके नाम से मुख्तार अंसारी जैसे बाहुबली के भी कान खड़े हो जाते ते। आलम यह है कि जिस गली से बृजेश सिंह की परछाई भी निकल चुकी हो, उस गली को अपनी आंख से देख पाने की जुर्रत बड़ो-बड़ो की नहीं है।
आइए जानते हैं कि आखिर हाई स्कूल इंटर में टॉप क्लास नंबर से पढ़-बढ़ रहा यह छात्र, बीएससी की पढ़ाई करते वक्त माफियागिरी की गलियों में माफिया डॉन बृजेश सिंह बनने को कब क्यों और कैसे कूद पड़ा? इतना ही नहीं, सबसे बड़ा सवाल है कि आज डॉन बृजेश सिंह कहां है।
होनहार छात्रे से डान तक का सफर
दरअसल जब बृजेश सिंह बीएससी की पढाई कर रहा था तभी उसी के आसपास उनके पिता रविंद्र नाथ सिंह का कत्ल कर दिया गया। कत्ल की जड़ में जमीनी विवाद था।
यह बात सन् 1984 के आसपास की है। बस फिर क्या था? एक साल के भीतर पिता के कत्ल का हिसाब बराबर करने की हनक में अपराध की दुनिया में कूदे बृजेश सिंह ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
यह कहिए कि जरायम की काली दुनिया के अंधेरों ने उन्हें पीछे मुड़कर देखने ही नहीं दिया। पिता के कातिल हरिहर सिंह को कत्ल करने के बाद बृजेश के सिर पर कत्ल का वो पहला मुकदमा दर्ज हुआ था।
उसके बाद तो बृजेश सिंह का थाने-चौकी पुलिस कोर्ट कचहरी वकीलों जेल से मिलना-जुलना रोजमर्रा की आदत सा बन गया।
बृजेश सिंह ने ऐसे रखा अपराध की दुनिया में कदम
पिता के कातिल को ठिकाने लगाने के बाद बृजेश सिंह का जब अप्रैल सन् 1986 में चंदौली जिले के सिकरौरा गांव में हुए एक कत्ल में भी नाम आ गया। तो फिर अपराध की दुनिया से बृजेश सिंह के बाहर निकल पाने की थोडी-बहुत बची गुंजाइश भी खत्म हो गई।
जिंदगी में दो कत्ल क्या सिर-माथे लगे। फिर तो कत्ल दर कत्ल समझो बृजेश सिंह की किस्मत ही बन गए। गांव के पूर्व प्रधान रामचंद्र यादव सहित उसके परिवार के 6 लोगों के कत्ल में भी बृजेश सिंह का नाम सबसे ऊपर दर्ज हुआ।
हालांकि 32 साल बाद सन् 2018 आते आते कोर्ट ने बृजेश को उस मामले में ब-इज्जत बरी कर दिया। इससे बृजेश ने जहां चैन की सांस ली वहीं, दुश्मनों में खलबली मच गई। क्योंकि अब तक बृजेश सिंह का नाम बनारस की गलियों से निकल दिल्ली मुंबई तक जा पहुंचा था।
इतना ही नहीं, झारखंड के धनबाद के अपराध जगत में भी बृजेश सिंह का नाम काफी इज्जत से लिया जाता है।
बृजेश सिंह से मुख्तार अंसारी की थी अदावत
हालत इतने बदतर हो चुके थे कि, देश में कहीं भी विशेषकर दिल्ली मुंबई या झारखंड में कोई बड़ी आपराधिक घटना हो, तो थाने-चौकी के रिकार्ड में चढ़ती बृजेश सिंह के ही नाम पर थी। जिस मुकदमे में समझिए बृजेश सिंह का नाम जुड़ा जाता, तो उस मुकदमे की कानूनी फाइलें अपने आप ही अलग वजन वाली नजर आने लगती थीं।
अब तक बृजेश सिंह को जेल यात्रा के दौरान गाजीपुर का खूंखार हिस्ट्रीशीटर त्रिभुवन मिल चुका था। जिसका काम सिर्फ और सिर्फ बड़े बड़े कामों के ठेके/टेंडर निकलवाना था। इनमें मुख्य रुप से करोड़ों रुपए के रेलवे के टेंडर भी शामिल थे।
इन ठेकों/टेंडर्स पर मुख्तार अंसारी पहले से कुंडली मारकर बैठा था। बृजेश सिंह के कदमों की आहट ने मुख्तार अंसारी के कामकाज में खलल डालना शुरु कर दिया।
रातों रात फर्श से अर्श पर पहुंचा बृजेश सिंह
लिहाजा बिना किसी आमने-सामने की लड़ाई के ही दोनो एक दूसरे के खून के प्यासे बन बैठे। यहां तक तो सब जो चला वो कोई ज्यादा नहीं था।
पूर्वांचल के इस बाहुबली माफिया डॉन की असली कहानी तो तब शुरू होती है, जब वह मुंबई पहुंचकर अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम की नजर में आया।
दाउद को बृजेश का काम और काबिल लगा। सो उसने बृजेश सिंह को एक ऐसा काम सौंप दिया, जिसने अपराध जगत में बृजेश सिंह को रातों रात फर्श से अर्श पर पहुंचा दिया।
वह काम था दाउद के इशारे पर उसकी खुशी के लिए अस्पताल में दाखिल दाउद के गुर्गे को गोलियों से भून डालना।
दाऊद के दुश्मन का कर दिया था कत्ल
काम बेहद टेढ़ा था। बृजेश सिंह भी मगर दाऊद से हासिल उस काम में खोना नहीं चाहता था। क्योंकि उसी काम से तो बृजेश सिंह और दाऊद की दोस्ती और पुख्ता होनी थी।
लिहाजा बनारस से लेकर दिल्ली मुंबई से अपने द्वारा अंजाम दिए गए हर अपराध की स्क्रिप्ट मुंबई या फिल्मों से भी बेहतर लिखने वाले, बृजेश सिंह ने अपने साथी बदमाशों के साथ जाकर मुंबई के जेजे अस्पताल में घायलावस्था में इलाज करा रहे, उसके (दाऊद के दुश्मन) को घेर कर गोलियां बरसाकर टपका दिया। यह बात है सितंबर सन् 1982 की।
दाउद के जिस दुश्मन को अस्पताल के भीतर कत्ल कर डालने का आरोप बृजेश सिंह और उसके साथियों के सिर आया, उसका नाम था शैलेश हलदरकर। जिसे बृजेश एंड कंपनी के गुंडों ने वार्ड नंबर 18 में जाकर गोलियों से बिस्तर पर ही मौत की नींद सुला दिया।
बृजेश सिंह ऐसे बना दाऊद का खास
अस्पताल के भीतर हुई गोलीबारी में उस दिन पुलिस के दो हवलदार भी मार डाले गए थे। जबकि मारा गया हलदरकर मुंबई के माफिया और दाऊद के दुश्मन नंबर वन अरुण गवली का खास था। उस कांड से गवली को बड़ा धक्का लगा। पर उस कांड में बृजेश सिंह का नाम ऊंचा हो गया और वो दाऊद की नजरों में एक ही कांड में हीरो बन गया।
मुंबई के जेजे अस्पताल में उस गोलीकांड और तिहरे हत्याकांड में बृजेश और उसके साथियों ने उस जमाने में एके-47 जैसी घातक राइफल से 500 से भी ज्यादा गोलियां दागी थीं।
लिहाजा गोलीकांड भले ही मुंबई में अंजाम दिया गया था। लेकिन, उन गोलियों की गूंज से देश की पुलिस हिल गई थी।
बृजेश सिंह पर टाडा में चला मुकदमा
उस मामले में बृजेश सिंह पर टाडा में भी मुकदमा चला। सबूतों के अभाव में मगर उन्हें सितंबर 2008 में कोर्ट ने बरी कर दिया।
ऐसा नहीं है कि हाल ही में एक मामले में बरी किए गए बृजेश सिंह के पांव अपराध जगत की जमीन पर मुंबई के जेजे अस्पताल गोलीकांड के बाद ही थम गए थे।
सन् 1990 के शुरुआती दिनों में उसने धनबाद के करीब झरिया का भी रुख किया था, वहां वो उधर के बाहुबली विधायक और कोयला माफिया सूर्यदेव सिंह के कारोबार में घुसपैठ कर बैठा।
सूर्यदेव सिंह के ऊपर बृजेश के कुकर्मों ने ऐसी छाप छोड़ी कि, सूर्यदेव सिंह के साथ रहते हुए बृजेश सिंह के सिर पर 6 कत्लों की जिम्मेदारी और लिखी गई।
मगर कहानी तब पलट गई जब, जिस कोयला माफिया के पास जाकर बृजेश सिंह ने अपने पांव जमाए, उसी कोयला माफिया सूर्यदेव सिंह के बेटे राजीव रंजन सिंह के अपहरण और कत्ल का आरोप भी सन् 2003 में बृजेश सिंह के ही सिर दर्ज हुआ।
बृजेश सिंह को जानने के लिए आप जितने पन्ने पलटेंगे अपराध की दुनिया में मौजूद उन पर मौजूद किताबों का वजन उतना ही और ज्यादा भारी होता जाएगा। बृजेश सिंह जब जेल के अंदर था तब उसका काला-कारोबार भीतर से ही फल-फूल रहा था।
पिछले ही साल बृजेश सिंह जेल से बाहर निकल गया। अब वह आजादी की सांस ले रहा है, पर कहां, ये बड़ा प्रश्न है। अभी सब कुछ शांति से चल रहा है। अब तो मुख्तार अंसारी भी नहीं है। पूर्वांचल का पूरा मैदान बृजेश सिंह के लिए खाली है।
साथ गी कोयलांचल का मैदान भी खाली है। धनबाद में कयास लगाये जा रहे हैं कि इस खाली मैदान लाभ उठाने की तैयारी यह माफिया डॉन कर रहा है।
बृजेश सिंह के ‘अपनों’ की मानें तो उनके मुताबिक तो, बृजेश सिंह अपनों के लिए भगवान है। वह मुख्तार अंसारी के गुंडों के लिए खौफ का पहला नाम हैं, तो इसमें गलत क्या है?
बहरहाल बृजेश की धमक अब पूर्वांचल से पहले कोयलांचल में सुनाई दे, तो कोई आश्र्चर्य नहीं है।
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