क्या सीट शेयरिंग में उलझेगा गठबंधन
रांची। झारखंड में 13 नवंबर और 20 नवंबर को दो फेज में चुनाव होंगे। नतीजे 23 नवंबर 2024 को आएंगे। चुनाव से ठीक पहले हेमंत सोरेन के भरोसेमंद चंपाई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने से मुकाबला दिलचस्प हो गया है।
2019 यानी झारखंड के पिछले विधानसभा चुनाव में जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। 30 सीटों के साथ जेएमएम सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और गठबंधन के साथ सरकार बनाई। 4 साल सब कुछ ठीक रहा, लेकिन आखिरी साल काफी उठा-पटक मची।
हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी और चंपाई बने झारखंड के CM
31 जनवरी 2024 को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कथित भूमि घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से करीब 7 घंटे पूछताछ की।
इसके बाद सोरेन को राजभवन ले जाया गया, जहां उन्होंने राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को अपना इस्तीफा सौंप दिया। इस्तीफे के बाद ईडी ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के नेतृत्व वाले गठबंधन ने नए मुख्यमंत्री के रूप में जेएमएम के वरिष्ठ नेता चंपाई सोरेन का नाम प्रस्तावित किया।
सत्ताधारी दल ने कुल 47 विधायकों के समर्थन का पत्र राज्यपाल को सौंपा। राज्य में सरकार बनाने के लिए 81 सदस्यों की विधानसभा में 41 विधायकों का समर्थन चाहिए। 2 फरवरी 2024 को चंपाई सोरेन ने सीएम पद की शपथ ली।
जेल से छूटकर 145 घंटे में फिर सीएम बने हेमंत सोरेनः
हेमंत सोरेन जमानत मिलने के बाद 28 जून को रांची की बिरसा मुंडा जेल से बाहर आ गए। हेमंत की पत्नी कल्पना सोरेन भी उन्हें लेने के लिए जेल पहुंची थीं। जेल से निकलने के बाद हेमंत सोरेन ने कहा कि मुझे झूठे आरोपों में 5 महीने जेल के अंदर रखा गया।
झारखंड के लोगों के लिए 5 महीने बहुत कठिन थे।जेल से छूटने के 145 घंटे बाद ही उन्होंने दोबारा झारखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली।
झारखंड में महज 4 महीने बाद चुनाव होने थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चंपाई सोरेन इस्तीफा नहीं देना चाहते थे।
चंपाई बीजेपी में शामिल हुए, 14 सीटों पर असरः
झारखंड के सीएम पद से हटाए जाने के बाद चंपाई सोरेन ने बीजेपी का दामन थाम लिया। चंपाई संथाल जनजाति से आते हैं। इस समुदाय के साथ अन्य आदिवासी जातियों पर भी उनकी तगड़ी पकड़ है। वो आदिवासी बहुल कोल्हान के बड़े नेता है। उन्हें ‘कोल्हान टाइगर’ भी कहा जाता है।
इस इलाके में कुल 14 विधानसभा सीटें हैं। 2019 के चुनाव में जेएमएम ने यहां 11 सीटों पर जीत हासिल की थी। दो सीट कांग्रेस और एक निर्दलीय को मिली थी। अब मुकाबला रोचक होगा, क्योंकि चंपाई सोरेन बीजेपी के साथ हैं।
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि कोल्हन में चंपाई सोरेन जेएमएम के बूते पहले राजनीति करते थे। कुछ महीने पहले ही उन्होंने बीजेपी का दामन थामा है। भले ही चंपाई बीजेपी की मानसिकता को अपना चुके हैं, लेकिन वोटर ऐसा नहीं होता है। वो अचानक फैसला नहीं बदलता। उसे बदलने में समय लगता है।
शिबू सोरेन आदिवासियों के बड़े नेता हैं। ऐसे में वे अगर एक अपील कर देंगे तो बीजेपी का दांव उल्टा भी पड़ सकता है। लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी को आदिवासी वोट नहीं मिला है। इस कारण झारखंड विधानसभा चुनाव में भी संशय बरकरार रहेगा कि आदिवासी बीजेपी की तरफ झुकता है या नहीं।
JMM के लिए 49 सीटें चाहते हैं हेमंत सोरेनः
हरियाणा में चुनाव हारने का इंडिया गठबंधन पर असर पड़ा है। सबसे ज्यादा दबाव में कांग्रेस है। रिपोर्ट्स के मुताबिक हेमंत सोरेन ने साफ कर दिया है कि वो 49 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। बची 32 सीटों पर कांग्रेस, आरजेडी व अन्य सहयोगी पार्टियों को कॉम्प्रोमाइज करना पड़ेगा।
पिछले चुनाव में कांग्रेस अकेले 31 सीटों पर लड़ी थी। उसे 16 सीटों पर जीत मिली थी। आरजेडी 7 सीटों पर लड़ी थी, लेकिन उसे 1 ही सीट पर जीत मिली थी। अगर सीट बंटवारे पर समझौता नहीं हुआ तो हो सकता है जेएमएम अकेले भी चुनाव लड़ ले।
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि हरियाणा की हार के बाद कांग्रेस को इतनी सीटें नहीं मिलेंगी। अगर इंडिया गठबंधन में जेएमएम को बनाए रखना है तो कांग्रेस को हेमंत सोरेन की बात माननी पड़ेगी। अगर कांग्रेस नहीं मानती है तो उसे ही नुकसान उठाना पड़ेगा, जैसे उसे हरियाणा में उठाना पड़ा है।
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