झारखंड राज्य की स्थापना 15 नवंबर 2000 को बिहार से अलग होकर एक स्वतंत्र राज्य के रूप में हुई थी। लेकिन इस स्वतंत्रता की कहानी बहुत लंबी और संघर्षपूर्ण है।
इस ब्लॉग में, हम झारखंड आंदोलन की पूरी यात्रा को विस्तार से जानेंगे।
झारखंड का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
झारखंड का क्षेत्र प्राचीन काल से ही मानव सभ्यता का केंद्र रहा है। यहाँ के जंगल, पहाड़ और नदियाँ आदिमानव के लिए निवास और जीवन-यापन का उपयुक्त स्थान थे।
प्राचीन काल में यह क्षेत्र विभिन्न जनजातियों और समुदायों का निवास स्थान था, जो जंगलों और पहाड़ों में बसे हुए थे।
इस क्षेत्र का प्राचीन नाम ‘किकट’ था और महाभारत में इसका उल्लेख मिलता है।
प्रारंभिक संघर्ष
झारखंड के लोगों का संघर्ष बहुत पुराना है। प्राचीन काल से ही यहाँ के आदिवासी समुदाय अपनी जमीन और अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करते आ रहे हैं।
संथाल हूल (1855-56): यह आंदोलन अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ संथाल आदिवासियों द्वारा चलाया गया था। संथालों ने सिदो, कान्हू, चाँद और भैरव के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया। यह संघर्ष उनकी जमीन, जंगल और जीवनशैली की रक्षा के लिए था।
बिरसा मुंडा का आंदोलन (1895-1900): बिरसा मुंडा, जिन्हें भगवान बिरसा के नाम से भी जाना जाता है, झारखंड के सबसे महत्वपूर्ण आदिवासी नेता थे। उन्होंने मुंडा समुदाय के हक और अधिकारों के लिए अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया। उनका यह आंदोलन ‘उलगुलान’ (विद्रोह) के नाम से जाना गया। बिरसा मुंडा ने आदिवासी समुदाय को संगठित किया और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष किया।
स्वतंत्रता संग्राम और झारखंड आंदोलन
भारत की स्वतंत्रता के बाद भी झारखंड क्षेत्र के लोग अपनी अलग पहचान और राज्य की मांग करते रहे।
जयपाल सिंह मुंडा: जयपाल सिंह मुंडा झारखंड आंदोलन के एक प्रमुख नेता थे। उन्होंने आदिवासी समुदाय के अधिकारों और झारखंड राज्य की मांग को लेकर संघर्ष किया। वे एक महान खिलाड़ी और राजनेता थे जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व किया।
झारखंड आंदोलन की शुरुआत
1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी झारखंड के लोगों की स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं आया। वे अपनी पहचान और अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे। 1950 और 1960 के दशकों में झारखंड आंदोलन ने जोर पकड़ा।
झारखंड पार्टी: जयपाल सिंह मुंडा ने झारखंड पार्टी की स्थापना की और इस पार्टी के माध्यम से झारखंड राज्य की मांग को उठाया। झारखंड पार्टी ने बिहार विधान सभा में भी कई सीटें जीतीं, लेकिन अलग राज्य की मांग पूरी नहीं हो सकी।
1970 और 1980 के दशक का संघर्ष
1970 और 1980 के दशकों में झारखंड आंदोलन ने और भी जोर पकड़ा।
ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (AJSU): 1980 में AJSU की स्थापना हुई। इस संगठन ने झारखंड राज्य की मांग को और भी मजबूती से उठाया। AJSU ने झारखंड के युवा वर्ग को संगठित किया और बड़े पैमाने पर आंदोलन किए।
झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM): झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना 1972 में शिबू सोरेन के नेतृत्व में हुई। JMM ने झारखंड आंदोलन को एक नई दिशा दी। शिबू सोरेन ने आदिवासी समुदाय के अधिकारों और झारखंड राज्य की मांग को लेकर संघर्ष किया।
1990 का दशक: निर्णायक समय
1990 के दशक में झारखंड आंदोलन ने निर्णायक मोड़ लिया। इस दशक में झारखंड आंदोलन ने राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया।
बिहार आंदोलन: 1990 के दशक में बिहार में भी राजनीतिक परिवर्तन हो रहे थे। लालू प्रसाद यादव की सरकार ने झारखंड आंदोलन को समर्थन दिया और झारखंड राज्य की मांग को लेकर संघर्ष और भी तेज हुआ।
झारखंड क्षेत्रीय विकास परिषद: 1995 में बिहार सरकार ने झारखंड क्षेत्रीय विकास परिषद की स्थापना की। यह परिषद झारखंड क्षेत्र के विकास के लिए कार्य करने के उद्देश्य से बनाई गई थी।
झारखंड राज्य का गठन
1999 में, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने झारखंड राज्य के गठन के प्रस्ताव को मंजूरी दी। अंततः, 15 नवंबर 2000 को झारखंड को एक स्वतंत्र राज्य का दर्जा मिला।
स्वतंत्र राज्य की घोषणा: 15 नवंबर 2000 को, झारखंड को भारत का 28वां राज्य घोषित किया गया। रांची को राज्य की राजधानी बनाया गया। यह दिन झारखंड के लोगों के लिए ऐतिहासिक और गर्व का दिन था।
झारखंड आंदोलन के प्रमुख नायक
झारखंड आंदोलन में कई नेताओं और संगठनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनमें से कुछ प्रमुख नायक इस प्रकार हैं:
सिदो, कान्हू, चाँद और भैरव: संथाल हूल के वीर नेता जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया।
बिरसा मुंडा: महान आदिवासी नेता जिन्होंने ‘उलगुलान’ का नेतृत्व किया और आदिवासी समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
जयपाल सिंह मुंडा: झारखंड पार्टी के संस्थापक जिन्होंने झारखंड राज्य की मांग को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया।
शिबू सोरेन: झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता जिन्होंने झारखंड आंदोलन को एक नई दिशा दी।
झारखंड के लोगों का संघर्ष
झारखंड आंदोलन केवल राजनीतिक संघर्ष नहीं था। यह आंदोलन झारखंड के लोगों की पहचान, उनकी संस्कृति और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए था। यहाँ के आदिवासी और गैर-आदिवासी समुदायों ने मिलकर इस संघर्ष को आगे बढ़ाया।
आदिवासी संस्कृति और परंपराएं: झारखंड के आदिवासी समुदायों ने अपनी संस्कृति और परंपराओं को जीवित रखा और उन्हें बचाने के लिए संघर्ष किया। उनकी नृत्य, संगीत, त्योहार और हस्तशिल्प कला झारखंड की पहचान हैं।
आर्थिक संघर्ष: झारखंड का क्षेत्र खनिज संसाधनों से भरपूर है। लेकिन यहाँ के लोगों को इन संसाधनों का लाभ नहीं मिल पाया। झारखंड आंदोलन ने इन संसाधनों के सही उपयोग और लोगों को उनका हक दिलाने के लिए भी संघर्ष किया।
निष्कर्ष
झारखंड आंदोलन एक लंबा और संघर्षपूर्ण आंदोलन था। इस आंदोलन ने झारखंड के लोगों को एकजुट किया और उनकी आवाज को राष्ट्रीय स्तर पर पहुँचाया। यह आंदोलन केवल एक राज्य की मांग नहीं थी, बल्कि यह झारखंड के लोगों की पहचान, उनकी संस्कृति और उनके अधिकारों की रक्षा का संघर्ष था।
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