रांची। जब झारखंड एकीकृत बिहार का हिस्सा हुआ करता था, तब भी 90 के दशक में यहां बीजेपी शानदार प्रदर्शन करती रही। खास तौर पर 1992 में बाबरी मस्जिद घटना के बाद भाजपा एक तरह से झारखंड में छा गई थी। पर 2000 में झारखंड अलग राज्य गठन के बाद यहां भाजपा की हालत पतली हो गई।
पार्टी दो लोकसभा चुनाव में एक सीट पर सिमटी रही। पर आज झारखंड भाजपा को अपनी 14 में से 12 सीटें दे रहा है। पर झारखंड अलग राज्य में भाजपा का 1 से 12 सीटों तक पहुंचने का सफर आसान नहीं रहा है। इस दौरान पार्टी ने काफी उतार और चढ़ाव देखे हैं। आइए डालते हैं भाजपा के इस सफर पर एक नजर।
झारखंड में हुए पिछले चार लोकसभा चुनावों में काफी बदलवा देखने को मिलता रहा है। फिलहाल यहां भाजपा का 14 में से 11 सीटों पर कब्जा है। एक सीट पर एनडीए की पार्टनर आजसू पार्टी के पास है। यानी एनडीए के खाते में 12 सीटें हैं।
एक-एक सीट कांग्रेस-झामुमो के पास है। हालांकि अब कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा भी भाजपा में शामिल हो गई हैं। झारखंड अलग राज्य बनने के बाद 2004 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में भाजपा को सिर्फ एक सीट ही मिली थी। इसके बाद यह सफर 12 सीटों तक पहुंच गया।
इस बार भाजपा के लिए अपने सीटों को बचाना और वोट आंकड़े को बनाए रखना चुनौती होगी। इसका बड़ा कारण पार्टियों के समीकरण में आया बदलाव बताया जा रहा है। पिछली बार बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो यूपीए का हिस्सा थी। इस बार मरांडी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष हैं।
हालांकि, महागठबंधन में लगभग वही पार्टियां शामिल हैं, जो 2019 में साथ थीं। इनमें झामुमो, कांग्रेस, राजद और वामदल शामिल हैं। इस बार माले भी महागठबंधन का हिस्सा है। यह एनडीए के लिए चुनौती होगी।
2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को सिर्फ एक सीट मिली थी। जबकि, कांग्रेस ने छह, झामुमो ने चार, राजद ने दो और सीपीआई ने एक सीट जीती थी। लेकिन, 2009 के चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन शानदार रहा और जीत का आंकड़ा 8 सीट तक पहुंच गया।
झामुमो दो और कांग्रेस को सिर्फ एक सीट मिली। इस चुनाव में झाविमो ने भी एक सीट जीती। मतदाताओं ने दो निर्दलीय प्रत्याशी को भी चुना। इसके बाद आया नरेंद्र मोदी का दौर। साल 2014 के चुनाव से पहले ही नरेंद्र मोदी नेता मान लिये गये थे।
जनता भी 10 साल यूपीए और मनमोहन सिंह की सरकार को देखने के बाद बदलाव देखना चाहती थी। यही वो साल था जब बदलाव की बयार बह चली थी। हालांकि 2014 के चुनाव के दिन तक अंडर करंट का किसी को पता तक नहीं चला।
विशेषज्ञ अनुमान ही लगाते रहे और भाजपा ने अकेले ही देश में सरकार बनाने का जरूरी आंकड़ा छू लिया। झारखंड भी इससे अछूता नहीं रहा। यहां 2014 के चुनाव में भाजपा ने 14 में से 12 सीटें जीत लीं।
वहीं, झामुमो को दो सीटें मिली। कांग्रेस व झाविमो का खाता भी नहीं खुला। 2019 के मोदी लहर में भाजपा ने फिर 11 सीटें जीतीं। उसकी सहयोगी आजसू ने एक सीट जीती। कांग्रेस-झामुमो के खाते एक-एक सीटें आईं।
झारखंड अलग राज्य बनने से पहले 1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 13 सीटें जीतीं। 1998 के चुनाव में 14 में से 12 सीटों पर भाजपा को कामयाबी मिली। 1999 में भी 14 में से 11 सीटें भाजपा के खाते में गईं। पर, अलग राज्य बनाने के बाद 2004 के चुनावों में भाजपा को मात्र एक सीट मिली। कोडरमा सीट (सामान्य) से बाबूलाल मरांडी ने जीत दर्ज की।
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