फिर करवटें बदल रहा है झारखंड फायरब्रांड सूर्य सिंह बेसरा
रांची। भूले बिसरे लीडर्स की तीसरी कड़ी में बात झारखंड फायरब्रांड नेता सूर्य सिंह बेसरा की। आजसू के एक और तेज तर्रार नेता सूर्य सिंह बेसरा की चर्चा के बिना झारखंड के भूले बिसरे नेताओं की बात बेमानी है।
एक इशारे पर झारखंड में थम जाते थे पहिये
सूर्य सिंह बेसरा, जिसे झारखंड का फायरब्रांड कहा जाता था। सूर्य सिंह बेसरा, जिसके एक इशारे पर झारखंड में पहिये थम जाते थे। वह आजसू के संस्थापकों में एक हैं।
इतना ही नहीं, रामदयाल मुंडा के साथ मिलकर उन्होंने झारखंड पीपुल्स पार्टी का भी गठन किया। अलग राज्य आंदोलन में सत्ता को चुनौती देकर झारखंड से दिल्ली तक आवाज बुलंद करनेवाले सूर्य सिंह बेसरा आज कहां हैं ?
इधर, हाल के दिनों में छिटपुट खबरे आ रही हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए झारखंड में एक थर्ड फ्रंट की स्थापना हो रही है और झारखंड पीपुल्स पार्टी इसमें अग्रणी भूमिका में है। यानी सूर्य सिंह बेसरा।
जी हां झारखंड के फायरब्रांड कहे जानेवाले सूर्य सिंह बेसरा फिर से एक्टिव दिख रहे हैं। झापीपा समेत 10 पार्टियों ने मिलकर जनमत नामक थर्ड फ्रंट का गठन किया है और इसके 10 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा भी कर दी गई है, जिसमें सूर्य सिंह बेसरा भी एक हैं।
झारखंड अलग राज्य के लिए छोड़ दी विधायकी
सूर्य सिंह बेसरा झारखंड के प्रमुख आंदोलनकारियों में एक हैं। इस आंदोलन के दौरान 1990 में वह घाटशिला से विधायक चुने गये।
हालांकि दो साल बाद ही झारखंड अलग राज्य के लिए उन्होंने अपनी विधायिकी कुर्बान कर दी। यह तब की बात है जब 1992 में एकीकृत बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने कहा कि मेरी लाश पर झारखंड बनेगा।
पढ़ाई पूरी होते ही शामिल हो गये अलग राज्य के आंदोलन मे
1986 में संथाली भाषा में पीजी की पढ़ाई पूरी करने के बाद ही वह झारखंड अलग राज्य आंदोलन में शामिल हो गये थे।
विनोद भगत, सुदर्शन भगत और चिंतामणी महतो के साथ मिलकर उन्होंने 1986 में बी आल झारखंड स्टूडेंट यूनियन यानी आजसू की स्थापना की।
इसके बाद उन्होंने जो आंदोलन किया, उसने आजसू के तेवर को एक धार दे दिया। उनके द्वारा बुसाये गये 72 घंटों के झारखंड बंद का ही असर था कि यह आंदोलन पूरे देश में चर्चा का विषय बना। केंद्र सरकार ने इसपर गंभीरता दिखाई।
आंदोलन के दौरान ही 1991 में झारखंड पीपुल्स पार्टी का गठन हुआ और बेसरा इसके संस्थापक सचिव बने। आज जिस अलग झारखंड राज्य में हम रह रहे हैं, उसके निर्माण में आजसू की भी प्रमुख भूमिका रही है।
राज्य अलग होने के बाद सक्रिय राजनीति से हुए गायब
ये आश्चर्य की बात है कि जिन लड़ाकों ने अलग राज्य की लड़ाई में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया, वे वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में नहीं दिखाई देते।
आजसू भी अब आजसू पार्टी बन गई है। सुदेश महतो इसके प्रमुख हैं। देवशरण भगत को छोड़ अन्य किसी पुराने नेता का चेहरा तक अब नहीं दिखता।
दरअसल सूर्य सिंह बेसरा झारखंड निर्माण के कुछ वर्षों बाद से ही सक्रिय राजनीति से दूर हो गये थे।
या कहे कि राज्य अलग होने के बाद की राजनीति उन्हें पची नहीं या वह इसमें फिट नहीं बैठ पाये। नतीजा हुआ कि धीरे-धीरे वह राजनीतिक हाशिये पर चले गये।
हालांकि यदा कदा जमशेदपुर के अखबारों में उनके कुछ बयान जरूर छपते रहे, लेकिन उनकी राजनीतिक सक्रियता कभी नहीं दिखी।
कोरोना ने बदल दी जिंदगी, नाम तक बदल लिया
फिर आया कोरोना काल, जिसने सूर्य सिंह बेसरा की जिंदगी ही बदल कर रख दी। जिस महामारी से पूरी दुनिया जूझ रही थी। बेसरा भी उसकी चपेट में आ गये।
बड़ी मुश्किल से उनकी जान बची। फिर उनकी जिंदगी में बदलाव और अध्यात्म की ओर उन्होंने रूख कर लिया। फिर पढ़ाई-लिखाई में भी रम गये।
इतना ही नहीं उन्होंने अपना नाम तक बदल लिया। उन्होंने अपना नाम सूर्यावतार देवदूत रख लिया था।
उन्होने ने यह निर्णय कोरोना संक्रामित होने के बाद मिले पुनर्जीवन की वजह से लिया था। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि वे आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत कर रहे है।
वह बरसों से भगवान की खोज में थे, लेकिन वे अब जाकर मिले। भगवन सर्वत्र हैं। आज उन्हीं की कृपा से मुझे पुनर्जीवन मिला हैं। मुझे अब विश्वास हो चुका कि भगवान प्रकृति में है, वह सर्वत्र है।
सबका मालिक एक है। वे संकल्पित हैं कि वह भगवान के मैसेंजर बनकर मानव को मानवता का पाठ पढ़ाएंगे। इसके साथ ही साथ प्रकृति प्रेमी बनकर वन, जंगलों को बचाएंगे। प्राणियों की रक्षा करेंगे।
गीतांजलि और मधुशाला का किया संथाली अनुवाद
सूर्य सिंह बेसरा ने विश्व कवि रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित गीतांजलि तथा डॉ हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित मधुशाला का संथाली में अनुवाद किया।
बेसरा ने 2017 में घाटशिला स्थित दामपाड़ा में संताल विश्वविद्यालय की स्थापना भी की है। 2017 में भारत सरकार द्वारा अंगीकृत साहित्य अकादमी नई दिल्ली की ओर से मधुशाला के संथाली अनुवाद के लिए उन्हें अनुवादक पुरस्कार मिला।
सूर्य सिंह बेसरा को झारखंड रत्न, झारखंड आंदोलनकारी सेनानी, उत्कृष्ट विधायक, भारत सेवा रत्न, साहित्य शिखर सम्मान, ऐसे अनेक उपाधि मिल चुके है।
शिक्षा के प्रचार-प्रसार में रही रुचि
सूर्य सिंह बेसरा की शुरू से ही शिक्षा के प्रचार-प्रसार में काफी रुचि रही। उनकी पत्नी कुंती बेसरा टीएमएच में कार्यरत हैं और दो पुत्री और एक पुत्र है।
बेसरा ने जमशेदपुर के भालूबासा हाईस्कूल से 1976 में मैट्रिक पास की। इसके बाद ही उन्होंने पैतृक गांव छामडाघुटू में एक प्राथमिक स्कूल की स्थापना कर डाली थी।
1983 में घाटशिला कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की। तब मुसाबनी में सिदो -कान्हू जनजातीय महाविद्यालय की स्थापना की।
1986 में रांची विश्वविद्यालय से संथाली में पीजी किया। लंबे समय तक आंदोलन से जुड़े रहने के बावजूद उन्होंने पढ़ाई से विमुख नहीं हुए।
झारखंड में खड़ा किया थर्ड फ्रंट
आज 1980-90 के दशक का मशहूर फायरब्रांड नेता एक बार फिर करवटें ले रहा है। अध्यात्म की राह पकड़ चुके सूर्य सिंह बेसरा की नेतृत्व क्षमता का ही यह कमाल है कि 10 रानीतिक दल एक मंच पर आ चुके हैं और झारखंड में थर्ड फ्रंट की स्थापना हो चुकी है।
उनके साथ हैं शैलेंद्र महतो और कृष्णा मार्डी जैसे पुराने दिग्गज नेता। झारखंड नवनिर्मित महासभा थर्ड अलायंस यानी जनमत के बैनर तले ये एनडीए और इंडी गठबंधन को चुनौती देने को तैयार हैं।
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