रांची। झारखंड विधानसभा का चुनाव 20 नवंबर को संपन्न हो गया। रिजल्ट 23 नवंबर को आएगा। चुनावी मैदान में डटे 1211 चेहरों में से 81 चुने जाएंगे। 15 अक्टूबर को चुनाव की घोषणा से दूसरे चरण के मतदान के बी च यह चुनाव कई चीजों के लिए याद किया जाएगा।
राज्य में पहली बार ऐसा हुआ जब कहीं कोई हिंसा नहीं हुई और ना ही एक भी बूथ पर पुनर्मतदान की स्थिति आई। साथ ही हर बार से इस बार वोटिंग में भी बढ़ोत्तरी हुई। पहले और दूसरे फेज के आंकड़ों को देखें तो इस बार 68.02% वोटिंग हुई है।
हालांकि, अभी फाइनल आंकड़ा आना बाकी है। फिर भी 2019 की तुलना में यह 3% अधिक है। 2005 में 57.03, 2009 में 56.96, 2014 में 66.42 एवं 2019 में 65.18% मतदान हुआ था।
पहली बार दोनों तरफ से हुई गठबंधन की राजनीतिः
इस बार के चुनाव में दोनों बड़े दल भाजपा और झामुमो ने गठबंधन में चुनाव लड़ा, जो झारखंड में पहली बार हुआ। इस बार भाजपा ने आजसू, जदयू और चिराग पासवान की LJPR से एलांयस में लड़ी। जबकि, JMM ने कांग्रेस, राजद और माले के साथ गठबंधन किया।
2019 में JMM-कांग्रेस और राजद ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था। जबकि, भाजपा अकेले लड़ी थी। 2014 में भाजपा आजसू के साथ मिलकर लड़ी थी, जबकि JMM ने कांग्रेस से गठबंधन नहीं किया था।
2009 में भाजपा और JMM अकेले लड़ी थी। 2005 में भी किसी दल ने गठबंधन नहीं किया था।
अधिकांश सीटों पर सीधा मुकाबलाः
इस बार गठबंधन में चुनाव लड़ने के कारण अधिकांश सीटों पर INDIA और NDA प्रत्याशियों के बीच सीधा संघर्ष हुआ। तीन सीटों पर इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों के बीच दोस्ताना संघर्ष हुआ।
पहली बार हिंसा मुक्त चुनाव
राज्य गठन के बाद पहली बार विधानसभा का चुनाव अहिंसक रहा। 2019 के चुनाव में पलामू के पिपरा में प्रखंड प्रमुख के पति की माओवादियों ने हत्या कर दी थी।
नौडीहा बाजार में सुरक्षा बलों से माओवादियों की मुठभेड़ हुई थी। इस बार वोट बहिष्कार की एक-आध घटनाओं को छोड़ कुछ वैसा नहीं हुआ, जैसी परिपाटी रही है।
भाजपा प्रचार में भारी, हेमंत व कल्पना भी प्रभावीः
प्रचार वार में भाजपा शुरू से आक्रामक रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह के अलावा भाजपा के एक दर्जन केंद्रीय मंत्री और मुख्यमंत्रियों ने गली-मुहल्लों तक प्रचार किए। मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी की भी सभाएं हुईं।
इंडिया गठबंधन के स्टार प्रचारक हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन ही रहे। लगभग 100-100 चुनावी सभाएं कर दोनों ने रिकार्ड कायम किया।
नैरेटिव, ध्रुवीकरण को धार नहीं दे सका
एनडीए पहले दिन से बांग्लादेशी घुसपैठ, भ्रष्टाचार और युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ का नैरेटिव सेट करने में लगा रहा। झामुमो, जल-जंगल-जमीन की पुरानी पिच पर बैटिंग करता रहा, बताता रहा कि भाजपा औद्योगिक घरानों की समर्थक है और उन्हीं लिए यहां का जल-जंगल और जमीन लूटना चाहती है।
लेकिन मंच के इन भाषणों पर मंईयां-गोगो दीदी योजना की गूंज थोड़ी सुनाई। ऐसा कहीं दिखा कि पूरा प्रदेश किसी मुद्दा विशेष के इर्द-गिर्द नाच या झूम रहा हो।
चुनाव में सीट टू सीट कंटेस्ट हुआ और सामाजिक आर्थिक व जातीय समीकरण पूर्ववत बने और बिगड़े। सिसई, गुमला और बिशुनपुर तथा संथाल के बरहेट, बोरियो, शिकारीपाड़ा के मतदाताओं की सोच व भावना में कोई अप्रत्याशित बदलाव नहीं आया।
इन इलाकों में लोग चेहरों से ज्यादा अपने-अपने पारंपरिक चिह्न थाम कर चलते दिखे। कोयलांचल में जातीय लड़ाई पूर्व की तरह हावी रही। कहीं कुछ बड़ा उलटफेर नजर नहीं आया।
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