गिरिडीह। झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 13 और 20 नवंबर को शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो चुका है। वोटिंग के समापन के बाद राज्य के प्रत्याशी हो या आम जनता सबकी नजर मतगणना की तिथि 23 नवंबर पर बनी हुई है।
बता दें इस बार भी झारखंड में मुख्य लड़ाई एनडीए और इंडी गठबंधन के बीच है। एनडीए में भाजपा, आजसू, जेडीयू और लोजपा–आर शामिल है। वहीं इंडी गठबंधन में जेएमएम, कांग्रेस, आरजेडी और भाकपा-माले शामिल है।
मतदान के बाद कुछ हद तक अनुमान वोटरों का मिजाज देखकर लगाया जा सकता है कि नदी की धारा किस ओर बहेगी। बात करें धनवार में वोटरों के मिजाज की तो इस बार बटा हुआ नजर आ रहा है। बीजेपी के बाबूलाल मरांडी परंपरागत वोटरों और अपनी छवि के बल पर समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहे हैं।
वहीं झामुमो के उम्मीदवार निजामुद्दीन अंसारी और माले के राजकुमार यादव के बीच वोटों के विभाजन की चर्चा है, जिसके कारण महागठबंधन को धक्का लग सकता है। वहीं, निर्दलीय निरंजन राय ने स्थानीय मुद्दों को केंद्र में रखकर अपनी मजबूत पकड़ लोगों में बनाई। पर अंत में हिमंता विस्वा सरमा खेल कर गये और हेलीकाप्टर से निरंजन राय को ले उड़े।
राय ने बीजेपी को समर्थन दे दिया और चुनाव से हट गये। इस बार के चुनाव में राष्ट्रीय के साथ-साथ स्थानीय मुद्दे भी यहां हावी दिखे। मतदाताओं ने यहां क्षेत्रीय विकास, जातिगत समीकरण और स्थानीय नेतृत्व को भी प्राथमिकता दिया है।
इसी बार धनवार विधानसभा सीट राज्य की हाट सीट में से एक मानी जा रही है। इसका कारण है बाबूलाल मरांडी। बाबूलाल बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष हैं और वह इस सीट से चुनाव मैदान में हैं। इसलिए बीजेपी के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है।
संभवतः यही कारण है कि बीजेपी यहां कोई चूक नहीं करना चाहती और निरंजन राय को मनाने हिमंता सरमा खुद पहुंच गये।
धनवार विधानसभा सीट पर 2024 के चुनाव में बीजेपी के बाबूलाल मरांडी की प्रतिष्ठा दांव पर है, क्योंकि उन्होंने 2019 में अपनी पार्टी झाविमो के टिकट पर जीत हासिल की थी और बाद में बीजेपी में विलय के कारण अब भाजपा से मैदान में हैं।
इस सीट पर महागठबंधन ने जेएमएम के निजामुद्दीन अंसारी को उतारा है, जो कि झाविमो से विधायक रह चुके हैं, जबकि माले के राजकुमार यादव भी मुकाबले में हैं और वो भी विधायक रह चुके हैं। कुल मिलाकर तीनों विधायक एवं पूर्व विधायकों ने चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया है।
सभी की अपनी अपनी पकड़ है। जेएमएम और माले के बीच दोस्ताना संघर्ष और वोटों का बंटवारा यहां चुनाव को और अधिक दिलचस्प बना रहा है। और कहीं न कहीं इंडी गठबंधन का आपसी तालमेल इससे प्रभावित दिख रहा है। इसका असर उनके वोटों पर भी पड़ा है।
सियासी गलियारों में पहले ये कयास लगाया जा रहा है कि निरंजन राय का स्वतंत्र रूप से लड़ना बीजेपी के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगा सकता था। पर अंतिम क्षण में हिमता सरमा की एंट्री ने निरंजन राय को संभाल लिया।
अब यही वजह है कि बाबूलाल मरांडी की स्थिति मजबूत नजर आ रही है। इसके बाद से बाबूलाल मरांडी राहत की सांस ले रहे हैं। एक ओर जहां बीजेपी के बाबूलाल मरांडी अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा बचाने की कोशिश में हैं।
वहीं, जेएमएम और माले के बीच दोस्ताना संघर्ष और वोटों के बंटवारे से चुनाव के परिणाम पर असर पड़ सकता है। अब देखना दिलचस्प होगा कि 23 नवंबर को क्या बाबूलाल मरांडी अपनी सीट बचा पाते हैं या नहीं।
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