रांची। झारखंड प्रदेश कांग्रेस में लोकसभा चुनाव के टिकट को लेकर किचकिच और सस्पेंस बरकरार है। कांग्रेस ने अब तक चार लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है।
खूंटी, हजारीबाग और लोहरदगा में प्रत्याशी दिये हैं। वहीं रांची, धनबाद, गोड्डा और चतरा में उम्मीदवार को लेकर संशय बरकरार है।
खास तौर पर राजधानी रांची की सीट को लेकर सभी सस्पेंस में हैं कि यहां से उम्मीदवार कौन होगा। सुबोधकांत सहाय या रामटहल चौधरी।
सुबोधकांत सहाय कांग्रेस के पुराने भरोसेमंद हैं। कई बार रांची से सांसद रह चुके हैं। कांग्रेस शासन में केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं। राज्य के दिग्गज और कद्दावर नेता माने जाते हैं।
पिछले दो दशक से बड़ी निष्ठा के साथ पार्टी से जुड़े हैं। दिल्ली की राजनीति में भी उनकी अच्छी खासी पकड़ है।
इस लिहाज से कांग्रेस के लिए रांची में उनसे बेहतर की दूसरा उम्मीदवार ब तक नहीं था। पर इसी बीच रामटहल चौधरी की एंट्री ने न सिर्फ सुबोधकांत सहाय बल्कि कांग्रेस की भी उलझन बढ़ा दी है।
रामटहल चौधरी पहले भाजपा में थे। रांची से वह भी कई टर्म सांसद रहे। एक खास बिरादरी में उनकी अच्छी खासी पकड़ मानी जाती है। साल 2019 में बीजेपी से टिकट कटने पर उन्होंने पार्टी छोड़ दी थी और निर्दलीय चुनाव लड़ा था। परंतु हार का सामना करना पड़ा।
इसके बाद पांच साल वह चुप रहे। फिर जब 2024 में लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई, तो वह सक्रिय हुए और बीजेपी में दाल नहीं गलती देख पूरे तामझाम के साथ कांग्रेस में शामिल हो गये।
प्रदेश कांग्रेस के नेताओं ने भी उनके लिए रेड कारपेट बिछा दिया। दिल्ली तक बात पहुंचा दी कि पूर्व बीजेपी नेता को वे पार्टी में एंट्री करा रहे हैं। परंतु यहीं पर प्रदेश कांग्रेस के नेता फंस गये।
जिस रामटहल को टिकट दिलाने की शर्त पर पार्टी में लाये थे, अब उसके लिए सुबोधकांत का टिकट काटना आसान नहीं लग रहा है। रामटहल चौधरी की मांग थी रांची या हजारीबाग, तो हजारीबाग की सीट तो एक और बीजेपी से आयातित नेता जेपी पटेल के खाते में चली गई।
अब रामटहल को मैनेज करें, यह प्रदेश कांग्रेस नेताओं के लिए बड़ी उलझन बन गई है। उधर सुबोधकांत के समर्थक बार-बार ताल ठोक रहे , इधर रामटहल बार-बार प्रदेश कांग्रेस नेताओं को उनका वादा दिला रहे हैं।
हालांकि रामटहल और सुबोधकांत दोनों ही सार्जनिक मंच पर यही कह रहे हैं कि उन्हें टिकट की कोई चाह नहीं है। सुबोधकांत ने बकायदा रामटहल चौधरी का स्वागत भी किया था।
परंतु यह राजनीति है। सभी जानते हैं कि दोनों के लिए टिकट कितना जरूरी है। यह दोनों के ही राजनीतिक भविष्य का सवाल है।
दोनों की उम्र के इस पड़ाव में पहुंच चुके हैं कि आगे उनके लिए राजनीतिक सक्रियता कितनी बनी रहेगी, कहना कठिन है। रामटहल चौधरी का टिकट 2019 में बीजेपी ने उम्र की वजह से ही काटा था।
ऐसे में दोनों कुछ भी कहें, पर टिकट दोनों के लिए ही राजनीतिक अमृत साबित हो सकता है। इधर प्रदेश कांग्रेस भी इन सारी चीजों को समझ रही है और अपनों से ही उलझी है।
पार्टी के अंदर किचकिच जारी है। प्रत्याशी की घोषणा में देरी हो रही है, जिससे सस्पेंस और भी बढ़ता चला जा रहा है।
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि 11 से 12 अप्रैल को प्रत्याशी की घोषणा संभव है। इधर, पार्टी अपने ही कार्यकर्ताओं की नाराजगी को देखते हुए डरी-सहमी है। फूंक-फूंक कर कदम रख रही है।
प्रदेश प्रभारी गुलाम अहमद मीर के दो दिवसीय झारखंड दौरे को देखते हुए उम्मीदवारों की घोषणा टाल दी गयी है। प्रदेश प्रभारी के दौरे के बीच कांग्रेस किसी तरह का हंगामा नहीं चाहती थी। कांग्रेस का एक खेमा टिकट नहीं मिलने के बाद विद्रोही तेवर अपना सकता है।
दिल्ली में केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक हो चुकी है। इसमें झारखंड के सीटों पर भी चर्चा हुई है। केंद्रीय चुनाव समिति में चर्चा के बाद भी प्रत्याशियों के नाम की घोषणा नहीं हो पा रही है।
केंद्रीय चुनाव समिति में अनुशंसा के बाद ही कई नाम सामने आये थे। प्रदेश के नेताओं से भी केंद्रीय चुनाव समिति ने उम्मीदवारों के नाम पर चर्चा कर चुकी है।
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