पटना, एजेंसियां। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बिहार शिक्षा विभाग के अवर मुख्य सचिव केके पाठक के बीच जो चूहा बिल्ली का खेल चल रहा है वह भस्मासुर की कहानी याद दिला रहा है।
शिक्षा विभाग के अवर मुख्य सचिव केके पाठक सीएम नीतीश कुमार के पसंदीदा अधिकारी रहे हैं।
राजनीतिक गलियारों की बात करें तो केके पाठक का नाम ऐसे अधिकारियों में शुमार किया जाता है जिन्हें नीतीश कुमार का आशीर्वाद प्राप्त है।
तो क्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पसंदीदा होने के कारण अवर मुख्य सचिव केके पाठक कहीं नीतीश कुमार के लिए भस्मासुर तो नहीं हो गए?
आखिर ऐसी क्या वजह है कि केके पाठक के लिए सीएम नीतीश कुमार सत्ता और विपक्ष के हमले भी झेलते हैं और जरूरत पड़ी तो सदन में खुलकर कहते है कि केके पाठक को हम नहीं हटाएंगे।
कौन थे भस्मासुर?
हिंदू धार्मिक ग्रंथों में भस्मासुर नाम के एक राक्षस का जिक्र आता है। उसको समस्त विश्व पर राज करने की मंशा है।
अपने इसी उद्देश्य को सिद्ध करने हेतु वह शिव की कठोर तपस्या करता है। अंत में भोलेनाथ उसकी बरसों की गहन तपस्या से प्रसन्न होकर उसके सामने प्रकट होते हैं।
शिव उसे वरदान मांगने के लिए कहते हैं। तब भस्मासुर अमरत्व का वरदान मांगता है। अमर होने का वरदान सृष्टि विरुद्ध विधान होने के कारण शंकर भगवान उसकी इस मांग को नकार देते हैं।
तब भस्मासुर अपनी मांग बदल कर यह वरदान मांगता है कि वह जिसके भी सिर पर हाथ रखे वह भस्म हो जाए।
शिवजी उसे यह वरदान दे देते हैं। तब भस्मासुर शिवजी को ही भस्म करने उनके पीछे दौड़ पड़ता है।
भस्मासुर के प्रकोप झेल रहे हैं नीतीश
आज नीतीश कुमार की भी स्थिति यही हो गई है। पाठक जी उनके पसंदीदा अधिकारी हैं।
सरकार के गलियारों की बात करें तो केके पाठक ऐसे पदाधिकारी हैं जो अपनी शर्तों पर जीते हैं और कई मौखिक ताकत भी साथ लिए होते हैं।
नीतीश कुमार ने जिस तरह से केके पाठक का इस्तेमाल किया वह यह बताता है कि केके पाठक नीतीश कुमार के लिए प्रॉब्लम शूटर की तरह इस्तेमाल होते हैं।
शिक्षा विभाग से पहले नीतीश कुमार ने केके पाठक को मध निषेद विभाग में भेजा था। वहां जिस ढंग से नियंत्रण का काम किया उसकी काफी तारीफ भी हुई थी।
पर कई बार उन्होंने कुछ ऐसे निर्णय लिए जो सरकार को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। नतीजतन, उन्हें वहां से हटाया गया।
फिर बाद में इन्हें शिक्षा विभाग भेजा गया। यहां आते ही शिक्षा सुधार को लेकर उन्होंने कई ऐसे कदम उठाए, जिनकी सब जगह सराहना हुई।
लेकिन बाद में धीरे-धीरे शिक्षा विभाग में भी अपनी मनमानी चलाने लगे। कई ऐसे निर्णय हुए जो अव्यवहारिक और गैर जरूरी था। काफी विरोध हुए।
हालत तो ये थी कि केके पाठक शिक्षा मंत्री की भी नहीं सुनते और न ही शिक्षा के अन्य पदाधिकारियों के साथ परामर्श ही करते थे।
ऐसा न जाने कितनी बार हुआ जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी उनका निर्णय परेशान कर गया।
उनके मंत्रिपरिषद के कई सदस्यों ने भी केके पाठक के निर्णय का विरोध किया। परन्तु केके पाठक तो वही करते हैं जो उन्हें अच्छा लगता है।
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