Tuesday, July 8, 2025

बाबूलाल-अर्जुन नहीं तो कौन ? [Babulal-If not Arjun then who?]

रांचीः झारखंड में वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने ‘अबकी बार 65 पार का’ नारा दिया था।

उस वक्त रघुवर दास मुख्यमंत्री थे और यह माना जा रहा था कि यदि बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई, तो रघुवर दास के हाथों में ही फिर से कमान होगी। लेकिन बीजेपी 26 सीटों पर सिमट गई।

अब पांच साल बाद 2024 के अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव में परिस्थितियां पूरी तरह से बदल गई है। रघुवर दास इन दिनों झारखंड की राजनीति से दूर ओडिशा के राज्यपाल पद की जिम्मेदारी संभाल रहे हें।

पांच वर्षों तक केंद्रीय कैबिनेट में झारखंड का प्रतिनिधित्व करने वाले अर्जुन मुंडा भी चुनाव हार चुके हैं। जबकि लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी आलाकमान ने आदिवासी चेहरे के रूप में बाबूलाल मरांडी को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी। लेकिन बाबूलाल मरांडी झारखंड में आदिवासियों के लिए आरक्षित पांच सीटों में से एक भी सीट पर बीजेपी को जीत नहीं दिला सके।

वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी को आदिवासियों के लिए 28 में से सिर्फ दो सीटों पर जीत मिली थी।

हालांकि बीजेपी नेतृत्व को उम्मीद थी कि रघुवर दास की जगह बाबूलाल मरांडी को खुली छूट देने से पार्टी को आदिवासियों के लिए आरक्षित सीट में सफलता मिलेगी।

ओडिशा, मप्र और राजस्थान की तरह चौकाएंगी बीजेपी

झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में बीजेपी बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा या किसी अन्य नेता को सीएम फेस के रूप में आगे कर चुनाव नहीं लड़ेगी, बल्कि इस बार पार्टी सिंबल के आधार पर चुनाव लड़ेगी।

बीजेपी के तमाम स्टार प्रचारक पीएम नरेंद्र मोदी, अमित शाह और जेपी नड्डा चुनाव प्रचार के लिए झारखंड आएंगे और पार्टी को वोट करने की अपील करेंगे। लेकिन चुनाव के पहले इस बात की संभावना काफी कम है कि पार्टी किसी को सीएम फेस के रूप में आगे कर चुनाव लड़ेगी।

चुनाव में बहुमत मिलने के बाद बीजेपी ओडिशा, मध्य प्रदेश, राजस्थान या छत्तीसगढ़ की तरह चौंका सकती है। किसी ऐसे नए चेहरे को सामने किया जा सकता है, जिसकी चर्चा अभी पार्टी में नहीं है।

लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद बाबूलाल पर उठे सवाल

लोकसभा चुनाव परिणाम 2024 के बाद झारखंड बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व पर कई सवाल उठे है। दुमका लोकसभा सीट की बीजेपी प्रत्याशी सीता सोरेन ने हार के बाद पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं पर भिरतघात करने का आरोप लगाया।

सीता सोरेन का कहना है कि इन सारे बातों की जानकारी प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को भी थी, लेकिन उनकी ओर से कुछ भी नहीं किया गया।

इसी तरह से गोड्डा लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी प्रत्याशी निशिकांत दुबे की जीत तो हुई, लेकिन चुनाव परिणाम के बाद समीक्षा बैठक में बीजेपी विधायक नारायण दास और सांसद के समर्थक आपस में भिड़ गए।

लोहरदगा, सिंहभूम, खूंटी और अन्य लोकसभा क्षेत्रों में भी अब बीजेपी के नेता ही बाबूलाल मरांडी पर कई सवाल खड़े कर रहे हैं।

लोकसभा चुनाव के बाद अर्जुन मुंडा लड़ेंगे चुनाव

लोकसभा चुनाव 2024 के चुनाव में अर्जुन मुंडा को खूंटी में बड़ी हार मिली। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में अर्जुन मुंडा जहां महज 1445 वोट के अंतर से चुनाव में विजयी रहे थे, वहीं इस बार के चुनाव में उन्हें 1.49 लाख के मतों के अंतर से चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।

अर्जुन मुंडा लगातार पांच सालों तक केंद्र में मंत्री रहे, इसके बावजूद खूंटी में हार से जाने से उन्हें बड़ा राजनीतिक झटका लगा है। लेकिन अर्जुन मुंडा की गिनती झारखंड ही नहीं देश भर में आदिवासियों के बड़े नेता के रूप में होती है। वो तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं।

ऐसे में एक बार फिर से उनके प्रदेश की राजनीति में वापस लौटने की चर्चा भी शुरू हो गई है। बीते दिनो अमित शाह के रांची दौरे के दौरान भी मुंडा उनके आसपास दिखे थे। दोनों के बीच बंद कमरे में बात भी हुई थी। जिसके बाद से ही राज्य की राजनीति में उनके सक्रिय होने की चर्चा शुरू हो गई है।

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अगले दो-तीन महीने के बाद होने वाले झारखंड विधानसभा चुनाव में अर्जुन मुंडा खरसावां विधानसभा सीट से एक बार फिर चुनाव लड़ सकते हैं।

नये चेहरे को लेकर राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अर्जुन मुंडा को खूंटी में हार का सामना करना पड़ा।

वहीं प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी के हाथों में कमान रहने के बावजूद बीजेपी आदिवासियों के लिए आरक्षित सभी पांच सीटों पर चुनाव हार गई। ऐसे में बीजेपी के आला नेता अब नए चेहरे की तलाश में जुटे हैं। संभव है कोई आदिवासी चेहरा भी उनकी नजर में हो।

शिवराज और हिमंता सरमा बनाएंगे रणनीति

झारखंड बीजेपी के चुनाव प्रभारी बनने के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान और सह प्रभारी हिमंता बिस्वा सरमा झारखंड के राजनीतिक हालात को समझने का प्रयास कर रहे हैं।

दोनों नेता पार्टी के प्रदेश पदाधिकारियों और जिला अध्यक्षों के साथ बैठक कर रणनीति बना रहे हैं। दोनों नेता जिला प्रभारियों और कोर कमेटी के सदस्यों के साथ भी अलग-अलग बैठक कर रहे हैं।

दिलचस्प बात है कि इन बैठकों में बाबूलाल मरांडी की सक्रियता कम है। इसके जरिए क्या संदेश दिया जा रहा है, यह आम कार्यकर्ता भी समझने लगे हैं।

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