Hazaribagh land scam:
रांची। झारखंड की भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने हजारीबाग वन भूमि घोटाले के सिलसिले में बड़ी कार्रवाई की है। एसीबी ने गिरफ्तार आरोपी और नेक्सजेन के संचालक विनय सिंह के घर और ऑफिस समेत कुल 6 ठिकानों पर छापेमारी की। छापेमारी के दौरान विभिन्न ठिकानों से एसीबी को कई आपत्तिजनक दस्तावेज मिले हैं। एसीबी के अनुसार छापेमारी में उनके पास से 198 फाइलें, 27 सीपीयू, 4 डीड, 2 मोबाईल व एक लैपटॉप जब्त किया गया है।
ये छापेमारी चुटिया के अनंतपुर स्थित थर्ड स्ट्रीट, डिबडीह स्थित टाटा मोटर्स शोरूम, डिबडीह में ही नेक्सजेन सॉल्यूशन टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड के कार्यालय और लालपुर के पीस रोड स्थित एक अपार्टमेंट में की गई। टीमों ने शराब घोटाले से संबंधित दस्तावेज व डिजिटल साक्ष्य जब्त किये। एसीबी की छापेमारी झारखंड में हुए शराब घोटाले से जुड़े आरोपों की जांच का भी हिस्सा है।
विनय चौबे के करीबी हैं विनय सिंहः
विनय सिंह जेल में बंद आईएएस अधिकारी विनय कुमार चौबे के काफी करीबी रहे हैं।
छापेमारी खत्म होने के बाद एसीबी की टीम जब्त दस्तावेजों और डिजिटल उपकरणों की जांच कर रही है। जांच के क्रम में कई और रहस्यमय तथ्यों के उजागर होने की संभावना है।
धोखाधड़ी के आरोपः
विनय सिंह को 25 सितंबर की शाम को वन भूमि के अवैध हस्तांतरण के आरोप में एसीबी ने गिरफ्तार किया था। विनय सिंह पर यह आरोप है कि उन्होंने जेल में बंद आईएएस अधिकारी विनय कुमार चौबे और अन्य सरकारी कर्मचारियों के साथ मिलीभगत करके वन भूमि पर अवैध रूप से कब्जा किया। यह भूमि मूल रूप से 2013 में आवंटित की गई थी, लेकिन बाद में वन भूमि पाए जाने पर इसका आवंटन रद्द कर दिया गया था।
दस्तावेजों में हेरफेर का खुलासाः
एसीबी की जांच में यह खुलासा हुआ है कि विनय सिंह और उनके साथियों ने सरकारी दस्तावेजों में छेड़छाड़ की थी, ताकि इन वन भूमि को निजी स्वामित्व वाली संपत्ति के रूप में बदला जा सके।
विनय सिंह के खिलाफ आपराधिक साजिश (120B), धोखाधड़ी (420), जालसाजी (467, 468, 471) से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धाराओं के साथ-साथ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है।
वन भूमि पर अवैध जमाबंदीः
आरोप है कि उन्होंने जेल में बंद आईएएस अधिकारी विनय कुमार चौबे और अन्य सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर 2013 में अधिसूचित वन भूमि पर अवैध जमाबंदी कराई। बाद में हजारीबाग पूर्वी वन प्रमंडल के तत्कालीन डीएफओ ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि अधिसूचित वन भूमि पर किसी भी तरह की गैर-वानिकी गतिविधि या अतिक्रमण भारतीय वन अधिनियम, 1927 और वन संरक्षण अधिनियम, 1980 का उल्लंघन है। इसके बाद मामला उछला और जांच शुरू हुई।
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