Monday, July 7, 2025

झारखंड के भूले-बिसरे लीडर्स-प्रवीण प्रभाकर [Forgotten leaders of Jharkhand-Praveen Prabhakar]

रांची। हमारे स्पेशल शो झारखंड के भूले-बिसरे लीडर्स के पांचवें एपिसोड हम आपको बतायेंगे झारखंड आंदोलनकारी प्रवीण प्रभाकर के बारे में।

पिछले चार एपिसोड में चार अलग-अलग लीडर्स के बारे में जाना, जिन्होने झारखंड अलग राज्य आंदोलन सक्रिय भूमिका निभाई। पर आज वे आम लोगों की नजरों से दूर हैं।

ऐसे ही एक और लीडर के बारे में आज बात करेंगे जो एक प्रमुख झारखंड आंदोलनकारी थे,
जिन्होंने झारखंड को बिहार से अलग करने के लिए संघर्ष किया।

उनका योगदान झारखंड राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण था, और वे इस आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक रहे हैं। हम बात कर रहे हैं प्रवीण प्रभाकर की…

बचपन से ही आदिवासी समुदाय की समस्याओं को लेकर संघर्षरत रहे

प्रवीण प्रभाकर झारखंड में जन्मे और पले बढ़े। बचपन से ही उनका झारखंड के आदिवासी समुदायों और उनकी समस्याओं के प्रति गहरा जुड़ाव रहा।

पढ़ाई लिखाई के दौरान भी वह आदिवासियों और क्षेत्रीय विकास की समस्याओं को लेकर संघर्षरत रहे।

उनकी सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र झारखंड के आदिवासियों की पहचान और उनके अधिकारों की रक्षा करना था।

झारखंड आंदोलन की नींव 20वीं सदी की शुरुआत में ही रखी गई थी, लेकिन यह 1970 और 1980 के दशक में और भी तेज हो गया।

इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य झारखंड को बिहार से अलग कर एक स्वतंत्र राज्य बनाना था, ताकि झारखंड के लोगों के अधिकारों, संस्कृति, और संसाधनों की रक्षा की जा सके। इस आंदोलन की जड़ें आदिवासी समुदायों की हकदारी और उनके संसाधनों की सुरक्षा में थीं।

झामुमो के साथ जुड़कर आंदोलन को दिशा दी

प्रवीण प्रभाकर ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ मिलकर झारखंड के गठन के लिए सक्रिय भूमिका निभाई। वे इस आंदोलन के सिर्फ समर्थक नहीं थे, बल्कि इसके मुख्य रणनीतिकारों में से एक थे।

उन्होंने अपने नेतृत्व और संगठन क्षमता का उपयोग करके आंदोलन को जमीनी स्तर तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उनका मानना था कि झारखंड के लोगों को अपनी पहचान और संसाधनों की सुरक्षा के लिए एक स्वतंत्र राज्य की जरूरत है, जो बिहार के शासन में संभव नहीं हो पा रही थी।

उन्होंने झारखंड के आदिवासियों के हकों और संसाधनों की रक्षा के लिए लगातार संघर्ष किया। वे न केवल राजनीतिक रूप से, बल्कि सामाजिक रूप से भी इस आंदोलन का प्रमुख हिस्सा थे।

लोगों को उनके हक और अधिकारों को लेकर जागरूक किया

उन्होंने झारखंड के लोगों के अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए जनसभाएं कीं और विभिन्न स्तरों पर आंदोलन को संगठित किया।

उनका मानना था कि झारखंड के लोगों की समस्याओं का समाधान तभी संभव होगा, जब उनका खुद का राज्य होगा, जहां उनकी भाषा, संस्कृति और संसाधनों का सम्मान हो।

आदिवासी और गैर आदिवासी के बाच समन्वय बनाया

प्रवीण प्रभाकर का दृष्टिकोण इस आंदोलन को जनता से जोड़ने और उसकी समस्याओं को राष्ट्रीय स्तर पर उठाने का था।

उन्होंने आदिवासी समुदाय के साथ-साथ गैर-आदिवासी झारखंडी लोगों को भी आंदोलन से जोड़ा।

उन्होंने आंदोलन को ताकतवर बनाने के लिए युवाओं को प्रेरित किया और छात्रों को भी आंदोलन में शामिल किया।

उनकी नेतृत्व क्षमता और संघर्षशीलता ने उन्हें झारखंड अलग राज्य आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक बना दिया। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि झारखंड के मुद्दे राष्ट्रीय राजनीतिक एजेंडे में शामिल हों।

प्रवीण प्रभाकर के नेतृत्व में झारखंड आंदोलन ने कई महत्वपूर्ण चरण देखे। 1980 और 1990 के दशकों में झारखंड आंदोलन ने तेजी पकड़ी।

इस दौरान उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर झारखंड के मुद्दों को उठाने का प्रयास किया। 1990 के दशक में केंद्र सरकार पर भी झारखंड को अलग राज्य बनाने का दबाव बढ़ने लगा था। प्रवीण प्रभाकर ने इस दौरान राज्य और केंद्र सरकार के साथ विभिन्न वार्ताओं में भी भाग लिया।

यह प्रवीण प्रभाकर और उनके जैसे अन्य आंदोलनकारियों के निरंतर संघर्ष का परिणाम ही था जो 15 नवंबर 2000 को झारखंड एक स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्तित्व में आया।

प्रवीण प्रभाकर ने इस जीत को झारखंड के लोगों की जीत बताया और इसे क्षेत्र के विकास और आदिवासियों के अधिकारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना।

राज्य की स्थापना के बाद भी, प्रवीण प्रभाकर ने झारखंड के विकास और आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम करना जारी रखा।

झारखंड को लेकर गंभीर रहे

उन्होंने राज्य की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई और झारखंड के विकास में अपनी भागीदारी सुनिश्चित की।

उनका मानना था कि राज्य की स्थापना के बाद असली चुनौती झारखंड के संसाधनों और विकास को सही दिशा में ले जाने की है।

शिक्षा, स्वास्थ्य और संसाधनों को लेकर भी सजग रहे

उनका ध्यान झारखंड में शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे के विकास पर था। उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि राज्य के खनिज और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का दोहन जिम्मेदारी से हो और इसका लाभ स्थानीय लोगों को मिले।

संगठनात्मक कौशल के धनी थे

प्रवीण प्रभाकर का झारखंड आंदोलन में सबसे महत्वपूर्ण योगदान उनकी नेतृत्व क्षमता और संगठनात्मक कौशल था। उन्होंने आदिवासी और गैर-आदिवासी समुदायों के बीच समन्वय स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

वे आंदोलन के सभी स्तरों पर सक्रिय थे, चाहे वह राजनीतिक स्तर हो, सामाजिक जागरूकता का प्रयास हो, या फिर जमीनी स्तर पर संघर्ष। उनका मानना था कि केवल राजनीतिक संघर्ष पर्याप्त नहीं है, बल्कि इसके साथ-साथ जनता के बीच जागरूकता फैलाना और उन्हें आंदोलन के साथ जोड़ना भी महत्वपूर्ण है।

इसके लिए उन्होंने कई जनसभाओं का आयोजन किया और युवाओं को इस आंदोलन का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने छात्र संगठनों और युवा आंदोलनों के साथ मिलकर इस आंदोलन को और व्यापक बनाया।

दूर होते चले गये सक्रिय राजनीति से

उनका जीवन झारखंड की राजनीति और समाज के लिए प्रेरणादायक रहा है, और उन्हें झारखंड के इतिहास में एक महत्वपूर्ण आंदोलनकारी के रूप में याद किया जाता है।

प्रवीण प्रभाकर का संघर्ष और उनके द्वारा दिखाया गया नेतृत्व झारखंड के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है, और उनकी भूमिका आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।

प्रवीण प्रभाकर का जीवन झारखंड के संघर्षशील इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। उनकी जीवनी इस बात की गवाही देती है कि कैसे एक व्यक्ति अपने दृढ़ संकल्प और नेतृत्व क्षमता के बल पर एक पूरे राज्य के भविष्य को आकार दे सकता है।

झारखंड अलग राज्य आंदोलन में उनकी भूमिका ने न केवल उन्हें एक प्रमुख नेता के रूप में स्थापित किया, बल्कि झारखंड के लोगों के बीच उनकी पहचान को भी मजबूत किया। उनका संघर्ष, नेतृत्व और आदिवासी समुदायों के प्रति उनकी निष्ठा उन्हें झारखंड के बड़े आंदोलनकारियों में से एक बनाती है।

आज, झारखंड राज्य प्रवीण प्रभाकर जैसे आंदोलनकारियों की मेहनत और संघर्ष की देन है, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी इस राज्य की स्थापना और इसके विकास के लिए समर्पित कर दी। उनके योगदान को झारखंड के इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा और आने वाली पीढ़ियां उनसे प्रेरणा लेती रहेंगी।

झारखंड अलग राज्य गठन के बाद एकाएक प्रवीण प्रभाकर सक्रिय राजनीति से दूर होते चले गये। आज वह संथाल परगना के दुमका में आम जिंदगी गुजार रहे हैं।

अन्य झारखंड आंदोलनकारियों की तरह उनका भी मानना है कि जिस अलग झारखंड का सपना उन्होंने देखा था, वो अभी पूरा नहीं हुआ है।

आज झारखंड राजनीतिक झंझावतों के बीच उलझा है, जिसमें वह खुद को एडजस्ट नहीं कर पाये। उनका कहना है कि वो एक आंदोलनकारी हैं, सामाजिक कार्यकर्ता हैं। जिस अलग राज्य की लड़ाई उन्होंने लड़ी, वो तो अलग हो गया अब इसे सजाना और सवांरना सबकी जिम्मेदारी है।

अभी के लिए बस इतना ही, अगले एपिसोड में हम फिर मिलेंगे ऐसे ही अन्य भूले-बिसरे दिग्गज नेता कि जानकारी के साथ। तब-तक के लिए बने रहें आईडीटीवी पॉलिटिक्स के साथ। और हां अगर आप और भी किसी नेता के बारे में जानना चाहते हैं तो हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं। धन्यवाद..

इसे भी पढ़ें

भूले बिसरे लीडर्स – 4, शैलेंद्र महतो:

Hot this week

Bariatu Housing Colony: बरियातू हाउसिंग कॉलोनी में मनचलों और नशेड़ियों से सब परेशान, एक धराया [Everyone is troubled by hooligans and drunkards in Bariatu...

Bariatu Housing Colony: रांची। बरियातू हाउसिंग कॉलोनी एवं यूनिवर्सिटी कॉलोनी...

झारखंड विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण की अधिसूचना जारी [Notification issued for the second phase of Jharkhand assembly elections]

आज से नामांकन, 38 सीटों पर होगा मतदान रांची। झारखंड...

7 जुलाई की महत्त्वपूर्ण घटनाएं [Important events of 7 July]

Important events: 1753 संसद के एक अधिनियम द्वारा ब्रिटिश संग्रहालय...

Today Horoscope: आज का राशिफल 7 जुलाई 2025, सोमवार [Today’s horoscope 7 July 2025, Monday]

Today Horoscope: 07 जुलाई 2025 आज आषाढ़ शुक्ल पक्ष की...

l वैदिक पंचांग l 07 जुलाई 2025, सोमवार [l Vedic Almanac l 07 July 2025, Monday]

Vedic Almanac : विक्रत संवत 2082शक संवत -1947अयन - दक्षिणायनऋतु...
spot_img

Related Articles

Popular Categories

spot_imgspot_img