Monday, July 7, 2025

युवा आक्रोश रैली से बीजेपी क्यों है आह्लादित ? [Why is BJP happy with Youth Aakrosh Rally?]

रांची। झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन भाजपा का चुनावी खेल बिगाड़ने के लिए लगातार लोकलुभावन घोषणाएं कर रहे थे।

भाजपा जिन मुद्दों को लेकर उन पर हमलावर थी, उनका असर होता नहीं दिख रहा था। भाजपा ने चंपाई सोरेन को जेएमएम से छिटका कर अपनी अगली चाल चली।

इसका तुरंत तो कोई नतीजा निकलता नहीं दिख रहा, लेकिन चुनाव में भाजपा की यह चाल रंग दिखा सकती है।

बैठकों और बयानों से बाहर आकर भाजपा ने युवा जन आक्रोश रैली कर अपने सोए कार्यकर्ताओं को जगा दिया है। पिछली बार सचिवालय घेराव कर भाजपा ने अपनी ताकत दिखाई थी।

तकरीबन साल भर बाद उसी जोशीले अंदाज में दिखी। भाजपा का आरोप है शिक्षित युवाओं के लिए हेमंत सोरेन ने जो वादे किए थे, उसे पूरा करने में वे पूरी तरह नाकाम रहे हैं।

न तो पांच लाख नौकरियों का उन्होंने वादा पूरा किया और न बेरोजगारी भत्ता ही दिया। यह झारखंड के युवाओं के साथ हेमंत सरकार का छल है।

भाजपा में अब जागा है जोश

शुक्रवार को रांची में हुई जन आक्रोश रैली में भाजपा नेताओं ने जोश भरे भाषण दिए। बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा समेत भाजपा के दिग्गज भी आक्रोश रैली का उत्साह बढ़ाने के लिए मौजूद थे।

रैली की भीड़ आक्रामक हुई तो वाटर कैनन और आंसू गैस के गोलों का पुलिस ने प्रयोग किया। यदुनाथ पांडेय समेत भाजपा के कई नेता-कार्यकर्ता भागा भागी में चोटिल भी हुए।

रैली की खबर मीडिया की सुर्खी बनी। हेमंत सोरेन के तकरीबन साढ़े चार साल के कार्यकाल में दूसरी बार लोगों ने महसूस किया कि झारखंड में विपक्ष भी सशक्त है।

भाजपा के कैडर अब भी ऊर्जावान हैं। जरूरत सिर्फ उन्हें जगाने की है। केंद्रीय नेतृत्व के दबाव पर ही सही, झारखंड भाजपा का यह कदम उसके लिए उत्साहवर्धक परिणाम दे सकता है।

प्लान कारगर होता दिख रहा

चंपाई सोरेन को जेएमएम से जुदा कराने में विश्लेषक भाजपा की ही भूमिका मानते हैं। हालांकि भाजपा के लोग इसे जेएमएम के अंदर हेमंत सोरेन के प्रति उपजे अविश्वास का नतीजा मानते हैं।

वे कहते हैं कि जिस तरह हेमंत झारखंड को नहीं संभाल पाए, उसी तरह संगठन को भी नहीं संभाल पा रहे। लोबिन हेम्ब्रम को जेएमएम ने निकाल दिया।

चमरा लिंडा की पार्टी के भीतर शाश्वत असंतुष्ट नेता की छवि बन गई है। ऐसे और भी नेता हैं, जो हेमंत सोरेन से दुखी हैं।

चंपाई सोरेन के साथ जिन चार-पांच विधायकों के पाला बदलने की बात उठी थी, उन पर हेमंत को अब अधिक भरोसा नहीं कर सकते।

चंपाई और लोबिन बिगाड़ेंगे खेल

चंपाई सोरेन कोल्हान इलाके से आते हैं। कम वोटों से ही सही, वे सात बार से लगातार विधायक चुने जाते रहे हैं। उन्होंने अपना विधानसभा क्षेत्र भी कभी नहीं बदला।

कोल्हान में उनकी छवि ऐसे जुझारू नेता की रही है कि लोग उन्हें टाइगर कहते हैं। उनके प्रभाव को इससे भी समझा जा सकता है कि सिंहभूम की संसदीय सीट उन्होंने सीएम रहते जेएमएम की झोली में डाल दी।

जैसा उन्होंने कहा है, अगर वे पार्टी बना कर कम से कम कोल्हान की 14 विधानसभा सीटों पर ही अपना उम्मीदवार उतार देते हैं तो इससे सबसे अधिक नुकसान जेएमएम को ही होगा। संभव है कि वोट कटने से जेएमएम की इस इलाके की 13 सीटें हाथ से निकल जाएं।

चंपाई की सीट तो अभी ही जेएमएम के हाथ से निकल गई है। संताल परगना में लोबिन हेम्ब्रम को भी कम नहीं आंकना चाहिए।

उन्होंने तो भाजपा में जाने के संकेत भी दे दिए हैं। उनका असर चार-पांच सीटों पर भी दिखा तो जेएमएम का सत्ता में दोबारा लौटना मुश्किल हो सकता है।

चुनाव आने तक और भी खेल

भाजपा ने अपने दो चुनावी एक्सपर्ट को चुनाव प्रभारी बना कर झारखंड भेजा है। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश में चुनाव जीतने में महारत हासिल है तो असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा पूरे नार्थ ईस्ट में भाजपा का परचम लहराते रहे हैं।

इसलिए चुनाव जीतने के लिए भाजपा हर तरह के तरीके अपनाएगी। इन दोनों नेताओं को इसलिए कामयाबी का भरोसा है कि संसदीय चुनाव में तकरीबन चार दर्जन से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा की बढ़त थी।

भाजपा जहां कमजोर थी, वहां उसने आदिवासी नेताओं को आगे कर दिया है। बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा के अलावा बाहर से मददगार के रूप में चंपाई सोरेन और लोबिन हेम्ब्रम हैं ही। भाजपा की चिंता भी आदिवासी सीटें ही रही हैं।

2019 में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 28 में सिर्फ दो ही सीटें भाजपा को मिली थीं। इस बार लोकसभा चुनाव में इन 28 सीटों को कवर करने वाली पांच संसदीय सीटें भी इंडिया ब्लॉक के खाते में चली गईं। तभी से भाजपा आदिवासी वोटों को अपने पाले में लाने की जुगत करती रही है।

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