Nithari case:
नई दिल्ली, एजेंसियां। 2006 में देश को झकझोर देने वाले निठारी कांड में आखिरकार 19 साल बाद अदालत ने बड़ा फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को मुख्य आरोपी सुरेंद्र कोली को सभी मामलों में दोषमुक्त कर दिया और उसकी रिहाई का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि संदेह या अनुमान के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यह फैसला आने के साथ ही निठारी कांड से जुड़ी कानूनी लड़ाई अब लगभग समाप्त हो गई है।
यह मामला नोएडा के सेक्टर 31 के डी-5 कोठी से जुड़ा है, जहां 29 दिसंबर 2006 को एक नाले से 16 मानव खोपड़ियां और कंकाल बरामद किए गए थे। बाद में जांच में सामने आया कि ये अवशेष गरीब परिवारों की लापता बच्चियों के थे। इस मामले में कोठी के मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर और उसके घरेलू कर्मचारी सुरेंद्र कोली को गिरफ्तार किया गया था। पूछताछ के दौरान कोली पर निर्दोष बच्चियों की हत्या और उनके अंग पकाकर खाने जैसे जघन्य आरोप लगे थे।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ — मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ — ने कहा कि जांच में कई गंभीर खामियां रहीं। अदालत ने टिप्पणी की कि “संदेह, चाहे कितना भी गंभीर क्यों न हो, सबूत का स्थान नहीं ले सकता।” कोर्ट ने माना कि जांच एजेंसियों ने सबूतों को सही ढंग से संरक्षित नहीं किया, फॉरेंसिक रिपोर्ट समय पर नहीं आईं, और जांच में लापरवाही के कारण वास्तविक अपराधी तक पहुंचा नहीं जा सका।
कोर्ट ने कहा:
कोर्ट ने कहा कि स्थल को समय पर सुरक्षित नहीं किया गया, रिमांड कागजों में विरोधाभास थे और कोली को अदालत के निर्देशों के बिना लंबे समय तक पुलिस हिरासत में रखा गया। अदालत ने माना कि महत्वपूर्ण वैज्ञानिक साक्ष्य समय रहते एकत्र नहीं किए गए, जिससे मामले की सच्चाई सामने नहीं आ सकी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह बेहद दुखद है कि इतने सालों बाद भी असली अपराधी की पहचान नहीं हो सकी। अदालत ने कोली को बरी करते हुए कहा कि यदि किसी अन्य मामले में उसकी आवश्यकता नहीं है, तो उसे तुरंत रिहा किया जाए। इससे पहले, कोली को 13 मामलों में दोषी ठहराया गया था, जिनमें कई में उसे मौत की सजा सुनाई गई थी। धीरे-धीरे अदालतों ने सबूतों की कमी के कारण उसे सभी मामलों में बरी कर दिया। जेल प्रशासन के मुताबिक, सुरेंद्र कोली लुक्सर जेल में बंद था और बुधवार तक रिहा होने की संभावना है।
घटनाक्रम की झलक:
2006 में डी-5 कोठी से मानव खोपड़ियां मिलने के बाद यह मामला सुर्खियों में आया। 2007 में जांच सीबीआई को सौंपी गई। 2009 में कोली और पंढेर को पहली बार मौत की सजा सुनाई गई, लेकिन बाद में विभिन्न अदालतों में अपीलों के बाद दोनों को बरी कर दिया गया। 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम रूप से कोली की सुधारात्मक याचिका स्वीकार करते हुए उसे निर्दोष घोषित किया। इस फैसले ने एक बार फिर देश की जांच प्रणाली और न्यायिक देरी पर सवाल खड़े कर दिए हैं — 19 साल बीत गए, लेकिन असली अपराधी कौन था, यह आज भी एक रहस्य बना हुआ है।



