नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को एनडीए गठबंधन के तहत झारखंड विधानसभा चुनाव में 2 सीट मिली है। हालांकि पार्टी ने 11 सीटों पर दावा ठोका था।
पर उनमें से एक भी सीट जदयू को नहीं मिली। भाजपा ने एक रणनीति के तहत जिन दो सीटों तमाड़ और जमशेदपुर पश्चिमी दिया है, उसके पीछे कारण है जदयू के उम्मीदवार। और ये हैं तमाड़ से गोपाल पातर उर्फ राजा पीटर और जमशेदपुर पश्चिम से सरयू राय।
इन दोनों नेताओं को सीएम किलर के रूप में जाना जाता है। राज पीटर ने शिबू सोरेन को तो सरयू राय ने रघुवर दास को मुख्यमंत्री रहते हरा कर झारखंड की राजनीति में भूचाल पैदा कर दिया था। एनडीए के रणनीतिकार के इस फैसले को मास्टर स्ट्रोक बता रहे हैं।
सरयू राय झारखंड के चाणक्यः
कभी भाजपा के रणनीतिकार रहे सरयू राय झारखंड की राजनीति के चाणक्य माने जाते हैं। झारखंड में भाजपा के आधार को मजबूत करने वाले सरयू राय पहली बार 2005 में झारखंड विधानसभा का सदस्य बने।
हालांकि वर्ष 2009 में वह मामूली अंतर महज 3000 वोट से कांग्रेस उम्मीदवार बन्ना गुप्ता से हार गए थे
फिर 2014 के बाद जब रघुवर दास मुख्यमंत्री बनें। तब रघुवर दास सरयू राय की आंखों का कांटा बन गये। दोनों में अनबन बढ़ने लगी।
2019 आते आते सरयू राय और रघुवर दास की कटुता इतनी बढ़ी कि जमशेदपुर विधानसभा से उन्हें टिकट से ही वंचित कर दिया। तब इन्होंने सांगठनिक ताकत दिखाते हुए भारतीय जन मोर्चा का गठन कर भाजपा की परेशानी बढ़ा दी।
वह अपनी राजनैतिक ताकत आजमाने रघुवर दास के विरुद्ध ही खड़े हो गए। सरयू राय ने इस विधानसभा चुनाव में रघुवर दास के खिलाफ जमशेदपुर पश्चिम की जगह जमशेदपुर पूर्वी से निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी।
तब वर्ष 2019 के चुनाव में बतौर निर्दलीय उम्मीदवार सरयू राय ने तब के निवर्तमान सीएम सीएम रघुवर दास को 15 हजार से भी ज्यादा मतों से हरा दिया।
बिहार और झारखंड के चाणक्य एकसाथः
इस बार चुनाव में झारखंड और बिहार के चाणक्य एकसाथ आ गए हैं। नतीजतन NDA के वोट बैंक और जदयू के वोट बैंक सत्ता पक्ष के उम्मीदवार को कड़ी चुनौती देने जा रहे हैं। आज की तारीख में देखें तो चुनावी समीकरण सरयू राय के पक्ष में दिख रहा है।
सीएम किलर राजा पीटरः
तमाड़ विधानसभा से दम भर रहे राजा पीटर की चर्चा जायंट किलर या सीएम किलर के रूप में होती है। ये पहली बार चर्चा में तब आए जब तमाड़ विधायक रमेश सिंह मुंडा की हत्या के बाद 2009 में वहां उप चुनाव हुए थे। वहां से झारखंड मुक्ति मोर्चा से सीएम रहे शिबू सोरेन उम्मीदवार थे, जो तत्कालीन मुख्यमंत्री भी थे।
उधर, निर्दलीय गोपाल कृष्ण पातर उर्फ राजा पीटर खड़े हुए थे। राजा पीटर ने शिबू सोरेन को हराकर झारखंड की राजनीति में तहलका मचा दिया था। इसके बाद शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था।
2009 के झारखंड विधान सभा चुनाव में जदयू के उम्मीदवार रहे राजा पीटर ने जीत दर्ज की थी और 2010 में मद्य निषेध मंत्री भी बने। फिर बाद में उन्होंने जदयू से किनारा कर लिया।
एक बार फिर राजा पीटर ने जदयू ज्वाइन किया और इस बार तमाड़ से एनडीए के उम्मीदवार बने।
गठबंधन ने चुना पर्सनालिटीः
दरअसल, जदयू ने जिन दो उम्मीदवार को झारखंड विधानसभा में उतरा है। उनकी अपनी पर्सनालिटी हैं और अपना जनाधार भी है।
उस पर इन दोनों उम्मीदवार यानी सरयू राय और राजा पीटर को एनडीए के वोट बैंक का साथ इस विधानसभा चुनाव में एज देते दिखता है।
उस पर हाल ही में जिस हिंदुत्व की पटरी पर हरियाणा में जीत की गाड़ी चली है, उसकी वजह से झारखंड चुनाव पर एक सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
यह हालात झारखंड मुक्ति मोर्चा के सामने नई परेशानी के रूप में आया है। इसका असर तो चुनावी परिणाम के बाद पता चलेगा पर जदयू उम्मीदवारों के हौसले बढ़े हुए हैं।
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