Hemant Soren:
जब आपके ही सहयोगी आपको दूध की मक्खी की तरह निकाल चुके हैं?
मंत्री सुदीव्य सोनू खुद कह चुके हैं —
“मुख्यमंत्री को बिहार की वोटर अधिकार यात्रा में बुलाया गया था, लेकिन सीटों के मुद्दों पर दुत्कार दिया गया।
तो फिर सवाल है —
क्या हेमंत सोरेन इतने कमजोर हैं कि अपमान सहकर भी गठबंधन में बने रहेंगे?
दूसरी तरफ तेजस्वी यादव भी जानते हैं कि
अगर उन्होंने झारखंड में जेएमएम को नाराज़ किया,
तो उसका असर सीधे झारखंड की सियासत पर पड़ेगा।
तो हो सकता है कि दोनों नेताओं के बीच
कोई ‘मौन समझौता’ हो गया हो —
जहां बाहर से विरोध दिखे, और भीतर से समझदारी बनी रहे।
लेकिन दोस्तों,
अगर ऐसा कोई समझौता नहीं हुआ,
तो फिर यह सिर्फ बयानबाज़ी का खेल है,
जहां जेएमएम का राजनीतिक बारूद अब गीला पड़ चुका है।
राजनीति में गुरुजी शिबू सोरेन का नाम संघर्ष और आत्मसम्मान के लिए जाना जाता है।
आज गुरुजी को फैसला लेना होता तो क्या वे यही करते जो आज हो रहा है।
जेएमएम कोई नयी पार्टी नहीं है। 1980 से चुनाव लड़ रही है, जब एकीकृत बिहार था।
हेमंत सोरेन झारखंड में लगातार दूसरी बार सत्ता में आये हैं
और ऐसा कारनामा करनेवाले वे पहले मुख्यमंत्री हैं।
तो न तो जेएमएम से और न हेमंत सोरेन से उम्मीद की जाती है कि
वे इतने कच्चे निकलेंगे कि तेजस्वी यादव से गच्चा खा जायें. समझ न पायें।
जहां तक अंतिम समय तक लटकाने की बात है तो, 18 तारीख का प्रेस कांफ्रेंस क्यों किया गया था।
सीटें तय थीं. स्टार प्रचारक तय थे। आप उम्मीदवार उतार देते..
कोई सम्मानजनक समझौता होता तो नामांकन वापस करा देते..
अगर अपमान हुआ है तो हेमंत सोरेन इतने बेबस तो नहीं हैं कि अपमान का घूंट पीकर राजद को अपनी सरकार में मलाई खाने देंगे।
उनके पास तो कई विकल्प हैं तो वे अपमान का घूंट पीकर कितने दिन बर्दाश्त करेंगे
क्योंकि सुप्रियो भट्टाचार्य ने समीक्षा की बात कही और मंत्री सुदीव्य सोनू ने प्रतिकार की..
लेकिन कोई समय सीमा नहीं बतायी..
तो ऐसा थोड़े होता है कि जिसने अपमान किया आप उसे कैबिनेट में रखें और रोज अपमानित महसूस करें।
जिस हेमंत सोरेन ने जेल जाना कबूल किया, लेकिन भाजपा के आगे झुकना मंजूर नहीं किया,
वही हेमंत सोरेन तेजस्वी के हाथों अपमानित होकर चुप रहेंगे, समीक्षा करेंगे.
क्या आपको यह बात पच रही है..
तो दोस्तो बात वो नहीं है जो आपको दिखाई और बताई जा रही है..
आपको वह देखना और ढूंढना है जो दिखाया और बताया नहीं जा रहा है..
आखिर 18 से 20 अक्तूबर के बीच क्या हुआ..
क्या पटना से कोई वादा मिला.. कोई डील हुई..
और अगर नहीं हुई.. और जेएमएम सचमुच अपमानित हुआ,
और इसके बावजूद सिर्फ देख लेंगे और दिखा देंगे जैसी बातें हो रही हैं, तो यह सचमुच सोचनेवाली बात है कि क्या हेमंत है तो हिम्मत है.. क्या एक नारा भर है… और अगर हिम्मत है तो उसे अभी नहीं तो कब दिखाया जायेगा..
जेएमएम को 2024 के विधानसभा चुनाव में 34 सीटें मिली थीं। रामदास सोरेन के निधन के बाद यह आंकड़ा 33 है, लेकिन 14 नवंबर के बाद, जब घाटशिला सीट के उपचुनाव के नतीजे आ जायेंगे तो परिणाम चाहे जो हो झारखंड का सत्ता संतुलन बरकरार रहेगा। जेएमएम 34 रहे या 33 वही सबसे बड़ा दल रहेगा।
फर्ज कीजिए हेमंत सोरेन अगर राजद के साथ कांग्रेस को भी को गठबंधन से बाहर कर देते हैं, तो भी क्या होगा। खराब से खराब परिस्थिति में हेमंत सोरेन की सरकार अल्पमत में आ जायेगी। भाजपा की जो स्थिति है, वह किसी सूरत में सरकार नहीं बना सकती। उसके 21 विधायक हैं।
जदयू के सरयू राय, आजसू के निर्मल महतो और लोजपा रामविलास के जनार्दन पासवान को जोड़ दें तो भी आंकड़ा 24 ही होता है। एक जयराम महतो हैं, जो मेरी समझ से फिलहाल अकेले ही चलना पसंद करेंगे। तो अगर हेमंत सोरेन महागठबंधन से बाहर भी आ जाते हैं, तो उनकी सरकार अल्पमत में ही सही, लेकिन चलती रहेगी, क्योंकि कांग्रेस और राजद मिलकर 20 ही होते हैं।
माले को भी जोड़ दे तो 22 से आगे आंकड़ा नहीं जाता। और हेमंत सोरेन के पास 33 या 34 जो भी हो, तो वे बहुमत से सिर्फ 6 या सात सीटें ही दूर हैं। और झारखंड में विधायकों के टूटने का इतिहास नहीं है ऐसा भी नहीं है। हमने 2015 में जेवीएम का हश्र देखा है, जब बाबूलाल मरांडी के आठ में से छह विधायक टूटकर भाजपा में चले गये थे, तो आगे ऐसा नहीं होगा, ये कौन कह सकता है।
इसलिए कांग्रेस कभी नहीं चाहेगी कि वह हेमंत सोरेन का साथ छोड़े या ऐसी कोई ऐसी परिस्थिति बने कि विधायकों की खरीद फरोख्त या तड़फोड़ के चलते राज्य में राष्ट्रपति शासन की स्थिति बने। या मध्यावधि चुनाव की नौबत आये। राष्ट्रपति शासन लगा तो सत्ता बैकडोर से बीजेपी के हाथ चली जायेगी। झारखंड का कोई विधायक चाहे वह किसी पार्टी से जीतकर आया, हो वह भी नहीं चाहेगा कि मध्यावधि चुनाव हो। क्योंकि जीतने की गारंटी नहीं है। महागठबंधन टूटा और जेएमएम, आरजेडी और कांग्रेस अलग-अलग को चुनाव लड़ना पड़ा, तब तो राजनीतिक समीकरण और भी जटिल हो जायेगा।
यह बात हेमंत सोरेन भी जानते हैं और कांग्रेस भी। इसलिए हेमंत सोरेन जो भी फैसला लेंगे, उसे मानना कांग्रेस की मजबूरी होगी और झारखंड में तेजस्वी की तो कोई बिसात ही नही है, वह खुश हों या नाराज, हेमंत सोरेन को घंटा फर्क नहीं पड़ता।
फिर सोचिए जो हेमंत सेरेन भाजपा से नहीं डरे, वो तेजस्वी यादव के हाथों अपमान सह लेंगे। अपमान हुआ है तो बदला लें और समझौता हुआ है, तो वो भी बतायें.. हिम्मत तो दिखनी चाहिए न…
नोटः लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं..
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