Bihar elections:
रांची। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन को झटके पर झटके लग रहे हैं। बिहार में कांग्रेस-आरजेडी-लेफ्ट आपस में उलझे पड़े हैं। इस बीच झारखंड से भी महागठबंधन के लिए अच्छी खबर नहीं है। सीट शेयरिंग से नाराज हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने घोषणा की है कि वो बिहार में चुनाव नहीं लड़ेगी। इससे एक दिन पहले ही छह उम्मीदवारों की सूची जारी की थी।
स्टार प्रचारकों की लिस्ट तक जारी हो गई थी। जिसमें हेमंत सोरेन, उनकी पत्नी कल्पना, दुमका विधायक बसंत सोरेन और वरिष्ठ नेता स्टीफन मरांडी और सरफराज अहमद का नाम था। बिहार चुनाव से जेएमएम के हटने के बाद सत्ताधारी जेडीयू ने कांग्रेस-आरजेडी पर हमला बोला है। जेडीयू प्रवक्ता राजीव रंजन ने कहा कि बिहार में जेएमएम भले ही एक छोटा सा हिस्सेदार हो, लेकिन देखिए कि झारखंड चुनावी गठबंधन में उन्होंने आरजेडी की हिस्सेदारी को किस तरह से समायोजित किया। ये कृतज्ञता का जीता-जागता उदाहरण है। जहां जगह नहीं थी, वहां भी जेएमएम ने उन्हें जगह दी। अब उनके साथ जो व्यवहार किया गया, उसका महागठबंधन को झारखंड में कहीं न कहीं नुकसान उठाना पड़ेगा।
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जेडीयू के प्रधान महासचिव रहे केसी त्यागी ने जब मुख्य प्रवक्ता पद से इस्तीफा दिया, तो सितंबर 2024 में राजीव रंजन प्रसाद को नीतीश कुमार ने मुख्य प्रवक्ता बनाया। वैसे, राजीव रंजन प्रसाद जेडीयू में कायस्थ जाति के नेता के तौर पर देखे जाते हैं। लंबे समय से वो जेडीयू पार्टी के लिए काम करते रहे हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर पार्टी के स्टैंड को मीडिया में रखते हैं। महागठबंधन में चल रहे उठा-पटक पर राजीव रंजन ने कहा कि महागठंबधन जैसे किसी गठबंधन का अस्तित्व नहीं बचा है। लगभग 15 सीटों पर उनके गठबंधन के दलों के बीच ही आपसी घमासान है। मुकेश सहनी जैसे नेताओं के अस्तित्व पर संकट का समय शुरू हो चुका है।
लालू यादव के पत्र के बाद भी राजद के उम्मीदवार का नामांकन रद्द नहीं हुआ है, तो स्पष्ट है कि जिस सीट पर मुकेश सहनी लड़ना चाहते थे, उस सीट पर राजद का कोई उम्मीदवार उनके खिलाफ लड़ेगा। पूरे बिहार में कई सीटों पर राजद, कांग्रेस और उनके अन्य सहयोगी दलों के लोग एक-दूसरे के खिलाफ लड़ेंगे। नेता तय नहीं है, जंगलराज का बोझा है, वो उनके साथ है और लालू और तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के अनेक मामले भी चल रहे हैं। यह मुकाबला एकतरफा है।’
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दरअसल, जेएमएम का बिहार चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर विवाद की लगातार आ रही खबरों के बीच आई। झारखंड के मंत्री और झामुमो नेता सुदिव्य कुमार ने कहा, ‘झामुमो के साथ राजनीतिक खेल खेला गया और परिणामस्वरूप, पार्टी ने बिहार चुनाव 2025 से हटने का फैसला किया। हम वहां किसी भी राजनीतिक दल का समर्थन नहीं करेंगे। लेकिन, इन चुनावों में झामुमो के महागठबंधन का हिस्सा न होने का खामियाजा एलायंस को भुगतना पड़ेगा। बताते चलें कि इससे पहले, झामुमो ने घोषणा की थी कि वो चकाई, धमदाहा, कटोरिया (एसटी), मनिहारी (एसटी), जमुई और पीरपैंती (एससी) से चुनाव लड़ेगी। जेएमएम महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा था कि पार्टी ने बिहार चुनाव अपने दम पर लड़ने का फैसला किया है। जेएमएम ने घोषणा की थी कि वो चुनाव के बाद झारखंड में कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल के साथ अपने गठबंधन की ‘समीक्षा’ करेगी।
‘कलह’ की वजह से बिहार चुनाव से पीछे हटा जेएमएम?
झारखंड मुक्ति मोर्चा के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने आरोप लगाया था कि सीट बंटवारे की बातचीत के दौरान झामुमो को दरकिनार कर दिया गया, जबकि उसने महागठबंधन के सभी घटक दलों- राजद, कांग्रेस और विशेष रूप से राजद से संपर्क किया था, क्योंकि वो वहां सबसे बड़ी क्षेत्रीय पार्टी है। उन्होंने कहा, ‘उनके माध्यम से हमने अपनी चिन्हित सीटों के बारे में कांग्रेस आलाकमान से संपर्क किया, जहां हमारे कार्यकर्ता लंबे समय से जेडीयू-बीजेपी गठबंधन के खिलाफ लड़ रहे हैं। झारखंड में हमने 2019 में आरजेडी और कांग्रेस का समर्थन किया। हमने उन्हें अपनी सीटें दीं।’
उन्होंने दोनों प्रमुख राजनीतिक गठबंधनों के भीतर विरोधाभासों की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘हर जगह स्थिति अलग है। कांग्रेस राजद के खिलाफ क्यों चुनाव लड़ रही है? सीपीआई वीआईपी के खिलाफ क्यों चुनाव लड़ रही है? चुनावी रणनीतियां बदलती रहती हैं। बिहार चुनावों के लिए एनडीए और महागठबंधन के भीतर विरोधाभास हैं, हम झारखंड में गठबंधन की ‘समीक्षा’ करेंगे।’
बिहार में जेएमएम को एडजस्ट नहीं कर पाई आरजेडीः
ये विवाद तब शुरू हुआ जब 11 अक्टूबर को झामुमो ने राष्ट्रीय जनता दल को अल्टीमेटम दिया और 14 अक्टूबर तक ‘सम्मानजनक संख्या में सीटें’ देने की मांग की। कथित तौर पर 12 सीटें जेएमएम ने मांगी थी। पार्टी ने चेतावनी दी थी कि अगर मांग पूरी नहीं हुई तो वो अपना फैसला खुद लेगी। सुप्रियो भट्टाचार्य ने पहले कहा था, ‘हम लड़ेंगे, जीतेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि बिहार में झामुमो के बिना कोई सरकार न बने।’ हालांकि, आखिरी मौके पर बिहार चुनाव से जेएमएम बाहर हो गया।
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