रांची। श्रावण मास में भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्त्व है। इस माह में पड़नेवाले सोमवार “सावन के सोमवार” कहे जाते हैं, जिनमें स्त्रियां तथा विशेष तौर से कुंवारी युवतियां भगवान शिव के निमित्त व्रत रखती हैं।
श्रावण मास भगवान शिवजी का प्रिय मास है। श्रावण अथवा सावन हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष का पांचवां महीना होता है।
इस माह में अनेक महत्त्वपूर्ण त्योहार मनाये जाते हैं, जिसमें ‘हरियाली तीज’, ‘रक्षा बन्धन’, ‘नाग पंचमी’ आदि प्रमुख हैं। श्रावण मास में ही पवित्र अमरनाथ यात्रा भी की जाती है।
बाबा का पहला कांवरिया रावण था
माना जाता है कि पहला ‘कांवड़िया‘ रावण था। श्रीराम ने भी भगवान शिव को कांवड चढ़ायी थी। श्रावण मास से जुड़ी विभिन्न मान्यताओं में एक मान्यता यह भी है कि इस दौरान भगवान शिव पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गये थे और वहां उनका स्वागत आर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था।
माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है।
इसके अलावा पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था।
समुद्र मथने के बाद जो विष निकला, उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की, लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया।
इसी से उनका नाम ‘नीलकंठ महादेव’ पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया।
इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का खास महत्त्व है। यही वजह है कि श्रावण मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। ‘शिवपुराण‘ में तो यहां तक उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं।
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