Wednesday, October 22, 2025

झारखंड में जातिगत सर्वे से किसे फायदा, किसे नुकसान [Who benefits and who loses from the caste survey in Jharkhand]

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सर्वे हुआ तो क्या बदलेगा

रांची। बिहार और तेलंगाना के बाद झारखंड में भी जातीय सर्वे होगा। कांग्रेस विधायक प्रदीप यादव के सवाल के जवाब में राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री दीपक बिरुआ ने विधानसभा में बताया, ‘जातीय सर्वे कराने को लेकर सरकार प्रतिबद्ध है। अगले वित्तीय वर्ष (2025-26) में यह काम होगा।’

उनका कहना है कि कार्मिक विभाग इस पर काम कर रहा है। वित्तीय प्रबंधन सहित कई चीजों को देखा जा रहा है। कुछ निजी एजेंसी से बात भी हुई है।
हालांकि, झारखंड में जातीय सर्वे की बात अभी सिर्फ कागजों में ही है। सरकार ने कोई विशेष पहल नहीं की है। इसके पीछे हेमंत सोरेन की सधी राजनीति भी बताई जा रही है।

कहां से आई जातीय सर्वेक्षण की बातः

दरअसल, झारखंड में जातीय सर्वे की बात चुनाव से ठीक पहले की है। यहां कांग्रेस ने उस मुद्दे को हवा दी। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले झारखंड में इंडिया गंठबंधन ने संयुक्त घोषणापत्र जारी की थी। इस घोषणा पत्र में राज्य में जातीय सर्वे कराने की बात कही थी। हालांकि जेएमएम की ओर से जारी घोषणापत्र में इसका उल्लेख नहीं था।

जातीय सर्वे की बात झारखंड में कभी रही भी नहीं है। राज्य में कांग्रेस सत्ता में है और कांग्रेस के आलाकमान राहुल गांधी देशभर में जातीय सर्वे कराने की बात कर रहे थे, तब राज्य में चुनाव को देखते हुए इसे मुद्दा बनाया गया। जिसका इंडिया गठबंधन की अन्य पार्टियों ने समर्थन किया। अगर झारखंड में जातीय सर्वेक्षण हो जाता है तो ऐसा करने वाला देश में यह चौथा राज्य होगा। इससे पहले बिहार, कर्नाटक और तेलंगाना में जातीय सर्वे हो चुका है।

जातीय सर्वेक्षण और राज्य सरकारः

जातीय सर्वेक्षण की बात और राज्य सरकार के अब तक के उठाए गए कदम पर पॉलिटिकल विशेषज्ञों की राय मिलती जुलती है। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि जातीय सर्वे महज मुद्दा भर है। इसके लिए जितना कांग्रेस आतुर है, जेएमएम उतना ही निश्चिंत है। विशेषज्ञों की मानें तो इस जातीय सर्वे से कांग्रेस को कितना फायदा होगा यह तो पता नहीं पर जेएमएम को दूरगामी नुकसान जरूर हो जाएगा।

सरकार सदन में नए वित्तीय वर्ष में सर्वे कराने की बात जरूर कह रही है पर यह नहीं बता पा रही है कि यह सर्वे कब से और कैसे कराया जाएगा। सर्वे के प्रति सरकार के रवैये को देखते हुए एक्सपर्ट मानते हैं कि समय-समय पर यह विषय उठता जरूर रहेगा, पर इसके पूरा होने की संभावना नहीं के बराबर है।

कांग्रेस जल्दबाजी में क्यों ? फिर दबाव क्यों नहीं बना रहा

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना हैं कि जातिगत सर्वे या गणना को लेकर जितनी जल्दबाजी कांग्रेस को है उतना जेएमएम को नहीं है। कांग्रेस को जल्दबाजी इस बात की है कि इनके आलाकमान देशभर में घूम-घूम कर जातीय गणना और आरक्षण की 50 फीसदी दीवार तोड़ने की बात कर रहे हैं। उनका कहना है कि जितना हिस्सेदारी उतनी भागीदारी होगी। यही वजह है कि यहां कांग्रेस को जल्दबाजी है।

हांलाकि विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि जल्दबाजी कांग्रेस को जरूर है पर उनकी क्षमता ऐसी नहीं है कि वह सरकार या जेएमएम पर प्रेशर बना सके। इसके पीछे की वजह यह भी है कि पार्टी इस बात को अच्छे से जानती है कि हाल में हुआ विधानसभा चुनाव में उसकी जो जीत हुई है उसके पीछे जेएमएम और हेमंत के समर्थन के साथ मंईयां सम्मान जैसी योजना है। कांग्रेस केवल अपने बूते चुनाव नहीं जीती है।

कांग्रेस को आलाकमान के आदेश की मजबूरीः

जातीय सर्वे को लेकर कांग्रेस के पास एक तो आलाकमान के आदेश की मजबूरी है और दूसरा वह खुद चाहती है। यह दिखाने के लिए भी कि वह आलाकमान के मुद्दे को उठाए हुए है। वहीं दूसरी ओर जेएमएम के साथ ऐसी कोई मजबूरी नहीं है।
ऐसा इसलिए भी जेएमएम के साथ अल्पसंख्यक, आदिवासी सहित अन्य समुदायों के मत का समर्थन है। अगर सर्वे होता है तो इससे कई चीजें स्पष्ट हो जाएंगी। ऐसे में संभावना बनती है कि जेएमएम को उस आधार पर नुकसान हो जाए। यही वजह है कि जेएमएम को इसे लेकर कोई जल्दबाजी नहीं है।

सरकार वाकई इस सर्वे को कराना चाहती है?

इस सवाल का जवाब इस पर निर्भर करता है कि कांग्रेस कितना दबाव बना पाती है। तमाम राजनीतिक परिदृश्यों को देखें तो स्पष्ट है कि अगर राज्य में जातीय सर्वे कराना है तो कांग्रेस को आलाकमान स्तर से दबाव बनाना होगा।

राज्य में जातीय सर्वे महज मुद्दाः

वरिष्ठ पत्रकार आनंद कुमार कहते हैं कि झारखंड की राजनीति उन राज्यों से अलग है जहां जातीय सर्वे हो चुके हैं। कांग्रेस राज्य में सर्वे की बात इसलिए कह रही है कि क्योंकि यह राहुल गांधी का मुद्दा है। राहुल गांधी को खुद नहीं पता है कि जातीय सर्वे करा कर फायदा क्या होगा।
कभी ओबीसी कांग्रेस का परंपरागत वोटर हुआ करता था, जो अब रहा नहीं। अलग-अलग राज्यों में इनका बंटवारा हो गया है। जातीय सर्वे महज एक मुद्दा भर में है। वह कहते हैं कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद अब हेमंत सोरेन सरकार इस मुद्दे पर बहुत आतुर दिखाई नहीं दे रही है।

जेएमएम के रुख से समझें, कांग्रेस का फायदा

सदन में कांग्रेस के विधायक इस मुद्दे को उठा रहे हैं। अब सवाल है कि कांग्रेस को इससे क्या फायदा होने जा रहा है। जेएमएम के रुख को समझा जा सकता है। पार्टी आदिवासी और मुसलमानों के साथ झारखंड की क्षेत्रीय अस्मिता की राजनीति पर जोर देती है। इसमें सभी मूलवासी खतियान धारी जातियां शामिल हैं। ऐसे में जेएमएम समाज को जातीय आधार पर बांटने के पक्ष में नहीं होगा।

दूसरा खतरा यह भी है कि जातीय गणना होने पर जातीय संख्या सामने आने पर ओबीसी के भीतर भी कोटा देने की मांग तेज हो जाएगी। राज्य में पहले से ही सिर्फ 14 फीसदी आरक्षण लागू है। कुरमी, यादव और वैश्य जातियों के साथ-साथ मुसलिम समुदाय भी अधिक प्रतिनिधित्व की मांग उठा सकता है। कांग्रेस के जनाधार को झारखंड में देखें तो यह जेएमएम के जैसा ही है।

धर्मांतरित आदिवासी और मुसलमान इसके साथ हैं। ऐसे में इस जातीय सर्वे से कांग्रेस को कोई खास फायदा होता दिख नहीं रहा है। चूंकि राष्ट्रीय स्तर पर राहुल गांधी इस मुद्दे को उठाए हुए हैं, तो राज्य में कांग्रेस की मजबूरी है कि वह भी इसे उठाए। अगर राज्य में यह सर्वे होता है तो यह सरदर्द ही साबित होगी।

3 प्वाइंट में जानिए सर्वे को लेकर जेएमएम उदासीन क्योः

जातीय सर्वे की बात कांग्रेस की है। जेएमएम ने केवल समर्थन दिया है। यही वजह है कि जेएमएम के चुनावी घोषणा पत्र में जातीय सर्वे की बात नहीं थी।
जेएमएम इस बात को अच्छी तरह जानती है कि सर्वे को लेकर कांग्रेस इस स्थिति में नहीं है कि वह दबाव बना सके।

इस सर्वे के बाद जातियों के आंकड़े सामने आएंगे। ऐसे में संख्या के मुताबिक दावेदारी भी बढ़ेगी। आदिवासी-मुसलमान की राजनीति करने वाली जेएमएम को इससे दूरगामी नुकसान उठाने होंगे। पार्टी ऐसा कतई नहीं चाहेगी।

3 प्वाइंट में समझिए कांग्रेस दबाव क्यों नहीं बना रही

सरकार में कांग्रेस की स्थिति बहुत मजबूत नहीं है। पार्टी भी इस बात को जानती है। पार्टी इस बात को भी समझती है कि हालिया विधानसभा में उनकी जीत घोषणापत्र के आधार पर नहीं, बल्कि जेएमएम, हेमंत और मंईयां सम्मान योजना की वजह से मिली है।

पार्टी का यह मुद्दा राज्य से अधिक केंद्र स्तर का है। राज्य में इसे लेकर कोई खास रूझान भी नहीं है। वहीं पार्टी समझती है कि इससे उनके भीतर भी हिस्सेदारी की मांग बढ़ जाएगी।
राज्य में पार्टी के भीतर खाने भी संगठन में मजबूती नहीं है। जब पार्टी ही मजबूत नहीं है ऐसे में केवल सर्वे के नाम पर सरकार गिराने और समर्थन वापसी की भूल पार्टी नहीं करना चाहेगी।

जातीय सर्वेक्षण की वस्तुस्थितिः

राज्य में जातिगत सर्वे की वस्तुस्थिति ऐसी है कि बीते 3 मार्च को जातीय सर्वे के नोडल विभाग कार्मिक विभाग की बैठक हुई। इसमें सर्वे की रूपरेखा, मैनपावर, बजट आदि को लेकर चर्चा हुई। जानकारी के मुताबिक इसके बाद से इस मुद्दे पर विभाग स्तर पर बड़े पैमाने पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। अगर प्रक्रिया की बात करें तो जिन सर्वे को लेकर बजट का प्रस्ताव तैयार होगा। वित्त विभाग से इसकी मंजूरी मिलेगी। इसके बाद ही सर्वे के काम को आगे बढ़ाया जा सकता है।

जातीय सर्वे हुआ तो क्या असर पड़ेगा?

एक्सपर्ट के मुताबिक झारखंड में कास्ट बेस्ड राजनीति से ज्यादा बाहरी-भीतरी की राजनीति चलती है। ऐसे में अगर जातीय सर्वे होता भी है तो इससे जातियों की स्थिति में कितना बदलाव होगा यह तो स्पष्ट नहीं दिखता है। पॉलिटिकल इंपैक्ट के तहत जेएमएम को नुकसान जरूर हो सकता है। एक्सपर्ट की मानें तो यह भी देखना चाहिए कि जिन राज्यों में जातीय सर्वेक्षण हुआ है, वहां किस तरह के परिवर्तन हुए हैं।

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