रांची: हमारा भारत में वीरों का देश है, यहां वीरों की कमी नहीं है। ऐसे ही एक वीर के बारे में बताने जा रहे हैं जो 1965 के भारत- पाक युद्ध में अदना से गन माउंटेड जीप पर सवार होकर पाकिस्तान के अजेय समझे जाने 4 पैटन टैंकों को उड़ा दिये थे।
उनका नाम है अब्दुल हमीद। आज परमवीर चक्र विजेता शहीद अब्दुल हमीद की पुण्यतिथि है। 10 सितंबर 1965 को पाकिस्तान के साथ युद्ध में शहीद हो गये थे।
भारत-पाकिस्तान युद्ध में उन्होंने आरसीएल गन से अमेरिका निर्मित पैटन टैंकों को ध्वस्त किया था। उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा गया था।
उन्हें याद करने वाले 10 सितंबर को उनके शहादत दिवस के तौर पर याद कर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। इसलिए यह मौका है कि उनकी वीरता की कहानी को हमलोग जरूर जानें।
वीर अब्दुल हमीद उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धामूपुर गांव के निवासी थे। अब्दुल हमीद भारतीय सेना की 4TH ग्रेनेडियर में सिपाही थे।
1965 की जंग छिड़ी तो वह छुट्टी पर घर आए हुए थे। उन्हें जंग की सूचना मिली तो तुरंत बैग पैककर अपनी यूनिट के लिए रवाना हो गए।
उस समय घर से निकलते ही अपशकुन होने शुरू हो गए थे। पहले उनके बेडिंग का बेल्ट टूट गया। इसे वह दोबारा बांध कर आगे बढ़े तो साइकिल का टायर फट गया।
उस समय घर वालों ने अपशकुन की बात की, तो उन्होंने कहा कि जवान अपशकुन से नहीं घबराते। इसके बाद वह ट्रेन पकड़ने के लिए रवाना हो गये।
तो वहीं, दूसरी तरफ पाकिस्तानी फौजें ऑपरेशन जिब्राल्टर के तहत भारतीय सीमा में घुसपैठ करने की कोशिश कर रहीं थी। विरोध में युद्ध छिड़ गया था।
इस युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान में खूब तबाही मचाई। इसका जवाब पाकिस्तान में अजेय समझी जाने वाली पैटन टैंकों ने देना शुरू किया तो स्थिति बदल गई।
ऐसे हालत में खेमकरन सेक्टर में तैनात अब्दुल हमीद एक अदना से गन माउंटेड जीप लेकर पैटन टैंकों का मुकाबला करने निकल पड़े। देखते ही देखते उन्होंने एक के बाद एक तीन टैंकों को विध्वंस कर दिया।
इससे पाकिस्तानी सेना में भगदड़ मच गई। इसके बाद अब्दुल हमीद ने चौथे टैंक को भी निशाने पर लेकर उड़ाने के लिए ट्रिगर दबा दिया, गोला उस टैंक पर गिरा भी लेकिन उस टैंक के विध्वंस से पहले उसमें से भी एक गोला निकल चुका था, जो अब्दुल हमीद की जीप पर आ गिरा और देश का यह वीर सपूत शहीद हो गया।
अब्दुल हमीद बचपन में चिड़िया को उड़ाकर साधते थे निशाना
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धामूपुर गांव के पहलवान मोहम्मद उसमान खलीफा और सकीना बेगम के घर एक जुलाई 1933 को पैदा हुए अब्दुल हमीद एक दर्जी परिवार से संबंध रखते थे।
उनके माता पिता भी चाहते थे कि वह पुश्तैनी काम करें, लेकिन अब्दुल हमीद को यह पसंद नहीं था।
एक दिन बनारस गए और फौज के भर्ती सेंटर पहुंच गए। वहां भर्ती चल रही थी तो वह भी लाइन में खड़े हो गए। चूंकि हृष्ट पुष्ट थे ही, इसलिए वह फौज में भर्ती भी हो गए।
इसके बाद उनकी शादी हो गई और चार बेटों के साथ उन्हें एक बेटी हुई। उनके छोटे बेटे जुनाद बताते हैं कि उन्हें पिता की ज्यादा यादें तो नहीं हैं, लेकिन उन्होंने यह सुना है कि उनके पिता कभी बैठी चिड़िया पर निशाना नहीं लगाते थे। जब भी वह शिकार करते थे तो पहले चिड़िया को उड़ाते थे और फिर निशाना लगाते थे।
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