Govardhan Puja and Bhai Dooj:
रांची। Govardhan Puja & Bhai Dooj 2025: इस वर्ष कार्तिक माह का दिवाली-समारोह साधारण से अलग रूप ले रहा है। धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज तक चलने वाला यह उत्सव कुल छह दिनों तक चलेगा। 2025 में दिवाली का मुख्य पर्व (महालक्ष्मी पूजा) 20 अक्टूबर को मनाया गया, जबकि पारंपरिक रूप से महालक्ष्मी पूजा के ठीक अगले दिन गोवर्धन पूजा आती है। इस बार गोवर्धन पूजा 22 अक्तूबर 2025 को होगी, जिसके चलते पर्व तालिका में एक दिन का अंतर आया है और समापन 23 अक्तूबर को भाई दूज पर होगा।
गोवर्धन पूजा (अन्नकूट / प्रतिपदा): 22 अक्टूबर 2025
प्रतिपदा तिथि आरंभ: 21 अक्टूबर, शाम 05:54
प्रतिपदा तिथि समापन: 22 अक्टूबर, रात्रि 08:16
प्रातःकाल मुहूर्त: सुबह 06:26 — सुबह 08:42
सायाह्न मुहूर्त: दोपहर 03:29 — शाम 05:44
भाई दूज (द्वितीया): 23 अक्टूबर 2025
द्वितीया तिथि आरंभ: 22 अक्टूबर, रात्रि 08:16
द्वितीया तिथि समापन: 23 अक्टूबर, रात्रि 10:46
भाई दूज का शुभ समय: दोपहर 01:13 — दोपहर 03:28
गोवर्धन पूजा: क्यों और कैसे मनाते हैः
गोवर्धन पूजा, जिसे अन्नकूट भी कहते हैं, भगवान कृष्ण की गोवर्धन पर्वत उठाकर ब्रजवासियों और उनके पशुओं को इंद्र की भारी वर्षा से बचाने की कथा की स्मृति में मनाया जाता है। इस दिन श्रद्धालु गोवर्धन पर्वत की रूपक अराधना करते हैं — मिट्टी, चावल, फल, फूल और हल्दी-कुंकुम से छोटे-छोटे गोवर्धन की प्रतिमाएं बनाकर पूजा की जाती है। उत्तर भारत खासकर वृंदावन-बरसाना तथा ग्रामीण इलाकों में किसान और ग्रामीण समुदाय बड़े उत्साह से अन्नकूट तैयार करते हैं और वर्ष भर की समृद्धि, सुख-शांति और स्वास्थ्य की प्रार्थना करते हैं।
अन्नकूट परंपरा: श्रद्धालु विभिन्न प्रकार के पक्वान्न और भोजन सामग्री (लड्डू, हलवा, चावल-दाल, सब्जियां) को अन्नकूट के रूप में रखते हैं और फिर प्रसाद के रूप में बांटते हैं। मठ-मंदिरों एवं ग्रामीण मेलों में यह पर्व विशेष भव्यता से मनाया जाता है।
भाई दूज: भाई-बहन के रिश्ते की बेलाः
भाई दूज भाई-बहन के अटूट बंधन का प्रतीक है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और मंगलकामना के लिए तिलक करती हैं और भाई उन्हें उपहार देते हैं। 2025 में भाई दूज का शुभ मुहूर्त दोपहर 01:13 — 03:28 है, इस समय के भीतर तिलक करना उत्तम है।
श्रद्धालुओं को गोवर्धन पूजा और भाई दूज के मुहूर्तों को ध्यान में रखकर कार्यक्रम, यात्रा या पारिवारिक आयोजन तय कर लेने की सलाह दी जाती है।
क्या करें?
- पूजा-सामग्री पहले से तैयार रखें — अन्नकूट हेतु चावल-दाल-फल-फूल आदि।
- मुहूर्तों का पालन यदि परिवार में किसी पुरोहित/पंडित का मार्गदर्शन है, तो उनके अनुसार करें; अन्यथा ऊपर दिए गए शुभ समय का उपयोग करें।
- सुरक्षा व सामाजिक दूरी — मेला-कार्यक्रम या मंदिर जाने पर भीड़भाड़ से बचें और स्थानीय नियमों का पालन करें।
- पारंपरिक रीति-रिवाज़ों को संजोएँ — ग्रामीण परम्पराओं में यह पर्व विशेष अर्थ रखता है; यदि संभव हो तो स्थानीय रीति-रिवाज़ों का पालन करिए।
दिवाली और उसके आसपास के त्योहार सामाजिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से गहरे अर्थ रखते हैं। महालक्ष्मी पूजा, गोवर्धन पूजा और भाई दूज एक दूसरे से जुड़ी संवेदनाओं और परंपराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस वर्ष की तिथियों के कारण उत्सव-तालिका में जो व्यवधान आया है, वह धार्मिक महत्त्व में कोई कमी नहीं लाता, पर उत्सव-कार्यक्रमों की योजना बनाते समय समय-सीमा और मुहूर्तों का ध्यान रखना आवश्यक है।
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