Rath Yatra 2025:
रांची। रांची में हर साल होने वाली जगन्नाथपुर मंदिर की रथ यात्रा की तैयारियां इस बार भी जोरों पर हैं। यह आयोजन ओडिशा के पुरी के रथ यात्रा से प्रेरित है और आषाढ़ माह के दौरान आयोजित होता है। इस साल रथ यात्रा 27 जून को होगी, जबकि उसकी वापसी यात्रा (घूरती रथ यात्रा) 6 जुलाई को निर्धारित की गई है। रथ यात्रा का आयोजन केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह रांची की सांस्कृतिक पहचान का भी अहम हिस्सा बन चुका है।
Rath Yatra 2025: लोहरा परिवार का 300 साल पुराना रथ निर्माण
रथ यात्रा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि पिछले 300 सालों से भगवान जगन्नाथ के रथ का निर्माण रांची के धुर्वा स्थित लोहरा परिवार द्वारा किया जा रहा है। महावीर लोहरा, जो इस परंपरा के चौथी पीढ़ी के सदस्य हैं, अपने बेटे और पोते के साथ मिलकर इस वर्ष रथ का निर्माण कर रहे हैं। महावीर लोहरा ने कहा, “यह सेवा उनके लिए भगवान जगन्नाथ की कृपा का प्रतीक है। हम इसे अपने जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य मानते हैं।”
Rath Yatra 2025:रथ यात्रा की तारीख और आयोजन
लोहरा परिवार का कहना है कि रथ का निर्माण कार्य 25 जून तक पूरा कर लिया जाएगा, ताकि 27 जून को रथ यात्रा विधिपूर्वक शुरू हो सके। रथ यात्रा में हजारों श्रद्धालु रांची और आसपास के जिलों से हिस्सा लेंगे।
Rath Yatra 2025:एक सामाजिक उत्सव का रूप ले चुका है रथ यात्रा
रथ यात्रा अब सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं रह गई है, बल्कि यह रांची की सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान बन चुकी है। हर साल होने वाले दस दिवसीय मेले में लाखों लोग शामिल होते हैं। इस मेले में व्यापारियों के लिए रोजगार के अवसर और श्रद्धालुओं के लिए तमाम धार्मिक, सांस्कृतिक और मनोरंजन गतिविधियां होती हैं। बच्चों के लिए झूले, स्टॉल, और रंग-बिरंगे झांके विशेष आकर्षण का केंद्र होते हैं।
Rath Yatra 2025:आधुनिक व्यवस्थाओं के साथ परंपरा का संगम
जहां एक ओर लोहरा परिवार इस परंपरा को बरकरार रखते हुए रथ निर्माण कर रहा है, वहीं प्रशासन भी आधुनिक सुविधाओं का ध्यान रख रहा है। सुरक्षा व्यवस्था, स्वास्थ्य शिविर, पेयजल व्यवस्था और यातायात प्रबंधन जैसी व्यवस्थाएं सुनिश्चित की जा रही हैं। यह आयोजन प्रशासन, समाजसेवियों और धर्माचार्यों के सामूहिक प्रयासों से एक भव्य और सुव्यवस्थित आयोजन बनता है।
Rath Yatra 2025:जगन्नाथपुर मंदिर का ऐतिहासिक महत्व
धुर्वा स्थित जगन्नाथपुर मंदिर का संबंध पुरी के श्रीजगन्नाथ मंदिर से भी जुड़ा हुआ है। इस मंदिर का निर्माण 1691 में नागवंशी शासक ठाकुर ऐनीनाथ शाहदेव ने किया था। मंदिर से 500 मीटर की दूरी पर स्थित मौसीबाड़ी मंदिर रथ यात्रा का अंतिम पड़ाव है, जहां विशेष पूजा और उत्सव आयोजित होते हैं।
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