Dishom Guru:
रांची। झारखंड आंदोलन के जनक, महाजनों और सूदखोरों के खिलाफ आदिवासियों को जगाने वाले, धनकटनी आंदोलन और आदिवासी समाज को शिक्षित करने का अभियान चलाने वाले झारखंड के सबसे बड़े नायक शिबू सोरेन नहीं रहे। झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) सुप्रीमो दिशोम गुरु ने आज दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में अंतिम सांस ली। उनके निधन से पूरे झारखंड में शोक की लहर है।
UPA कार्यकाल में रहे थे कोयला मंत्रीः
शिबू सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक संरक्षक थे। वह यूपीए के पहले कार्यकाल के दौरान कोयला मंत्री रह चुके थे। हालांकि चिरूडीह हत्याकांड में नाम आने के बाद उन्होंने केंद्रीय मंत्रीमंडल से इस्तीफा दे दिया था।
13 साल में हुई थी पिता की हत्याः
81 साल के दिशोम गुरु शिबू सोरेन का जन्म वर्तमान रामगढ़ जिले के गोला प्रखंड के नेमरा में 11 जनवरी 1944 को हुआ। गांव के ही स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा लिए दिशोम गुरु का जीवन संघर्षों भरा रहा।
महज 13 साल की उम्र के थे, जब उनके पिता की हत्या महाजनों ने कर दी। इसके बाद शिबू सोरेन ने पढ़ाई छोड़ दी और महाजनों के खिलाफ संघर्ष का फैसला किया।
ऐसे शिबू सोरेन कहलाए ‘दिशोम गुरु’
पिता की हत्या के बाद वह इस बात को समझ गए थे कि पढ़ाई से ज्यादा जरूरी है महाजनों के खिलाफ आदिवासी समाज को इकट्ठा करना। उन्होंने सूदखोर महाजनों के खिलाफ काम करना शुरू किया। 1970 में वे महाजनों के खिलाफ खुल कर सामने आए और धान कटनी आंदोलन की शुरुआत की। सूदखोरों के खिलाफ आंदोलन चलाकर शिबू सोरेन चर्चित तो हुए, लेकिन महाजनों को अपना दुश्मन बना लिया।
शिबू को रास्ते से हटाने के लिए महाजनों ने भाड़े के लोग जुटाए। उन दिनों आदिवासियों को जागरूक करने के लिए शिबू सोरेन बाइक से गांव-गांव जाते थे। इसी दौरान एक बार उन्हें महाजनों के गुंडों ने घेर लिया। बारिश का सीजन था। बराकर नदी उफान पर थी। शिबू सोरेन समझ गए कि अब बचना मुश्किल है।
उन्होंने आव देखा न ताव, अपनी रफ्तार बढ़ाई और बाइक समेत नदी में छलांग लगा दी। सभी को लगा उनका मरना तय है, लेकिन थोड़ी देर बाद शिबू तैरते हुए नदी के दूसरे छोर पहुंच गए। लोगों ने इसे दैवीय चमत्कार माना। आदिवासियों ने शिबू को ‘दिशोम गुरु’ कहना शुरू कर दिया। संथाली में दिशोम गुरु का अर्थ होता है देश का गुरु।
जब पहली बार CM बने, 10 दिन में गिर गई सरकारः
शिबू सोरेन 2 मार्च 2005 को पहली बार CM बने, लेकिन बहुमत साबित नहीं कर पाने के कारण दस दिन में ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। 27 अगस्त 2008 को शिबू सोरेन दूसरी बार झारखंड के CM बने। इस बार वे विधायक नहीं थे। इस कारण छह महीने में उन्हें चुनाव जीतकर विधानसभा का सदस्य बनना था।
पांच महीने बाद 2009 में उपचुनाव हुआ। शिबू को एक सुरक्षित सीट की जरूरत थी, लेकिन कोई भी उनके लिए सीट छोड़ने को तैयार नहीं था। जो विधायक सीट छोड़ने को तैयार थे, वो मुश्किल सीट थी। तमाड़ विधानसभा में उपचुनाव का ऐलान हुआ। UPA ने गठबंधन की ओर से शिबू का नाम रखा, लेकिन शिबू वहां से चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे।
वह जानते थे कि तमाड़ मुंडा बहुल है। वहां मुश्किल हो सकती है। मजबूरी में शिबू सोरेन ने पर्चा दाखिल कर दिया। विरोधी के रूप में झारखंड पार्टी के राजा पीटर मैदान में थे। 8 जनवरी 2009 को परिणाम आया तो CM शिबू सोरेन करीब 9 हजार वोट से उपचुनाव हार गए थे। आखिर में उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
3 बार के कार्यकाल में सिर्फ 10 महीने सरकार चलाईः
तीन बार के कार्यकाल में शिबू सोरेन को 10 महीना 10 दिन ही राज्य की कमान संभालने का मौका मिला। शिबू सोरेन पहली बार 2 मार्च 2005 को झारखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे। वे 2 मार्च से 12 मार्च यानी कि सिर्फ 10 दिनों के लिए मुख्यमंत्री बने थे।
इसके बाद शिबू सोरेन दूसरी बार 28 अगस्त 2008 को झारखंड के मुख्यमंत्री बने। इस बार उन्हें पांच महीने तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का मौका मिला। उन्होंने 18 जनवरी 2009 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
फिर तीसरी बार 30 दिसंबर 2009 को शिबू सोरेन झारखंड के मुख्यमंत्री बने। इस बार फिर उन्हें पांच महीने ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने का मौका मिला। उन्होंने 31 मई 2009 को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया।
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