नयी दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने अपने संस्मरण में कहा है कि प्रणब मुखर्जी और पी चिदंबरम के वित्त मंत्री रहते समय वित्त मंत्रालय आरबीआई पर ब्याज दरें नरम करने और आर्थिक वृद्धि की खुशनुमा तस्वीर पेश करने के लिए दबाव डालता था।
सुब्बाराव ने हाल में प्रकाशित अपनी किताब ‘जस्ट ए मर्सिनरी?: नोट्स फ्रॉम माई लाइफ एंड करियर’ में यह भी लिखा है कि केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता के महत्व पर सरकार में ‘थोड़ी समझ और संवेदनशीलता’ ही है।
सितंबर, 2008 में लेहमैन ब्रदर्स संकट शुरू होने के पहले आरबीआई के गवर्नर का पदभार संभालने से पहले सुब्बाराव वित्त सचिव थे।
लेहमैन ब्रदर्स के दिवालिया हो जाने से दुनियाभर में गहरा वित्तीय संकट पैदा हो गया था।
सुब्बाराव ने ‘‘सरकार का जय-जयकार करने वाला रिजर्व बैंक?’ शीर्षक अध्याय में कहा है कि सरकार का दबाव नीतिगत ब्याज दर पर रिजर्व बैंक के रुख तक ही सीमित नहीं था।
उस समय सरकार ने आरबीआई पर वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन से इतर वृद्धि और मुद्रास्फीति के बारे में बेहतर अनुमान पेश करने के लिए दबाव डाला था।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे प्रणब मुखर्जी के वित्त मंत्री रहते समय का ऐसा वाकया याद है।
वित्त सचिव अरविंद मायाराम और मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु ने हमारे अनुमानों को अपनी धारणाओं और अनुमानों से चुनौती दी थी।’’
सुब्बाराव को यह बात नागवार गुजरी थी कि चर्चा वस्तुनिष्ठ तर्कों से हटकर व्यक्तिपरक धारणाओं की ओर बढ़ गई।
इसके अलावा रिजर्व बैंक को सरकार के साथ जिम्मेदारी साझा करने के लिए उच्च वृद्धि दर और कम मुद्रास्फीति दर का अनुमान पेश करने का सुझाव दिया गया।
उन्होंने उस प्रकरण का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘मायाराम ने एक बैठक में यहां तक कह दिया था कि ‘जहां दुनिया में हर जगह सरकारें और केंद्रीय बैंक सहयोग कर रहे हैं, वहीं भारत में रिजर्व बैंक बहुत अड़ियल रुख अपना रहा है।’
सुब्बाराव ने कहा कि वह इस मांग से हमेशा असहज और नाखुश थे कि आरबीआई को सरकार के लिए ‘चीयरलीडर’ बनना चाहिए।
उन्होंने लिखा, ‘‘मुझे इस बात से भी निराशा हुई कि वित्त मंत्रालय इन दोनों मांगों के बीच स्पष्ट असंगति पर ध्यान दिए बगैर ब्याज दर पर नरम रुख के लिए बहस करते हुए वृद्धि के लिए उच्च अनुमान की मांग करेगा।’’
आरबीआई के पूर्व गवर्नर के मुताबिक, उनकी स्पष्ट राय थी कि रिजर्व बैंक सिर्फ जनता की भावनाओं के लिए अपने सर्वोत्तम पेशेवर निर्णय से पीछे नहीं हट सकता।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारे अनुमान हमारे नीतिगत रुख के अनुरूप होने चाहिए। वृद्धि एवं मुद्रास्फीति के अनुमानों के साथ छेड़छाड़ से रिजर्व बैंक की विश्वसनीयता कम हो जाएगी।’’
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