हल्दी एक आम मसाला है, जो हर भारतीय किचन में हमेशा ही उपलब्ध होता है।
यह किचन के सबसे जरूरी मसालों में से एक है। दाल और सब्जियां तो इसके बिना पक ही नहीं सकतीं।
बाजार में किलो के भाव से बिकने वाले इस मसाले के काम निराले हैं। इसमें चमत्कारी गुण पाये जाते हैं।
जमीन के नीचे पैदा होनेवाले इस मसाले को आप थाली में परोसी हुई सब्जी, आयुर्वेदिक औषधि से लेकर लगभग सभी सनातनी रस्मों में मौजूद पाते हैं।
भारतीय संस्कृति में हल्दी को शुभ माना गया है। यही कारण है कि हिंदुओं के तमाम रीति रिवाज हल्दी के बिना पूरे हो ही नहीं सकते।
जीवन की शुरुआत से लेकर अंत तक हर जगह हल्दी का महत्व है।
हल्दी की प्रजाति की बात करें, तो ये भारतीय वनस्पति है, जो अदरक की प्रजाति का पौधा है। अदरक की ही भांति हल्दी भी पौधे के जड़ ही है।
हल्दी को आयुर्वेद में प्राचीन काल से ही चमत्कारी माना गया है। हल्दी को कई नाम से जाना जाता है जैसे हरिद्रा, कुरकुमा, लौंगा, गौरी वट्ट विलासनी, कुमकुम टर्मरिक इत्यादि।
हल्दी भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। सनातनी संस्कृति में हल्दी का महत्व अनमोल है।
जीवन से लेकर मृत्यु तक इसका उपयोग देखा जा सकता है। बच्चे के जन्म के साथ ही हल्दी का उपयोग शुरू हो जाता है।
नवजात को जो काजल लगाया जाता है, वह हल्दी में भिंगोये कपड़े से ही बनता है। हिंदू रीति रिवाजों के हर शुभ कार्य में हल्दी महत्व है।
शादी लग्न पत्री से लेकर आमंत्रण पत्र तक पर हल्दी लगाई जाती है। इतना ही नहीं, जीवन के अंतिम पड़ाव या किसी की मौत के बाद पार्थिव शरीर पर हल्दी का लेप लगाया जाता है, ताकि डेड बाडी लंबे समय तक सुरक्षित रह सके।
हल्दी एक गुण अनेक
हल्दी एक गुण अनेक। यह कहावत प्राचीन काल से ही प्रचलित है। भारतीय संस्कृति की उत्पत्ति के समय से हमें हल्दी के इस्तेमाल के सबूत मिलते हैं।
हल्दी का इस्तेमाल औषधि के तौर पर किया जाता रहा है। हल्दी में कई औषधीय गुण होते हैं।
खास तौर पर इसमें एंटी बायोटिक पाया जाता है, जो शरीर को को कई तरह की बीमारियों से दूर रखता है।
इसका अहसास लोगों को कोरोना काल में खूब हुआ। जब एंटी बायोटिक लेने और इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए हल्दी का भरपुर इस्तेमाल किया गया।
ऐसे भी लोग हल्दी को दूध में मिला कर पीते हैं, ताकि शरीर स्वस्थ रहें। पश्चिमी देशों के वैज्ञानिक भी मान चुके हैं कि हल्दी में जितने औषधीय गुण हैं, उतना किसी दूसरे पौधे में नहीं।
कई बार ये भी देखा गया है कि हल्दी को लोग कपड़ों को रंगने के लिए भी इस्तेमाल करते रहे हैं। आम बोलचाल की भाषा में कहा जाता है कि हल्दी एक, उपयोग अनेक।
हल्दी एक, उपयोग अनेक
हिंदू संस्कृति में हल्दी के महत्व को हम इस तरह भी समझ सकते हैं कि जब एक बच्चा जन्म लेता है तो उसे संक्रमण या किसी तरह की बीमारी से बचाने के लिए हल्दी का इस्तेमाल औषधि के रुप में किया जाता है।
कई घरों में छोटे बच्चों की आंखों को संक्रमण से बचाने के लिए लोग हल्दी में भिंगोये हुए कपड़े को सूखाकर उसे जलाते है और उससे बने हुए काजल को बच्चों की आंखों में लगाते हैं।
हल्दी का उपयोग शादी विवाह में भी देखने को मिलता है। विवाह में तो हल्दी की एक खास रस्म है।
शादी से पहले लड़का और लड़की को हल्दी लगाया जाता है, ये मानकर कि विवाह शुभ होगा। ये तो हो गई शादी-विवाह की बात, लेकिन हम मृत्यु के समय भी हल्दी का साथ नहीं छोड़ते हैं।
अगर परिवार में किसी की मृत्यु हो जाए तो अंतिम संस्कार से तेरहवीं तक घर में बने खाने में हल्दी का उपयोग नहीं होता है।
मृत व्यक्ति के पार्थिव शरीर को हल्दी का लेप लगाया जाता है। इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है कि हल्दी में एंटी बायोटिक गुण होते हैं जो पार्थिव शरीर को लंबे समय तक सुरक्षित रखते हैं।
आधुनिक विज्ञान भी यह कन्फर्म कर चुका हे कि भारत का यह प्राचीन मसाला एंटीऑक्सीडेंट है, जो शरीर को रोगाणुओं से बचाता है और घाव या चोट को भी ठीक कर देता है।
यह शरीर में आई सूजन में भी लाभकारी है। हल्दी को एंटीफंगल, एंटीबैक्टीरियल और डिटॉक्सिफायर भी माना जाता है।
हमें कोरोना महामारी का वो काल खंड भी याद है जब पूरे देश की स्वास्थ्य संरचना को कोरोना वायरस ने अस्त व्यस्त कर दिया था और जब लोगों का विश्वास दवाइयों से डगमगाया तो दुबारा से उन्होंने इसी हल्दी का रुख किया जो सदियों से हमारी परम्पराओं के साथ हमसे जुड़ी हुई थी।
हल्दी है भारत का केसर
हल्दी के इन्हीं गुणों के कारण इसे यूरोपीय देशों में भारत का केसर कहा जाता है। अब सवाल आता है कि आखिर ये गुणों से लबरेज हल्दी आखिर आई कहां से, कहां हुई इसकी उत्पत्ति।
जवाब बड़ा सरल है। हल्दी की उत्पत्ति भारत में ही हुई है। इसकी खेती भारत में 4,500 वर्षों से अधिक समय से होती आ रही है।
कई वर्षों तक यह भारत तक ही सीमित रही। 700 ईसा पूर्व व्यापारी हल्दी को सिल्क रोड के माध्यम से विदेशों में बेचने लगे।
इससे हल्दी का विस्तार मध्य पूर्वी और उत्तरी अफ्रीकी संस्कृतियों में हुआ। भारत आज भी हल्दी का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक बना हुआ है।
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