रांची। झारखंड में जल्द ही उपायुक्तों की शक्तियां घटेंगी। इतना ही उनकी कुछ शक्तियां अब नीचे के अधिकारियों के पास होंगी। इसके अलावा सचिवों का अतिरिक्त भार भी घटेगा। बदलाव की नयी व्यवस्था को सीएम हेमंत सोरेन ने भी मंजूरी दे दी है।
यह सब होगा डॉ देवाशीष गुप्ता कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर। पूर्व विकास आयुक्त डॉ देवाशीष गुप्ता की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने राज्य प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिशों को लागू करने की अनुशंसा की है।
जल्द दिखेंगे बड़े प्रशासनिक बदलाव
इसका प्रभाव यह होगा कि राज्य में सरकारी कामकाज और प्रशासनिक व्यवस्थाओं में बड़े बदलाव होंगे। इससे डीसी के अधिकार घट जायेंगे और निचले अफसरों के पावर बढ़ जायेंगे।
सचिव,डीसी या मंत्री से जुड़े अधिकारियों के लिए फाइलों के निपटाने की भी समय सीमा तय होगी। हालांकि राज्यपाल, मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव इस दायरे से बाहर रहेंगे। जल्द मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक बैठक होगी। इसमें इसे नये बदलावों की रूपरेखा तय होगी।
2020 में हुआ था प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन
बता दें कि 2019 के अंत में हेमंत सरकार का गठन हुआ था। इसके तुरंत बाद 2020 में इस आयोग का गठन हुआ था। आयोग ने जनवरी 2022 में ही अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। इसे अब जाकर सीएम की सहमति मिली है।
आयोग की सिफारिश के मुख्य बिंदु
1. डीसी के पास 116 कमेटियों का है दायित्व, इससे लटकते हैं काम
आयोग ने कहा है कि डीसी के पास काम का लोड इतना अधिक है कि यह स्पष्ट ही नहीं रहता कि उसे करना क्या है और क्या नहीं। इसलिए इनका दायित्व घटाने की जरूरत है। उधर, एडिशनल कलेक्टर और एसडीओ आदि के पास लोड कम है। इसलिए उन्हें कुछ दायित्व दिये जा सकते हैं।
2. स्थानीय निकाय को मजबूत करें, डिलीवरी-सर्विस का काम सौंपे।
रिपोर्ट में डिलीवरी और सर्विस को सरकार से हटाकर स्थानीय निकायों के हवाले करने की सिफारिश की गई है। केरल का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि वहां 1984 से ही स्कूलों में मिड डे मील की व्यवस्था स्थानीय निकाय के जिम्मे है।
3. सचिव समेत बड़े अफसरों को अधिक अतिरिक्त प्रभार न दें
रिपोर्ट में सचिव समेत बड़े अधिकारियों को अधिक विभागों का अतिरिक्त प्रभार नहीं देने को कहा गया है। एक अधिकारी को अधिक प्रभार देने से वह अपना काम भी ठीक से नहीं कर पाता। दूसरे विभागों का भी काम प्रभावित होता है। आयोग ने हर स्तर पर अधिकारियों और कर्मचारियों के काम और दायित्व नए सिरे से तय करने की सलाह दी है। क्योंकि फैसला लेने में देरी होने पर भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।
4. मंत्री के ओएसडी और निजी सचिव की जवाबदेही तय हो
मंत्री कोषांग को जवाबदेह बनाने के लिए कार्यपालिका नियमावली में भी संशोधन की जरूरत बताई गई है। कहा है कि फाइलों को लेकर मंत्री के ओएसडी व निजी सचिव की जवाबदेही तय हो। इसके लिए प्रारूप भी सुझाया गया है।
सिफारिश के अन्य बिंदु
सचिवालय को कंप्यूटराइज्ड करते हुए सरकार ई-ऑफिस सिस्टम की व्यवस्था करे। इससे काम में गति आएगी।
पॉलिसी बनाने और उसे लागू कराने का दायित्व अलग-अलग हो, निदेशालय को सरकार से अलग रखा जाए।
सरकार अपना सचिवालय अनुदेश बनाए। पुराने सर्कुलर को मूल रूप में अपने वेबसाइट पर डाले।