रांची। झारखंड में मंईयां सम्मान योजना की चर्चा चहुओर है। राज्य की महिलाओं को ये योजना खूब भा रही है। हेमंत सोरेन सरकार से पहले किसी भी सरकार ने इस तरह का प्रयोग नहीं किया था। शुरुआत के चार माह में 1000 रुपये दिये गये और अब राशि बढ़ाकर 2500 रुपये कर दी गई है। गांव देहात के इलाकों में महिलाओं के पास बचत तो छोड़, आमदनी के भी साधन नहीं होते।
लेकिन इस योजना का असर देखिए कि अब महिलाओं को साल में 30000 हजार रूपये बैठे बिठाए मिल जाएंगे। महिलाओं में इसे लेकर खूब उत्साह है। लेकिन राज्य में महिलाओं की स्थिति का एक दूसरा रंग भी है। राज्य के हजारों सरकारी स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में सेवा दे रही रसोइया और जल जीवन मिशन व स्वच्छ भारत मिशन जैसी योजनाओं को धरातल पर उतारने में अहम भूमिका निभा रही जल सहियाओं की व्यथा कुछ और है।
स्कूली बच्चों के लिए सप्ताह में छह दिन खाना बनाने के बाद एक रसोइया को महीने के 1900 से 2000 रुपये मिलते हैं। वहीं जल जीवन मिशन व स्वच्छ भारत मिशन जैसी योजनाओं को धरातल पर उतारने में अहम भूमिका निभा रही जल सहियाओं को महीने के 2000 हजार मिलते हैं। वहीं मंईयां सम्मान योजना के तहत 18 से 50 साल तक की महिलाओं को घर बैठे 2500 रुपये मिलेंगे। इससे रसोइयों और जल सहियाओं में भारी असंतोष है।
समय-समय पर रसोइया और जल सहिया राज्य सरकार से उचित मानदेय की मांग करती रहती हैं। उनका कहना है कि वे सरकारी योजनाओं को सफल बनाने में अहम भूमिका निभा रही हैं, लेकिन उनकी मेहनत का सही मूल्यांकन नहीं किया जाता। मंईयां सम्मान योजना जहां महिलाओं को आर्थिक सहारा दे रही है, वहीं यह सवाल भी खड़ा कर रही है कि जो महिलाएं सरकार की योजनाओं को धरातल पर उतार रही हैं, उनके काम का सही मूल्य कब मिलेगा। आज जरूरत है, ऐसी रसोईया और साहियाओं का सम्मानजनक मानदेय बढ़ाकर उनका उत्साहवर्द्धन करने का, ताकि वे सरकार की कवल्याणकारी योजनाओं को आगे बढ़ाने में उत्साह से अपनी सहभागिता निभायें।
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