हजारीबाग। भेलाटांड़ बस्ती काली मंदिर का इतिहास 300 वर्ष पुराना है। स्वतंत्रता के आंदोलन में लोग इस मंदिर में हर रोज माता की पूजा कर देश की आजादी के लिए प्रार्थना करते थे। यहां कई गांव व आसपास की कॉलोनी, मोहल्ले के लोग पूजा करते हैं।
कई विशेषताएं हैं इस मंदिर कीः
मंदिर की कई विशेषता है। गांव के लोग जब भी कोई शुभ कार्य करते हैं तो मां को भोग अवश्य समर्पित करते हैं। यहां पारंपरिक ढंग से माता की पूजा-अर्चना की जाती है। यहां पाठा बलि की परंपरा है।
मंदिर का इतिहासः
पहले यहां एक झोपड़ी में माता की पूजा-अर्चना होती थी। समय के साथ इसके ढांचे में परिवर्तन होता रहा। टाटा स्टील के सहयोग से माता के मंदिर को आकर्षक रूप दिया गया।
गांव में विवाह से पूर्व पहले माता की पूजा-अर्चना की जाती है। यहां सालों भर लोग पूजा करते हैं और पाठा की बलि देते हैं। यहां मांगने पर मनोकामना पूरी होती है।
उसके बाद मां को भोग के रूप में पाठा अर्पित किया जाता है। वैसे इस मंदिर की पूजा-अर्चना सार्वजनिक होती है।
मंदिर के संचालन का जिम्मा एक परिवार विशेष को है। काली पूजा के दौरान पुजारी द्वारा पूजा की जाती है, लेकिन पूरा वर्ष परिवार का कोई सदस्य ही पूजा व बलि करता है।
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