Monday, July 28, 2025

ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव, जिन्होंने 6 महीनें तक रांची को रखा था आजाद [Thakur Vishwanath Shahdev, who kept Ranchi free for 6 months]

रांची। झारखंड के स्वतंत्रता सेनानी अमर शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका था और रांची को छह महीने तक अंग्रेजों से मुक्त रखा था।

उनके वंशज और क्षेत्र के लोग अब सरकार से उनकी विरासत को सम्मान देने और उनके बलिदान को पहचान दिलाने की मांग कर रहे हैं।

छोटानागपुर क्षेत्र को अंग्रेजों से मुक्त कर स्वतंत्र राज्य की स्थापना

ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव बड़कागढ़ (जो अब रांची का हिस्सा है) के राजा थे। उन्होंने 1857 के विद्रोह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

उन्होंने छोटानागपुर क्षेत्र को अंग्रेजी शासन से मुक्त कराकर एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की थी। लेकिन कुछ गद्दारों की वजह से और स्वतंत्रता सेनानियों के बीच उचित तालमेल की कमी के कारण उनका यह प्रयास सफल नहीं हो सका।

फांसी देने के साथ ही बड़कागढ़ रियासत को कब्जे में लिया

16 अप्रैल, 1858 को अंग्रेजों ने उन्हें रांची के जिला स्कूल (जो अब अमर शहीद ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव जिला विद्यालय है) के प्रांगण में फांसी दे दी थी।

अंग्रेजों ने उनकी रियासत बड़कागढ़ को अपने कब्जे में ले लिया और उनके नाम के साथ ‘सेक्रेटरी फॉर इंडिया इन काउंसिल’ का नाम भी जोड़ दिया।

उनके किले हटिया गढ़ को ध्वस्त कर दिया गया। उनकी पत्नी रानी वनेश्वरी कुंअर अपने एक साल के बेटे कपिल नाथ शाहदेव को लेकर गुमला के जंगलों में चली गईं और काफी समय तक वहां गुप्त रूप से रहीं।

विद्रोह सफल होता तो काफी पहले मिल जाती आजादी

इतिहासकारों का मानना है कि अगर ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव का विद्रोह सफल होता तो भारत को बहुत पहले आजादी मिल गई होती।

आज ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के वंशज जगन्नाथपुर मंदिर परिसर में रहते हैं। यह वह घर है जो अंग्रेजों ने 1880 में उनकी पत्नी और बेटे के लिए बनवाया था।

ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के वंशज और क्षेत्र के लोग झारखंड के शहीदों को उचित सम्मान देने की मांग कर रहे हैं। वे यह भी मांग कर रहे हैं कि चूंकि अंग्रेजों ने बड़कागढ़ की जमीन को ‘सेक्रेटरी फॉर इंडिया इन काउंसिल’ के नाम पर भी दर्ज करा दिया था, जो कि एक तरह की दोहरी सजा थी, इसलिए अब वह जमीन ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के वंशजों के नाम कर दी जाए।

15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी के साथ ही ‘सेक्रेटरी फॉर इंडिया इन काउंसिल’ का अस्तित्व ही समाप्त हो गया था।

अब उस जमीन के कागजों में सिर्फ़ ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव का नाम होना चाहिए। इस सिलसिले में ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के वंशजों ने झारखंड उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका भी दायर की है जो अभी विचाराधीन है।

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देश की आजादी का गवाह- फांसी टुंगरी

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