Thursday, August 21, 2025

Sex Workers Day: भारत में वेश्यावृत्ति लीगल, सेक्स वर्कर्स डे पर जानिए, क्यों कहते हैं इसे दुनिया का सबसे पुराना पेशा [Prostitution is legal in India, know on Sex Workers Day why it is called the oldest profession in the world]

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Sex Workers Day:

नई दिल्ली, एजेंसियां। आज इंटरनेशनल डे फॉर सेक्स वर्कर्स है। लोग सोच सकते हैं कि जो पेशा कानून और समाज की नजर में अपराध है, उसके लिए इंटरनेशनल लेवल पर कोई खास दिन कौन मनाएगा? पर सच्चाई लोगों की सोच से अलग है। कानूनन भारत में वेश्यावृत्ति अपराध नहीं है। सामाजिक तौर पर वेश्यावृत्ति दुनिया के सबसे पुराने पेशों में से एक है। दुनिया में 300 से ज्यादा संगठन ऐसे हैं जो सेक्स वर्कर्स के अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं।

सेक्स वर्कर्स की ये दुनिया सीधे-सीधे ब्लैक/व्हाइट में नहीं बंटी है। समय और देश की सीमाओं के साथ-साथ ये दुनिया बहुत जटिल होती जाती है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में वेश्यावृत्ति पूरी तरह गैर-कानूनी है, लेकिन पोर्नोग्राफी लीगल है। भारत में वेश्यावृत्ति अपराध नहीं है, लेकिन इसका प्रचार अपराध है। आज इंटरनेशनल डे फॉर सेक्स वर्कर्स पर वेश्यावृत्ति से जुड़े इन जटिल सवालों के जवाब आपको देते हैं।

Sex Workers Day: अलग-अलग देशों में अलग-अलग कानूनः

आप न्यूजीलैंड में हैं तो नहीं, अमेरिका में हैं तो जेल तय है। सेक्स वर्क और सेक्स वर्कर्स के कानूनी स्टेटस पर पूरी दुनिया में अलग-अलग स्थिति है। कहीं-कहीं तो एक ही देश के राज्यों में अलग-अलग कानून है। सेक्स वर्कर्स की परिभाषा भी हर जगह एक नहीं है। कुछ जगहों पर सेक्स वर्कर का मतलब सिर्फ प्रॉस्टिट्यूट्स यानी वेश्या होता है। जबकि कई देशों में पोर्न इंडस्ट्री, स्ट्रिपर क्लब, वेश्यालय चलाने वाले सभी सेक्स वर्कर्स की कैटेगरी में आते हैं। प्रॉस्टिट्यूशन पर अलग-अलग देशों में अलग-अलग कानून हैं।

Sex Workers Day:भारत में वेश्यावृत्ति वैधः

भारत में सुप्रीम कोर्ट ने वेश्यावृत्ति को पेशा माना है। 2022 के अपने एक जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने वेश्यावृत्ति को ‘पेशा’ माना है। दरअसल, भारतीय कानून के तहत वेश्यावृत्ति हमेशा ही लीगल रहा है। यानी पैसे के बदले सेक्स कानूनन अपराध नहीं है। लेकिन इससे जुड़ी कुछ चीजों को अपराध माना गया है-
• अगर वेश्यावृत्ति से पहले पैसों के लेन-देन पर बात यानी ‘सॉलिसिटेशन’ हो।
• अगर वेश्यावृत्ति संगठित तौर पर हो रही हो, यानी वेश्यालय चल रहा हो।
• अगर वेश्यावृत्ति का किसी भी तरह से प्रचार किया जा रहा हो।
• अगर किसी से जबरदस्ती वेश्यावृत्ति करवाई जा रही हो।
2022 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले तक पुलिस जब भी किसी वेश्यालय या सेक्स रैकेट को पकड़ती, तो वहां काम करने वाली प्रॉस्टिट्यूट्स को भी गिरफ्तार किया जाता था। पुलिस का तर्क ये था कि वेश्यावृत्ति से पहले ‘सॉलिसिटेशन’ हुआ ही होगा और इसी आधार पर प्रॉस्टिट्यूट्स को गिरफ्तार किया जा सकता है।

Sex Workers Day:प्रॉस्टिट्यूट्स की गिरफ्तारी पर रोकः

सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक ‘सॉलिसिटेशन’ हुआ ही होगा ये बिना प्रमाण के नहीं माना जा सकता है। इसीलिए प्रॉस्टिट्यूट्स को गिरफ्तार करना गलत है। उन्होंने कुछ गैर-कानूनी नहीं किया है। सुप्रीम कोर्ट ने इसी फैसले में कहा था कि वेश्यावृत्ति एक ‘पेशा’ है और इस पेशे से जुड़े लोगों को भी कानून के तहत समान अधिकार प्राप्त हैं।

Sex Workers Day:दुनिया का सबसे पुराना पेशा, ग्रीक सभ्यता से लेकर बाइबल तक में जिक्रः

वेश्यावृत्ति को आज भले ही सामाजिक बुराई माना जाता है, लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था। सबसे पुरानी सभ्यताओं के अवशेषों में भी इस बात के सबूत मिले हैं कि उनके समाज में वेश्यावृत्ति आम बात थी। ग्रीक सभ्यता से लेकर बाइबल तक में इसका जिक्र मिलता है।

Sex Workers Day: 4500 सालों में सेक्स वर्कर और सेक्स इंडस्ट्री की तस्वीर बदल गईः

प्राचीन सभ्यताओं में वेश्याएं ज्यादातर किसी धार्मिक अनुष्ठान से जुड़ी होती थीं। लेकिन समय के साथ ये तस्वीर बदलती चली गई। आज सेक्स वर्कर की परिभाषा तय करना लगातार जटिल होता जा रहा है। नई टेक्नोलॉजी के साथ इसमें नए-नए पहलू जुड़ते जा रहे हैं। पहले सेक्स वर्कर्स के तौर पर सिर्फ प्रॉस्टिट्यूट्स को ही जाना जाता था। अब कई जगहों पर पोर्नोग्राफी से जुड़े लोगों को भी सेक्स वर्कर की कैटेगरी में रखा जाता है। इसके साथ ही स्ट्रिप क्लब्स में काम करने वालों को भी सेक्स वर्कर माना जाता है।

इंटरनेट के दौर में पोर्न का नया रूप वेब कैम रूम्स बन गए हैं। जहां लड़कियां वेब कैम के जरिये सेक्शुअल एक्ट्स को लाइव स्ट्रीम करती हैं। ‘ओनली फैन्स’ जैसे प्लेटफॉर्म्स के जरिये ये इंडस्ट्री लगातार बढ़ रही है। जिन देशों में सेक्स वर्कर्स को कानून के जरिये रेगुलेट किया जाता है, वहां ये परिभाषा तय करना जरूरी हो गया है।

Sex Workers Day: क्यों मनाया जाता है ये खास दिनः

बात 1970 के दशक की है। पूरे यूरोप में वेश्यावृत्ति तो आम बात थी, लेकिन कहीं भी इसके नियमों पर तस्वीर साफ नहीं थी। इस वजह से सेक्स वर्कर्स पर दोहरा खतरा था। वे ग्राहकों और सेक्स रैकेट चलाने वाले दलालों की हिंसा का शिकार होती थीं। दूसरी तरफ पुलिस भी उनकी मदद करने की बजाय प्रताड़ित ही करती थी।

1975 में फ्रांस के लियोन शहर में एक के बाद एक तीन वेश्याओं की हत्या हो गई। इससे परेशान और डरी हुई सेक्स वर्कर्स ने पुलिस से मदद मांगी, लेकिन कोई मदद नहीं मिली। अंतत: 2 जून, 1975 को करीब 100 सेक्स वर्कर्स ने लियोन के शहर के सेन निजीर चर्च पर कब्जा कर लिया और चर्च परिसर में धरने पर बैठ गईं। उनकी मांग थी कि पुलिस की सख्ती बंद हो, जेल में बंद वेश्याओं को छोड़ा जाए। उनकी बुरी वर्किंग कंडीशन्स को सुधारा जाए और समाज में पहचान भी मिले।

चर्च के प्रमुख रेवरेंड एंटॉनिन बिएल भी वेश्याओं के साथ थे। उन्होंने धरना देने वाली वेश्याओं को न तो खुद रोका और ना ही उन्हें हटाने के लिए पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई। चर्च परिसर में ये धरना 8 दिन तक चलता रहा। वेश्याएं अपना बैनर लगाए चर्च परिसर में ही रहती थीं। इस धरने को उस समय फ्रांस ही नहीं, दूसरे देशों की मीडिया ने भी खूब प्रचारित किया। इन वेश्याओं के समर्थन में फ्रांस के दूसरे शहरों फ्रांस, मार्से, ग्रेनोबल और मॉन्टपेलियर में भी सेक्स वर्कर्स ने धरने-प्रदर्शन शुरू कर दिए।

अंतत: 10 जून को सरकार के आदेश पर पुलिस ने धरना दे रहीं सेक्स वर्कर्स को लियॉन के चर्च से हटा दिया। इस प्रदर्शन से न तो कोई कानून बदला और ना ही सरकार ने कोई कदम उठाया। लेकिन इसने पूरे यूरोप की सेक्स वर्कर्स को संगठित कर दिया। 1976 से पूरे यूरोप में 2 जून को इंटरनेशनल सेक्स वर्कर्स डे के तौर पर मनाया जाने लगा। आज पूरी दुनिया में 300 से ज्यादा संगठन इस दिन अलग-अलग कार्यक्रम करते हैं। आज भी उनकी मांग सामाजिक पहचान और सेक्स वर्क को डिक्रिमिनलाइज करने की है।

Sex Workers Day:73% सेक्स वर्कर्स होती हैं हिंसा का शिकारः

एक ग्लोबल स्टडी के मुताबिक औसतन 73% सेक्स वर्कर्स अपने पूरे जीवन में कभी न कभी सेक्शुअल वायलेंस का शिकार होती हैं। यही नहीं, सीरियल किलर्स के लिए भी सेक्स वर्कर्स हमेशा से आसान शिकार रही हैं।

Sex Workers Day: सेक्स वर्कर्स के अधिकारों के लिए जारी है जंगः

दुनिया भर में कई संगठन सेक्स वर्कर्स के लिए बेहतर हालात और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं। आप ये मान सकते हैं कि इस पेशे के बारे में खुलकर बात करना समाज के हर तबके को असहज करता है।

सुप्रीम कोर्ट की तरह ही शायद समाज के लिए भी ये जरूरी है कि वो इसे पेशे के तौर पर पहचान दे, ताकि इससे जुड़े लोगों को हिंसा और बदतर हालात से निजात मिल सके।

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